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80 पार के युवा//शख्सियतः जब तक जां में है जां...

मिलिए ऐसी शख्सियतों से, जिनके लिए उम्र बस एक नंबर भर है
गुलजार

अकसर कहा जाता है कि उम्र केवल एक आंकड़ा है। हमारे आसपास ऐसे कई लोग हैं जो इस बात की तस्दीक करते हैं। उन लोगों के जुनून, उनकी ऊर्जा, उनकी लगन और उनकी प्रतिभा पर उम्र का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। उनका अनुभव ही उन्हें समृद्ध करता है। उनकी जिजीविषा को देखकर आम जनमानस चकित होता है कि आखिर यह जुनून, यह समर्पण कहां से आ रहा है। उन सभी लोगों ने कर्म के सिद्धांत को समझा है। कर्म उनकी प्राथमिकता में सर्वोच्च स्थान पर है। उनका जीवन कर्म को समर्पित है। ये लोग आधुनिक युग के कर्मयोगी हैं। आउटलुक के इस अंक में हम कुछ ऐसे ही कर्मयोगियों को आपसे रू-ब-रू कराने लाए हैं, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन अपने कार्य को समर्पित कर दिया और समाज में ख्याति, प्रेम, और सम्मान हासिल किया। ये लोग आज भी निरंतर कार्यरत हैं और नई पीढ़ी को प्रेरित करने और जीवन के सिद्धांत समझाने का काम कर रहे हैं।

गुलजार (1934)

गुलजार का जन्म 18 अगस्त 1934 को मौजूदा पाकिस्तान के इलाके दीना में हुआ। उनकी किशोरावस्था में हुए देश के विभाजन का असर उन पर इतना गहरा था कि गुलजार अकसर नींद से जाग जाते थे। किताबों का उन्हें शौक था। किस्से-कहानियां, कविताएं वे चाव से पढ़ते थे। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें बड़े भाई के पास मुंबई आना पड़ा। वहां गुलजार ने मोटर गैराज में काम शुरू किया। काम के साथ लिखना-पढ़ना भी चलता रहता। इसी दौरान साहित्य और सिनेमा से जुड़े लेखकों से दोस्ती हो गई। गीतकार शैलेंद्र ने बिमल रॉय की फिल्म बंदिनी के लिए गीत लिखने को उनसे कहा। फिर उन्होंने फिल्म आनंद के संवाद लिखे। उन्होंने आंधी, मौसम, कोशिश, परिचय, माचिस, इजाजत जैसी अद्भुत फिल्में बनाईं। दूरदर्शन के लिए मिर्जा गालिब टीवी सीरियल बनाया। अब भी गीत लेखन और बाल साहित्य रचने का काम जारी है।

अडूर गोपालकृष्णन (1941)

अडूर गोपालकृष्णन

अडूर गोपालकृष्णन का जन्म 3 जुलाई 1941 को केरल में हुआ था। गांधीग्राम ग्रामीण इंस्टिट्यूट से अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, लोक प्रशासन में शिक्षा ग्रहण करने के बाद गोपालकृष्णन ने तमिलनाडु में सरकारी नौकरी की मगर उनके मन में फिल्म बनाने का सपना था। उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अपने ख्वाब को पूरा करने निकल पड़े। 1972 में अडूर गोपालकृष्णन ने अपनी पहली फिल्म स्वयंवरम बनाई, जो मलयाली सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई। इससे गोपालकृष्णन को ख्याति मिली। उन्होंने कई महत्वपूर्ण और सार्थक फिल्में बनाई हैं जिन्हें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म श्री, पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही अडूर गोपालकृष्णन को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। अडूर गोपालकृष्णन आज भी सक्रिय हैं और उनसे सिनेमा के विद्यार्थी काफी कुछ सीख रहे हैं।

कर्ण सिंह (1931)

