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2024 सेमीफाइनल/मध्य प्रदेश: चौहान की चुनौती चौतरफा

बीस साल से सत्ता में रहने के बाद मुख्यमंत्री मतदाताओं को रिझाने और सत्ता बचाने के लिए तूफानी दौरों के सहारे
वोट पर निगाहः महिलाओं के बीच प्रचार करते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

मानसून जा चुका है लेकिन मध्य प्रदेश में घोषणाओं और वादों की झड़ी लगी हुई है। लगभग दो महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी एक के बाद एक नई योजनाएं लेकर आ रही है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस उतनी ही तेज रफ्तार से घोटालों का परदाफाश कर भाजपा सरकार को चुनौती दे रहा है। सियासी मौसम को देखते हुए कह सकते हैं कि आगामी चुनाव में दोनों दलों के बीच कांटे की टक्कर है। दूसरे चुनावी राज्यों के मुकाबले मध्य प्रदेश के चुनावी गणित को समझना सरल है। यहां विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। राज्य में हमेशा कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला होता रहा है। प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में 2018 का चुनाव संभवतः पहला मौका था जब परिणाम फोटो फिनिश जैसा रहा। इस बार के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अलावा आम आदमी पार्टी ने भी एंट्री कर ली है। मुकाबला अब परंपरागत रूप से भाजपा-कांग्रेस के बीच होने के बजाय बहुकोणीय होता दिख रहा है।

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी और सरकार भी कांग्रेस ने ही बनाई थी। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे। उनकी सरकार डेढ़ साल भी नहीं चल पाई क्योंकि कांग्रेस के 22 विधायकों ने विधानसभा से अपना इस्तीफा दे दिया था। इससे सूबे में सियासी संकट पैदा हो गया। इस संकट के केंद्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीतिक पालाबदल था, जिसके चलते कमलनाथ सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर फ्लोर टेस्ट से गुजरना पड़ा। फ्लोर टेस्ट की दोपहर ही कमलनाथ ने अपना इस्तीफा दे दिया और तीन दिन बाद 23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए। जो 22 विधायक कांग्रेस छोड़ गए थे, वे सब भाजपा में चले गए और सिंधिया को शिवराज ने राज्यसभा का टिकट दे दिया।

इस समूचे प्रकरण में सियासी खरीद-फरोख्त के आरोपों के बीच सच्चाई कुल मिलाकर यही है कि शिवराज सिंह चौहान और भाजपा बीच के डेढ़ साल को छोड़ दें, तो तकरीबन बीस साल से सूबे में भाजपा सत्तासीन है। 2020 का राजनीतिक संकट दिखाता है कि सत्ता में कायम रहने के लिए भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है। यह बात सूबे का मतदाता भी समझ चुका है। यही बात कांग्रेस के लिए सहानुभूति के स्तर पर काम कर रही है।

दांव पर साखः कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ

दांव पर साखः कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ

इसलिए इस बार के चुनाव में सबकी नजर कांग्रेस समेत अन्य दलों पर टिकी है। इस कांटे की टक्कर में सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने है क्योंकि सत्ता-विरोधी माहौल के अलावा लंबे समय से मतदाता एक ही चेहरा देख-देख कर थक चुके हैं। इसी से मतदाताओं को उबारने के लिए चौहान पूरे प्रदेश का तूफानी दौरा कर रहे हैं। वे हर जिले में कोई न कोई बड़ी परियोजना की शुरुआत कर रहे हैं और खास तौर पर अपने भाषणों में महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने वाली मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना का भरपूर जिक्र करने से नहीं चूक रहे हैं। इस योजना में प्रदेश की 1.25 करोड़ से अधिक महिलाओं को सरकार हर महीने 1000 रुपये दे रही है। 

और हो भी क्यों न? जब प्रदेश में कुल 5.39 करोड़ मतदाताओं में से 48.20 प्रतिशत मतदाता महिलाएं हैं और चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत भी बढ़ा है, तो जाहिर है चुनाव प्रचार के केंद्र में महिलाएं ही रहेंगी। यही नहीं, मतदाता संक्षिप्त पुनरीक्षण की कार्रवाई में प्रदेश के 52 में से 41 जिले ऐसे पाए गए जहां महिला वोटरों के नाम ज्यादा जुड़े हैं। कम से कम 50 विधानसभा सीटों पर महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक है। इनमें अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए आरक्षित 18 सीटें भी शामिल हैं।

भाजपा में एक तबके का मानना है कि राज्य सरकार की महिलाओं तक पहुंच बढ़ाने की कोशिश और उनके जीवन को बेहतर बनाना इस चुनाव में गेमचेंजर साबित होगा और पार्टी को 2018 में हारी हुई सीटों को जीतने में भी मदद मिलेगी। 2018 में भाजपा को कुल 56 सीटों का नुकसान हुआ था हालांकि उसका वोट प्रतिशत कांग्रेस से एक प्रतिशत ज्यादा ही था।

