हिमालय हमेशा से चरम मौसमी स्थितियों के प्रति संवेदनशील रहा है, यह तथ्य धीरे-धीरे और स्पष्ट होता जा रहा है। ऊंचे पहाड़ों पर बर्फ के आवरण में 18.5 प्रतिशत तक की गिरावट आ गई है। पिछले दो महीनों के दौरान बारिश में 37 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। गर्मी शुरू होने से पहले ही तापमान बढ़ना शुरू हो चुका है। पर्यावरणविद इसे अप्रत्याशित तो नहीं, पर अभूतपूर्व जरूर मान रहे हैं। इस बार शिमला में सर्वाधिक न्यूनतम तापमान 14.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जबकि फरवरी में दर्ज 23 डिग्री सेल्सियस के अधिकतम तापमान ने 2006 के 22.6 डिग्री सेल्सियस का रिकॉर्ड तोड़ दिया।
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि यह हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में सबसे शुष्क सर्दी थी। जीवन, पृथ्वी, जानवरों और जंगलों पर इसका प्रभाव अगले कुछ हफ्तों में दिखाई देने वाला है क्योंकि अप्रैल-मई 2023 तक गर्मी चढ़ जाएगी। यह पहाड़ों के लिए बिलकुल नई स्थिति होगी क्योंकि पहाड़ अभी से गर्म होने लगे हैं यानी मार्च में ही गर्मी पड़ने लगी है।
शिमला में बीती सर्दियों में अब तक केवल 6 सेमी बर्फबारी हुई है जबकि यह मौसम नवंबर से मार्च तक रहता है। मौसम विज्ञान केंद्र (शिमला) के रिकॉर्ड के अनुसार, 2008-09 में बारिश से अलग बर्फबारी के आंकड़े दर्ज किए जाने शुरू हुए थे। इस बार यह दूसरा सबसे कम बर्फबारी वाला मौसम रहा है।
2009-10 में शिमला में 1.8 सेमी बर्फबारी हुई थी। शिमला में 1989-90 में सबसे अधिक बर्फबारी हुई थी जो 262.2 सेमी थी। 2005-06 में तो शहर ने बर्फ का मुंह तक नहीं देखा था। इस बार केवल 14 जनवरी को शिमला में बर्फ गिरी, वह भी शहर के सबसे ऊंची जगह जाखू की पहाड़ी तक ही सीमित रही।
बढ़ता तापमान चिंता का विषय
शहर के पुराने बाशिंदे बताते हैं कि कैसे हर साल सर्दियों की छुट्टी के बाद मार्च में फिर स्कूल खुलते थे तब उन्हें दो से तीन फुट बर्फ से होकर गुजरना पड़ता था। शिमला के इतिहासकार राजा भसीन याद करते हैं, “सड़क और पैदल मार्गों पर घुटने तक बर्फ होना सामान्य बात थी। रिज से कालीबाड़ी के नीचे स्थित बर्फ पर फिसलने में हमें बड़ा मजा आता था।”
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) इंडिया के वरिष्ठ जलवायु परिवर्तन सलाहकार डॉ. विरिंदर शर्मा कहते हैं, “हम शिमला या हिमाचल प्रदेश में जो देख रहे हैं, वह जलवायु में आसन्न परिवर्तनों का लक्षण है। भविष्य के रुझान काफी अनिश्चित रहने वाले हैं, जैसे अत्यंत कम बारिश और बर्फ या फिर बर्फ का बिलकुल न होना और बहुत अधिक बारिश। यह भी हो सकता है कि बर्फ के पड़ने का मौसम और तीव्रता बदल जाए तथा चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि हो।”
इस प्रकार के परिवर्तन का इस क्षेत्र में पानी की उपलब्धता पर तत्काल प्रभाव पड़ने वाला है। जल संसाधनों के जलग्रहण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए गर्मी कठिन साबित होने वाली है।
मात्र 20,000 की आबादी के लिए बसाया गया शिमला हमेशा से पीने के पानी की कमी का सामना करता रहा है। अब तीन लाख हो चुकी आबादी के लिए पानी की मांग को पूरा करना दुष्कर काम होगा। 2018 में शिमला का जल संकट राष्ट्रीय मीडिया के अलावा वाशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स की सुर्खियां बना था। उस साल यह शहर उन स्रोतों के सूखने के कारण आठ से दस दिनों तक प्यासा रहा था, जिन पर वह अंग्रेजों के जमाने से निर्भर था।
शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंद्र सिंह पंवार का कहना है कि कम से कम दो जलस्रोत गिरि और गुम्मा पूरी तरह से आसपास के पहाड़ों पर बर्फबारी पर निर्भर हैं, इसलिए बर्फ न गिरने के कारण गर्मियों में पानी की उपलब्धता कम हो जाएगी। तापमान बढ़ेगा तो पानी की मांग बढ़ जाएगी और अंततः नलके सूख जाएंगे।
शिमला जल प्रबंधन निगम (एसजेपीएन) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) पंकज ललित स्वीकार करते हैं, “शिमला में पानी की कमी न हो हम इसकी तैयारी कर रहे हैं। शहर में पीने के पानी की आपूर्ति सात दिन के बजाय छह दिन के लिए की जा रही है। एसजेपीएन सतलुज में चाबा से आपूर्ति बढ़ाने के अलावा वितरण तंत्र की सभी खामियों को दूर करने की कोशिश की जा रही है।”