डॉ. कर्ण सिंह

कर्ण सिंह का जन्म 9 मार्च 1931 को हुआ था। उनके पिता महाराजा हरि सिंह कश्मीर रियासत के अंतिम राजा थे। भारत की आजादी के बाद जब कश्मीर का भारत में विलय हुआ तो कर्ण सिंह ने कश्मीर रियासत के प्रेसिडेंट और गवर्नर का पदभार संभाला। कर्ण सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे। उन्होंने लंबे समय तक राज्यसभा और लोकसभा में अपनी उपस्थिति से देश के नागरिकों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। कर्ण सिंह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चांसलर भी रहे। संस्कृति, दर्शन, राजनीति में अपार अनुभव के कारण कर्ण सिंह मंत्री पद पर भी आसीन हुए। भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। कर्ण सिंह उम्र के इस पड़ाव पर भी संसद टीवी के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं और अपने ज्ञान से सभी नागरिकों का मार्गदर्शन करते हैं।

श्याम बेनेगल (1934)

श्याम बेनेगल

हिन्दी सिनेमा के विख्यात फिल्मकार श्याम बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 को हुआ था। उनके पिता कुशल फोटोग्राफर थे। पिता के सान्निध्य में उनमें फोटोग्राफी का शौक पैदा हुआ। यह शौक 12 वर्ष की उम्र में परवान चढ़ा जब उन्होंने अपने पिता के कैमरे से फिल्म बनाई। समय के साथ श्याम बेनेगल का सिनेमा में रुझान बढ़ता गया। उन्होंने एक विज्ञापन एजेंसी में कॉपीराइटर की नौकरी की। इस यात्रा में श्याम बेनेगल ने खूब विज्ञापन और डॉक्युमेंटरी फिल्में बनाईं। 1973 में श्याम बेनेगल ने अपनी फिल्म अंकुर बनाई, जो स्त्री शोषण के मुद्दे पर केंद्रित थी। इसके बाद श्याम बेनेगल ने निशांत, मंथन, भूमिका, मंडी, जुबैदा, जुनून जैसी फिल्में बनाईं। उनके बनाए अहम टीवी सीरियल भारत एक खोज और संविधान थे। वे राज्यसभा सांसद रहे और उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

अमर्त्य सेन (1933)

अमर्त्य सेन

अमर्त्य सेन का जन्म 3 नवम्बर 1933 को हुआ था। कोलकाता के शांति निकेतन और प्रेसिडेंसी कॉलेज से शिक्षा पूर्ण करके उन्होंने कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। 1960 और 1970 के दशक में अमर्त्य सेन ने अपने शोधपत्रों में ‘सोशल चॉइस’ के सिद्धांत पर काम किया। 1981 में उनकी चर्चित पुस्तक ‘पावर्टी एंड फेमिंस: ऐन एस्से ऑन एनटाइटलमेंट एंड डेप्रिवेशन’ प्रकाशित हुई। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने बताया कि अकाल सिर्फ भोजन की कमी से नहीं बल्कि खाद्यान्न वितरण में असमानता के कारण भी होता है। 1960-61 में अमर्त्य सेन अमेरिका में मैसेचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में विजिटिंग प्रोफेसर रहे। 1987 में वे हार्वर्ड में पढ़ाने चलग गए। कल्याणकारी अर्थशास्त्र के लिए उन्हें 1998 का नोबेल पुरस्कार मिला। अर्थशास्त्र का नोबेल पाने वाले वह पहले एशियाई हैं। भारत सरकार ने उन्हें 1999 में भारत रत्न से सम्मानित किया। देश की आर्थिक नीति पर वे आज भी मुखर हैं।

अमरिंदर सिंह (1942)

अमरिंदर सिंह

अमरिंदर सिंह का जन्म 11 मार्च 1942 को पटियाला में हुआ था। अमरिंदर सिंह ने दून स्कूल और लॉरेंस स्कूल से शिक्षा ग्रहण की। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और भारतीय सैन्य अकादमी से स्नातक के बाद जून 1963 में वे भारतीय सेना में शामिल हुए और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में हिस्सा लिया। सेना से इस्तीफा देकर वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और 1980 में सांसद चुने गए। 2002 में अमरिंदर सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री बने। 2017 में अमरिंदर दूसरी बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने। 2021 में उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़कर पंजाब लोक कांग्रेस नाम का दल बनाया। पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद उनकी पार्टी का भाजपा में विलय हो गया। अमरिंदर सिंह अब भी पंजाब की राजनीति में सक्रिय हैं।

पूरन चंद्र वडाली ( 1940)