मतदाताओं के मोर्चे को छोड़ दें, तो फिलहाल चौहान के सामने तात्कालिक संकट कुछ और है। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच से निकलकर आ रहे बगावत के सुरों और आलोचनाओं से निपटना है। हाल ही में शिवराज और भाजपा को एक बड़ा झटका लगा जब पूर्व मुख्यमंत्री और जनसंघ के संस्थापकों में से एक कैलाश जोशी के पुत्र और तीन बार विधायक रह चुके दीपक जोशी ने औपचारिक रूप से कांग्रेस का हाथ थाम लिया।

दीपक का शिवराज और भाजपा से दूर हो जाना मायने रखता है। दोनों ने एक ही समय में एक ही कॉलेज में पढ़ाई की है, दोनों ने एक ही समय में छात्र राजनीति में भी कदम रखा था। फर्क सिर्फ इतना है कि दीपक से पहले चौहान विधायक चुनकर राजनैतिक जीवन में प्रवेश कर गए। यहां गौर करने वाली एक बात यह भी है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के लिए भी कैलाश जोशी का परिवार खास स्थान रखता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तब देखने में आया जब फरवरी 2014 में नीमच जिले के ग्राम भगवानपुरा में एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी काफी देर तक दीपक का हाथ थामे उनके साथ मंच पर बड़े ही सहज भाव से नजर आए थे।

पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि राज्य में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, प्रदेश में दीपक, राधेलाल बघेल जैसे कई असंतुष्ट नेता अपने असंतोष को स्वर देते नजर आएंगे। शिवराज के लिए अपने ही नेताओं की ये चेतावनी बहुत मायने रखती है। फिलहाल स्थिति यह है कि प्रदेश भाजपा के कई बड़े नेता खुलकर पार्टी और कुछ नेताओं की आलोचना करने में जुट गए हैं। राज्यसभा के पूर्व सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुनन्दन शर्मा भी सार्वजनिक तौर पर संगठन के कार्यकलापों की आलोचना कर चुके हैं। उनका आरोप है कि “पांच नेताओं को प्रदेश के संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है लेकिन वे संगठन नहीं चला पा रहे हैं।” उन्होंने प्रदेश संगठन की तुलना ‘द्रौपदी’ से कर डाली है।

अन्य नेता जो मुखर हो कर पार्टी की आलोचना कर रहे हैं, उनमे पूर्व विधायक सत्यनारायण सत्तन, पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे और पूर्व राज्यमंत्री अनूप मिश्र, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के अलावा जैन समुदाय से आने वाले कद्दावर नेता मुकेश जैन भी शामिल हैं।

ग्राफिक

भाजपा में अंदरूनी कलह के कई अजीबोगरीब मामले भी सामने आए हैं। पहली बार ऐसा हो रहा है कि एक साथ कई मंत्रियों के खिलाफ उन्हीं के इलाके के नेता खुलकर शिकायतें कर रहे हैं। ताजा उदाहरण पिछले महीने का है, जब मुख्यमंत्री के सामने उनके निवास में हो रही उज्जैन कोर कमेटी की बैठक में उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के खिलाफ पूर्व मंत्री पारस जैन और पूर्व सांसद डॉ. चिंतामणि मालवीय समेत अन्य नेताओं ने एक सुर में मोर्चा खोल दिया। खास बात यह है कि ऐसे शिकवे-शिकायतें अब कोर ग्रुप की बैठकों तक पहुंच चुके हैं। 

शिवराज पर एक और दबाव मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़कर आए ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों को साथ बनाए रखने का है। भाजपा में आने के बाद सिंधिया पहली पंक्ति के नेताओं में शुमार हैं। इस पंक्ति में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष वीडी शर्मा, मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, मंत्री गोपाल भार्गव, मंत्री भूपेंद्र सिंह जैसे दिग्गज आते हैं। यह किसी से छुपा नहीं है कि ग्वालियर-चंबल इलाके में अफसरों की तैनाती सिंधिया के हिसाब से ही हुई है। सिंधिया समर्थक उपचुनाव में जीत गए तो उनका मनोबल बढ़ा हुआ है और वे टिकट के इंतजार में हैं। सिंधिया अपने समर्थकों को जितनी टिकट कांग्रेस में रहते दिलवाते थे, उतनी वे यदि आगामी विधानसभा चुनाव में दिलवा पाए, तो सिंधिया से चौहान और राज्य के अन्य बीजेपी के दिग्गज नेताओं को खतरा होना स्वाभाविक ही है।