वर्तमान में, एसजेपीएन ग्रेटर शिमला के इलाकों में 39 से 42 एमएलडी पानी की आपूर्ति कर रहा है, लेकिन स्रोतों पर उपलब्धता में उतार-चढ़ाव होता रहता है। विशेष रूप से गुम्मा में 21 एमएलडी की क्षमता है। गिरि पर उपलब्धता हाल ही में घटकर 12 एमएलडी रह गई थी, जो सात से नौ एमएलडी की कमी है। शिमला के लिए पानी के अन्य स्रोतों में चुरोट, ठ्योग, चैढ़ और कोटी ब्रांडी शामिल हैं।
गर्मियों के दौरान पर्यटकों की संख्या से शिमला में पानी की समस्या और विकट हो जाती है। होटल व्यवसायी पहले से ही अघोषित ‘पानी की कटौती’ के बारे में शिकायत कर रहे हैं। अतिरिक्त पानी के लिए वे टैंकर ले रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि हिमाचल के हिमालयी क्षेत्र में 800 ग्लेशियर हैं। पिछले तीन दशकों में बढ़ते तापमान के साथ बड़े ग्लेशियरों के छोटे ग्लेशियरों में टूटने के कारण इस संख्या में वृद्धि हुई है। बर्फ के आवरण में पहले से ही काफी गिरावट आई है।
डॉ. वाइएस परमार बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय के पूर्व वैज्ञानिक एसपी भारद्वाज का मानना है, “पानी सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों में से एक है। इस समृद्ध पहाड़ी राज्य में सतलुज, ब्यास, रावी और चिनाब नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों से भारी मात्रा में पानी आता है, लेकिन अब बर्फ के आवरण में 18.5 प्रतिशत की कमी और ग्लेशियरों के ठीक से रिचार्ज न होने के कारण राज्य को पानी के उपभोग में संकट का सामना करना पड़ रहा है।”
मौसम विशेषज्ञों से मिली जानकारी के आधार पर मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने उपायुक्तों सहित शीर्ष अधिकारियों के साथ स्थिति की समीक्षा। राज्य में पानी की कमी के कारण बिजली उत्पादन में भी गिरावट की आशंका है। सतलुज, रावी और चिनाब बेसिन में स्थित जल विद्युत परियोजनाएं इससे प्रभावित होंगी। गर्मियों के दौरान अधिकांश जल विद्युत परियोजनाएं मैदानी क्षेत्रों में अतिरिक्त बिजली की मांग को पूरा करने के लिए अधिकतम स्तर पर चलती हैं, लेकिन इन परियोजनाओं को पानी देने वाली नदियों में यदि पानी का प्रवाह कम हो गया तब क्या होगा?
सक्सेना ने अधिकारियों को विभागों को राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के साथ मिलकर काम करने और सूखे के कारण उत्पन्न होने वाली किसी भी अप्रत्याशित आपदा के दौरान समय पर उचित कार्रवाई करने के लिए तैयार रहने को कहा। उन्होंने कि उपायुक्तों को संबंधित विभागों की नियमित बैठकें को भी कहा है।
चिपको आंदोलन के प्रणेता स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के पुराने सहयोगी प्रख्यात पर्यावरणविद कुलभूषण उपमन्यु का दावा है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण मैदानी इलाकों में तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, लेकिन हिमाचल में यह वृद्धि 1.6 डिग्री सेल्सियस है। वह बताते हैं, “पहले समुद्र तल से 3,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित स्थानों पर बर्फबारी होती थी। अब केवल 5,000 फुट से ऊपर स्थित स्थानों पर ही होती है।” उनका कहना है कि पहले एक सप्ताह तक बारिश होती थी, लेकिन अब इसके दिन कम हो गए हैं लेकिन तीव्रता बढ़ गई है। ग्लेशियर भी अब तेजी से पिघल रहे हैं।
शिमला में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के निदेशक सुरेंद्र पाल ने कहा कि बर्फ और बारिश दोनों कम हो रही है और मौसम के पैटर्न में बदलाव दिख रहा है। सर्दियों के महीने सिकुड़ रहे हैं और चरम सर्दियों में बर्फबारी कम हो रही है। पहले कई दफे मार्च के महीनों में तक शिमला में नियमित बर्फबारी हुआ करती थी। 2022 की गर्मियों में 500 से अधिक जलापूर्ति और सिंचाई योजनाएं जल संकट के कारण सूख गईं या निष्क्रिय हो गई थीं।
उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री कहते हैं, “हमें इस बार भी इसी तरह की समस्याएं होने की संभावना है। मैंने इंजीनियरों से अपर्याप्त बारिश के कारण प्रभावित होने वाली जलापूर्ति योजनाओं पर नजर रखने के लिए कहा है।”
सरकार ने पशुपालन विभाग को पर्याप्त चारा और पानी संग्रहित करने का भी निर्देश दिया गया है और लोगों से पानी बर्बाद न करने की अपील की है।
डॉ. विरिंदर शर्मा कहते हैं, “हमें मौसम के अनिश्चित पैटर्न के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है। बदलती जलवायु और मौसम का पैटर्न पानी की आपूर्ति और अन्य बुनियादी ढांचा योजनाओं की इंजीनियरिंग डिजाइन को चुनौती दे रहे हैं, जिन्हें हले दर्ज बारिश और शुष्क मौसम की वापसी की अवधि के आधार पर डिजाइन किया गया था, न कि भविष्य की पूर्वानुमानित जलवायु के आधार पर।”