पूरन चंद्र वडाली

पूरन चंद्र वडाली का जन्म 4 जून 1940 को हुआ था। परिवार पारंपरिक रूप से गायन में सक्रिय था पर पूरन का रुझान पहलवानी में था। पिता के कहने पर उन्होंने संगीत की तालीम लेनी शुरू की। छोटे भाई प्यारेलाल के साथ गायन के दौरान कई मौके ऐसे आए जब लोगों ने इनका मजाक उड़ाया। फिर धीरे-धीरे वडाली बंधु को सम्मान मिलने लगा और इन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति पाई। पटियाला घराने का नाम इन्होंने विश्व भर में रोशन किया। इनकी गायकी में सूफी रंग रहा जिसमें इन्होंने दुनिया भर के रसिकों को सराबोर किया। प्यारेलाल के निधन के बाद यह जोड़ी अधूरी रह गई मगर पूरन चंद्र वडाली ने हिम्मत नहीं छोड़ी। आज भी वे नई पीढ़ी के गायकों के साथ कार्यक्रम करते हैं।

येसुदास  (1940)

येसुदास

के.जे. येसुदास का जन्म 10 जनवरी, 1940 को केरल में हुआ था। उनके पिता प्रसिद्ध संगीतकार और स्टेज ऐक्टर थे। येसुदास ने अपना पहला लोकप्रिय गीत 1961 में संगीत गाया। इसके बाद उन्होंने दक्षिण भारतीय फिल्मों में अपनी गायकी से धूम मचा दी। सत्तर के दशक में येसुदास ने सलिल चौधरी, बप्पी लहरी, रविंद्र जैन, खय्याम जैसे संगीतकारों के साथ हिन्दी फिल्मों में गाया। केरल में लोग उन्हें ईश्वर की आवाज कहते हैं। उन्होंने अलग-अलग भाषाओं में अब तक 50 हजार से अधिक गाने गाए हैं। आठ बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से उन्हें सम्मानित किया गया है।

रतन टाटा (1937)

रतन टाटा

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को बंबई में हुआ था। कैंपियन स्कूल से शुरूआती पढ़ाई के बाद कार्नेल युनिवर्सिटी, लंदन से उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की, फिर हार्वर्ड से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम किया। 1991 में पिता जेआरडी टाटा के उत्तराधिकारी बनने के बाद अपने कार्यकाल में रतन टाटा ने जगुआर, लैंड रोवर जैसी कंपनियों का अधिग्रहण किया। छोटी कार टाटा नैनो के कारखाने को लेकर वे विवादों में रहे। उनका बनवाया कैंसर हॉस्पिटल बहुत लोकप्रिय है। रतन टाटा ने टाटा कारोबार की चैरिटी को काफी आगे बढ़ाया है। रिटायरमेंट के बाद भी वे समाज कल्याण में सक्रिय हैं। वृद्ध लोगों के लिए रतन टाटा ने हाल के दिनों में ओल्ड एज होम का उद्घाटन किया है। समाज के प्रति रतन टाटा का समर्पण नए उद्यमियों को प्रेरित करता है।

विनोद कुमार शुक्ल (1937)

विनोद कुमार शुक्ल

विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ। बचपन में उनकी मां ने उन्हें बांग्ला साहित्य पढ़ने को प्रेरित किया। विनोद कुमार शुक्ल ने आधा दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे हैं मगर उनकी पहचान हमेशा एक कवि के रूप में ही हुई। 1971 में उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ, लेकिन 1981 में आए दूसरे संग्रह वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहन कर विचार की तरह ने उन्हें पहचान दिलाई। दीवार में एक खिड़की रहती थी और नौकर की कमीज विनोद कुमार शुक्ल के सबसे लोकप्रिय उपन्यास हैं। दीवार में एक खिड़की रहती थी को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। आज भी वे रोज लेखन और पठन-पाठन में व्यस्त रहते हैं।

आशा भोसले (1933)

आशा भोसले

आशा भोसले का जन्म 8 सितंबर 1933 को महाराष्ट्र के सांगली में हुआ था। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर संगीतकार थे। निर्देशक वी शांताराम की फिल्म अंधों की दुनिया से उनका हिन्दी सिनेमा में सफर शुरू हुआ। जिंदगी में बड़ा बदलाव तब आया जब महान संगीतकार ओपी नैयर ने उन्हें सीआइडी और नया दौर में गाने का अवसर दिया। आशा भोसले शास्त्रीय संगीत, पाश्चात्य संगीत, रॉक एंड रोल, सभी तरह के गीत गाने में माहिर थीं। यह आशा भोसले का जुनून ही था कि उनके नाम दुनिया में सबसे अधिक गाने रिकॉर्ड करने का विश्व रिकॉर्ड दर्ज है। हाल तक आशा भोसले गायन में सक्रिय रही हैं। आज भी रियलिटी शो और समारोहों आदि में आशा भोसले नजर आती हैं।

