तकरीबन दो दशक बाद चंडीगढ़ की हरनाज कौर संधू के सिर ‘मिस यूनिवर्स 2021’ का खिताब सजा तो वे यह उपलब्धि हासिल करने वाली तीसरी भारतीय बनीं। उनके पहले यह खिताब 1994 में अभिनेत्री सुष्मिता सेन और 2000 में लारा दत्ता की शोभा बढ़ा चुका है। दरअसल भारतीय सुंदरियों का विश्व मंच पर तहलका कोई नया नहीं है। लगभग उतनी ही पुरानी यह आलोचना है कि यह बाजार का खेल है और स्त्री अस्मिता के खिलाफ है। लेकिन अब काफी कुछ बदला है।
पहली बार 1966 में किसी भारतीय महिला ने अपनी सुंदरता का लोहा मनवाया था। तब रीटा फारिया मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने वाली न सिर्फ पहली भारतीय, बल्कि पहली एशियाई महिला बनीं। भारतीय सुंदरियों ने अब तक तीन बार मिस यूनिवर्स, छह बार मिस वर्ल्ड और एक बार मिस अर्थ खिताब जीता है।
हालांकि 1966 के बाद लंबे अरसे तक भारत को कोई सफलता नहीं मिली। लेकिन 1990 के दशक में एक के बाद एक कई ‘सुंदरियों’ ने अपनी सशक्त मौजूदगी से सबको हैरान कर दिया। सुष्मिता सेन, ऐश्वर्या राय, लारा दत्ता, डायना हेडन और युक्ता मुखी जैसी सुंदरियों ने उस दौर में भारत का डंका बजाया। सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय ने एक ही साल में दो अंतरराष्ट्रीय ब्यूटी पेजेंट भारत के नाम किए।
रीटा फारिया के 28 साल बाद 1994 में नीली आंखों वाली ऐश्वर्या राय ने मिस वर्ल्ड का खिताब जीता था। उसी साल सुष्मिता सेन मिस यूनिवर्स का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय बनीं। उसके बाद 1997 में डायना हेडन, 1999 में युक्ता मुखी ने भी यह खिताब अपने नाम किया। अगले ही साल बॉलीवुड की ‘देसी गर्ल’ प्रियंका चोपड़ा मिस वर्ल्ड बनीं। स्वीडन और ब्रिटेन के बाद भारत विश्व का तीसरा देश है, जिसने मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता का खिताब लगातार दो बार (1999 और 2000) अपने नाम किया।
सुष्मिता सेन की जीत के छह साल बाद 2000 में 22 साल की लारा दत्ता ने मिस यूनिवर्स ताज जीता था।
भारतीय अभिनेत्री निकोल फारिया ने 2010 में मिस अर्थ का खिताब जीता। मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में प्रियंका चोपड़ा के 17 साल बाद 2017 में मानुषी छिल्लर ने यह खिताब अपने नाम किया। अब 2021 में हरनाज ने अंतरराष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिता में भारत का परचम लहराया है।
हिंदी लेखिका मैत्रेयी पुष्पा कहती हैं, “कोई बताए विश्व सुंदरी देश के लिए क्यों गर्व का विषय है? उनका समाज में क्या योगदान है, सिवाय सौंदर्य उत्पादों का बाजार बढ़ाने और बाकी स्त्रियों को हीनता से भर देने के! जबसे विश्व सुंदरियां आई हैं तब से सौंदर्य प्रसाधन बढ़ गए हैं। पहले बनावटी सौंदर्य का क्रेज नहीं था। इनके नक्शे कदम पर चलकर हमारी युवा पीढ़ी अपने लक्ष्य से भटक रही है।”
हालांकि पत्रकार और साहित्यकार गीताश्री इन बातों से इत्तेफाक नहीं रखतीं। वे कहती हैं “कुल मिलाकर यह बाहरी सौंदर्य की खोज नहीं बल्कि ‘ब्यूटी विद ब्रेन’ की खोज है। रही बात सौंदर्य प्रसाधनों के प्रचार-प्रसार की, तो ऐसी प्रतियोगिताएं नहीं होंगी तब भी इनका बाजार बढ़ेगा, ये काम अभिनेत्रियां करेंगी और वे कर भी रही हैं। बेशक इसमें बाजार घुसा हुआ है। आरोप लगते हैं कि इसने स्त्री को वस्तु में बदल दिया है। लेकिन स्त्री को वस्तु तो इस समाज ने बनाया है। अगर बाजार ने उन्हें वस्तु बनाया है, तो उन्हें मौके भी दिए हैं। उनके सपनों को पूरा करने के लिए आकाश भी दिया है।”