चौहान के सामने सबसे बड़ी चुनौती एक दर्जन से ज्यादा उन विधानसभा सीटों की है जो भाजपा लंबे समय से जीतती आ रही है। शिवराज भाजपा की इस विरासत को कैसे बचा पाएंगे इसके बारे अभी कुछ भी कहा नहीं जा सकता।

उधर, कांग्रेस पार्टी कर्नाटक की तर्ज पर मध्य प्रदेश में भी ‘पे-सीएम’ कैंपेन चलाकर शिवराज और भाजपा को घेरने की तैयारी में है। आगामी चुनाव में कांग्रेस पार्टी की रणनीति 2018 के मुकाबले एकदम भिन्न है। 2018 के चुनाव में पार्टी ने राहुल गांधी को ज्यादा तवज्जो दी थी। इस बार कांग्रेस प्रियंका गांधी वाड्रा के चेहरे पर दांव लगा रही है। इसकी झलक भी मिल चुकी है। इस बार के चुनावी अभियान का शंखनाद जबलपुर से किया गया जिसका चेहरा प्रियंका गांधी रहीं, राहुल नहीं। प्रियंका गांधी ने सभा में भाजपा सरकार पर जो आरोप लगाए उन पर भाजपा चुप्पी लगा गई है। भ्रष्टाचार, घोटाले और महंगाई के साथ-साथ लोगों से किए झूठे वादे के आरोपों पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से अभी कोई जवाब नहीं आया है। फिलहाल, शिवराज सिंह चौहान अभी केवल विपक्षियों के आरोपों को देख-सुन रहे हैं क्योंाकि अपना कुनबा बचाने की जद्दोजेहद ने उन्हें परेशान कर रखा है।

इसके बावजूद कांग्रेस को घेरने के लिए भाजपा ने बिसात बिछानी शुरू कर दी है। पार्टी जिला स्तर पर तीन-तीन प्रवक्ताओं की नियुक्ति कर रही है। इन तीन प्रवक्ताओं में एक महिला प्रवक्ता होगी। पार्टी ने प्रभारी और सह-प्रभारी के नामों का एलान भी कर दिया है। हर विधानसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी उसके भौगोलिक, राजनीतिक और जातीय परिदृश्य को ध्यान में रख कर अन्य राज्य के निर्वाचित प्रतिनिधियों और कद्दावर नेताओं को दी जा चुकी है। पार्टी ने इस बार उन चेहरों को जिम्मेदारी दी है जिनके पास चुनाव जिताने की काबिलियत रही है और उन खुशकिस्मत नेताओं पर दांव आजमाने का फैसला किया है जो विपक्षी पार्टियों के किसी भी कद्दावर उम्मीदवार को टक्कर देने में समर्थ और हार को जीत में बदलने में सक्षम हों।

भाजपा ने मध्य प्रदेश का चुनाव प्रभारी भूपेन्द्र यादव को बनाया है। गृह मंत्री अमित शाह के मिस्टर भरोसेमंद कहे जाने वाले भूपेंद्र बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र के चुनाव प्रभारी रह चुके हैं और तीनों ही राज्यों में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही है। मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए चुनाव प्रचार की कमान खुद शिवराज सिंह चौहान संभाल रहे हैं। प्रदेश के इतिहास में पहली बार एक नेता के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाना है। यही वजह है कि आगामी विधानसभा चुनाव को शिवराज सिंह चौहान के अब तक के राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।

भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने शिवराज के समर्थन में अपनी ताकत झोंक दी है। भाजपा जन आशीर्वाद यात्रा निकाल कर 10 हजार किलोमीटर से अधिक का सफर तय करेगी, 678 रथ सभाएं की जाएंगी और 211 बड़ी सभाओं के द्वारा जनता और मतदाताओं के बीच प्रचार किया जाएगा। भाजपा अपने 39 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर चुकी है और जल्द ही दूसरी सूची की घोषणा भी करने जा रही है।

वहीं कांग्रेस घर-घर चलो अभियान, हारी हुई सीटों पर फोकस और पांच गारंटी का वादा लेकर मतदाताओं के बीच पहुंच रही है। पार्टी उन हारे हुए उम्मीदवारों पर भी दांव लगाने की तैयारी में है, जो जीत का मोहरा (पिछली बार ऐसे दावेदारों के टिकट काट दिए गए थे) बनते नजर आ रहे हैं। पार्टी उन विधानसभा सीटों पर पहले उम्मीदवार घोषित करने जा रही है जहां भाजपा लगातार चुनाव जीत रही है ताकि कांग्रेस एंटी-इनकम्बेंसी का फायदा उठाने में कामयाब हो।

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