फारूक अब्दुल्ला (1937)

फारूक अबदुल्ला

फारूक अब्दुल्ला का जन्म 21 अक्टूबर 1937 को कश्मीर में हुआ था। पिता शेख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के एक लोकप्रिय नेता थे। फारूक अब्दुल्ला के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1980 में हुई, जब उन्होंने श्रीनगर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत गए। 1982 में वे राज्य के मुख्यमंत्री बने। फारूक अब्दुल्ला संसद सदस्य के रूप में लगातार सक्रिय रहे। सितंबर 2019 में उन्हें सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में ले लिया गया। उन्हें नजरबंद कर दिया गया। 2020 में नजरबंदी से आजादी के बाद उन्होंने गुपकार एलायंस बनाकर कश्मीर में चुनाव की रणनीति तैयार की। फारुक अब्दुल्ला आज भी कश्मीर की राजनीति में खूब सक्रिय हैं।

ई श्रीधरन (1932)

ई. श्रीधरन

12 जून 1932 को केरल में जन्मे ई श्रीधरन ने आंध्र प्रदेश के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करने के बाद कुछ समय तक शिक्षण कार्य किया। फिर भारतीय इंजीनियरिंग सेवा में उनका चयन हो गया। भारतीय रेलवे सेवा में आने के बाद श्रीधरन ने 1970 में कलकत्ता मेट्रो प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। उन्हें भारत के ‘मेट्रो मैन’ के रूप में भी जाना जाता है। श्रीधरन 1995 से 2012 तक दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के निदेशक रहे और दिल्ली मेट्रो की स्थापना में उनका योगदान रहा। भारत सरकार ने उन्हें 2001 में पद्म श्री तथा 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया। दिल्ली मेट्रो के साथ ही श्रीधरन लखनऊ मेट्रो और कोच्चि मेट्रो की स्थापना में भी अहम सूत्रधार रहे। उम्र के इस पड़ाव पर भी श्रीधरन सक्रिय हैं। वह जयपुर, आंध्र प्रदेश और कई अन्य प्रदेशों की मेट्रो परियोजनाओं में सलाहकार की भूमिका निभा रहे हैं।

वहीदा रहमान (1938)

वहीदा रहमान

वहीदा रहमान का जन्म 3 फरवरी 1938 को हुआ था। उन्हें बचपन से ही नृत्य का शौक था। परिवार को आर्थिक सहयोग करने के लिए छोटी उम्र में ही उन्होंने फिल्मों में काम करने का निर्णय लिया। तेलुगु फिल्म में अभिनय से शुरुआत करने वाली वहीदा के जीवन में बड़ा बदलाव गुरु दत्त के साथ की गई फिल्मों से आया। प्यासा, साहिब बीवी और गुलाम, चौदहवीं का चांद, कागज के फूल से वहीदा रहमान की पहचान बनी। गाइड और तीसरी कसम से अभिनय की विविधता प्रदर्शित कर के वहीदा पहली श्रेणी की अदाकारा बनीं। आज भी वहीदा रहमान काफी सक्रिय हैं। 2018 में विश्वरूपम 2 और 2021 में स्केटर गर्ल में वहीदा रहमान नजर आईं।

जतिन दास (1941)

जतिन दास

जतिन दास का जन्म 2 दिसम्बर 1941 को हुआ था। मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स से शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने देश और विदेश में अपनी पेंटिंग की प्रदर्शनी आयोजित की। 50 वर्ष के करियर में जतिन दास ने 68 से अधिक एकल पेंटिंग प्रदर्शनियां लगाई हैं। कला के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए जतिन दास को भारत सरकार ने 2012 में पद्म भूषण से सम्मानित किया। जतिन दास की पुत्री नंदिता दास जानी-मानी अभिनेत्री और फिल्मकार हैं। आज भी जतिन दास सक्रिय हैं और कला की दुनिया पर उनकी पैनी नजर है।

