शक्तिपीठ, ज्योतिर्लिंग और सिंहस्थ महापर्व भी
सांदीपनी आश्रम में बीता कृष्ण का शैशव और किशोरवय जीवन हो या जीवन के अंतिम सत्य, शैव-दर्शन का जागृत धाम ‘त्रिकाल-त्रिनेत्री’ शिव का स्थल हो या द्वादश ज्योर्तिलिंगों में सबसे जागृत शिवलिंग की पावन भूमि ‘महाकाल’ हो, उज्जयिनी नगरी की द्वापर से अधुनातन युग तक की महिमा स्वर्णाक्षरों में लिखी है। मंदिरों के घंटे-घड़ियाल से गुंजायमान, मंदिरों से पटा पड़ा यह धार्मिक नगर जीवन के लक्ष्य और सत्य का अंतिम पड़ाव है। उज्जैन धरती का स्वर्ग कहलाता है, क्योंकि यह एकमात्र नगर है जहां शक्तिपीठ, ज्योतिर्लिंग है और सिंहस्थ का आयोजन किया जाता है। ‘महाकाल, कालभैरव, गढ़कालिका और अर्धकाल भैरव’, यहां साढ़े तीन काल विराजमान हैं। ‘चिंतामन, मंछामन, इच्छामन’, तीन गणेश विराजमान हैं, ‘चौरासी महादेव’ हैं, यह सप्तसागर और मंगल ग्रह की उत्पत्ति का भी स्थान है।
पुण्य सलिला क्षिप्रा
यहां अष्ट चिरंजीवियों के मंदिर के अलावा असंख्य मंदिर हैं जो मानो क्षिप्रा के जल का आचमन करके तृप्त होते रहते हैं। प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं, ‘महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, बड़े गणपतिजी का मंदिर, हरसिद्धिदेवी मंदिर, गोपाल मंदिर, श्रीराम-जनार्दन मंदिर, चारधाम मंदिर, कालभैरव मंदिर, मंगलनाथ मंदिर, गढ़कालिका देवी मंदिर, चिंतामन गणेश मंदिर, नवग्रह मंदिर, वेधशाला, भर्तृहरि गुफा, सांदीपनि आश्रम, नगरकोट की रानी और कालियादेह महल आदि। सिंहस्थ में अपने पापों का मैल पुण्य सलिला क्षिप्रा नदी में धोने के लिए यहां श्रद्धालुओं का समूह उमड़ता है। जंतर-मंतर पर समय सारणी यंत्र फ्रीगंज के भव्य घंटाघर से समय का भान कराता है। यहां पद्मश्री गुरुदेव व्ही. श्री. वाकणकर जी ने भीम बैठका के प्रागैतिहासिक शैल चित्रों की खोज की, बाद में उसे विश्व धरोहर में सम्मिलित किया गया।
सम्राट विक्रमादित्य की सोने की चिड़िया
उज्जयिनी नगरी के महान सम्राट राजा विक्रमादित्य ने सर्वप्रथम भारत को सोने की चिड़िया की उपाधि देकर गौरवान्वित किया था। विक्रमादित्य के नाम से विक्रम संवत का आरंभ हुआ जो हर वर्ष चैत्र माह के प्रतिप्रदा के दिन मनाया जाता है। विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, गायक और गणित के प्रकांड विद्वान पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका बजता था। ये नवरत्न थे क्रमशः धनवंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटखर्पर, वराहमिहिर, वररुचि और विश्वविख्यात महाकवि कालिदास, जो सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे।
श्मशान रुपी ‘चक्र तीर्थ’
उज्जैन से गूढ़-गंभीर विषयों का भी रहस्योद्घाटन होता रहा है जिसमें ग्रह नक्षत्रों की गणना उज्जैन की महत्वपूर्ण बानगी है, कर्क रेखा भी यहां से होकर गुजरती है। यहां नौ नारायण और सप्त सागर हैं। उज्जैन के श्मशान को भी तीर्थ का स्थान प्राप्त है जो ‘चक्र तीर्थ’ कहलाता है। उज्जैन के बारे में ये सत्य चरितार्थ है कि जो जीवन की आपाधापी से उकता जाते हैं, वे शांति की तलाश में उज्जैन आते हैं क्योंकि महाकाल नरेश किसी की झोली खाली नहीं रखते हैं।
डग-डग रोटी, पग-पग नीर
मालवा की सोंधी मिट्टी के बारे में कहावत है, ‘देश मालवा गहन गंभीर, डग-डग रोटी, पग-पग नीर।’ यहां का सहज-सरल लोक समाज अतिथि सत्कार में अग्रणी है। ग्रीष्म की तपन में फ्रीगंज चौराहे पर चुन्नी पहलवान की मधुशाला में रसपान और एस्किमो आइसक्रीम की ठंडक, पोहा और हरी चटनी के साथ आलू बड़े, चक्राकार जलेबी और रसीले ताजे गुलाब जामुन स्वल्पाहार हैं। दोपहर में दाल-बाफले, चूरमे के लड्डू, चटनी और बैंगन के भरते का सुस्वादु भोजन होता है।
कबाड़ा, टेपा और महामूर्ख
‘बुरा ना मानो होली है’ के भाव के साथ ही इंद्रधनुषी वर्णों से सराबोर होली पर रंगों की बौछार के साथ हास्य व्यंग्य के शब्द बाण भी छोड़े जाते हैं और हास-परिहास के आयोजनों में महामूर्ख जैसी उपाधियां दी जाती हैं। उज्जैन में ‘कबाड़ा’ अनूठा कार्यक्रम होता है जिसकी शुरुआत कुछ साल पहले की गई। इस आयोजन में हर बात में हास्य का पुट होता है। जिस तरह होली पर रंगों से कबाड़ा होता है उसी तरह इसमें लोगों का हास्य से भरपूर कबाड़ा किया जाता है। कबाड़ा में हास-परिहास का स्तर इस हद तक पहुंचता है कि कार्यक्रम के दौरान कब, क्या हो जाए पता नहीं चलता। होली पर महामूर्ख सम्मेलन भी होते हैं क्योंकि हास्य का कोई मौसम या त्यौहार नहीं होता। विविधताओं वाले भारत में अजीबोगरीब कारनामों से हास्य का वातावरण बना रहता है लेकिन होली का मौका अलग होता है जब हजारों लोग उज्जैन पहुंचते है और किसी नेता को महामूर्ख की उपाधि दी जाती है। उज्जैन में तीन दशकों से हर साल मूर्ख दिवस पर ‘टेपा सम्मेलन’ का आयोजन होता है जिसकी ख्याति देश भर में है। मालवा में ‘टेपा’ का अर्थ भोला-भाला आदमी होता है। सम्मेलन में किसी हस्ती को बुलाकर ‘टेपा’ की उपाधि दी जाती है। उज्जैन, व्यंग्यकार शरद जोशी की नगरी भी रही है और ऐसे कार्यक्रमों की शुरुआत में उनकी विशेष भूमिका रहती थी।
(काव्य संग्रह एक मुठ्ठी आकाश, अंजुरी भर सागर)