इरफान हबीब (1931)

इरफान हबीब

प्रसिद्घ इतिहासकार इरफान हबीब का जन्म 10 अगस्त 1931 को गुजरात में हुआ था। उनके ऊपर बचपन में अपने पिता के विचारों का गहरा असर पड़ा। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई के बाद देश लौटकर उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। अभी वे वहां प्रोफेसर एमेरिटस हैं और 1997 से ही ब्रिटिश रॉयल हिस्टॉरिकल सोसायटी के चयनित फेलो हैं। इरफान हबीब को प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास पर मार्क्सवादी इतिहासलेखन के कारण जाना जाता है। इतिहास के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए इरफान हबीब को भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। ऑक्सफोर्ड के न्यू कॉलेज ने 2021 में उन्हें मानद फेलो बनाया है। वे भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद  के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे आज भी समाज में अमन-चैन, भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता, संप्रभुता, राष्ट्रवाद और संस्कृति के सवालों पर मुखर हैं।

रस्किन बॉन्ड (1934)

रस्किन बॉन्ड

रस्किन बॉन्ड का जन्म 19 मई 1934 को भारत में हुआ था। जब रस्किन बॉन्ड 10 वर्ष के हुए, उनके पिता की युद्ध में मृत्यु हो गई। इसका रस्किन पर गहरा प्रभाव पड़ा।  कम उम्र से ही उनको साहित्य में रुचि थी। कहानियां लिखने-पढ़ने का शौक था। रस्किन बॉन्ड ने महज 17 साल की उम्र में अपनी प्रसिद्ध कृति 'द रूम ऑन द रूफ' लिखी, जो देहरादून में उनके अनुभवों से प्रभावित थी। इसके लिए उन्हें पुरस्कार भी मिले। इसके बाद रस्किन बॉन्ड ने अपना सारा जीवन साहित्य लेखन को समर्पित कर दिया। उन्होंने कई उपन्यास, लघु कथाएँ और निबंध लिखे हैं। अपने जीवन में रस्किन बॉन्ड तकरीबन 500 किताबें लिख चुके हैं। रस्किन बॉन्ड की कहानियों पर हिंदी सिनेमा में जुनून,  ब्लू अंब्रेला और सात खून माफ जैसी फिल्में बनाई गई हैं। रस्किन बॉन्ड की लिखी किताबें आज भी निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। इसके साथ ही युवा लेखकों को लेखन की बारीकियां सिखाने का काम भी रस्किन बॉन्ड द्वारा किया जा रहा है। वे साहित्य अकादमी, पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित हैं और मसूरी में रहते हैं।

हरिप्रसाद चौरसिया (1938)

हरिप्रसाद चौरसिया

हरिप्रसाद चौरसिया का जन्म 1 जुलाई 1938 को हुआ।  हरिप्रसाद चौरसिया ने पंडित भोलानाथ से आठ साल तक बांसुरी की शिक्षा ली। इसके बाद वे मुंबई चले आए और उन्होंने हुस्नलाल भगतराम, सी रामचंद्र, नौशाद जेसे शीर्ष संगीतकारों के साथ काम किया। इसी दौरान उनकी जोड़ी संतूरवादक शिवकुमार शर्मा के साथ बनी और दोनों ने हिन्दी फिल्मों में संगीत देना शुरू किया। नई पीढ़ी को संगीत सिखाने के लिए मुंबई और भुवनेश्वर में उन्होंने वृंदावन गुरुकुल की स्थापना की। हरिप्रसाद चौरसिया को पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। हरिप्रसाद चौरसिया आज भी देश भर में बांसुरी वादन का कार्यक्रम कर संगीत प्रेमियों को आनंदित करते हैं।

ममता कालिया (1940)

ममता कालिया

लेखिका ममता कालिया का जन्म 2 नवम्बर 1940 को हुआ था। उनके पिता ऑल इंडिया रेडियो में कार्यरत थे। ममता कालिया ने दिल्ली में रहकर पढ़ाई की और एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय, मुंबई में शिक्षण किया। अपने साहित्यिक जीवन में ममता कालिया ने कविताएं, उपन्यास और संस्मरण लिखे हैं। उनकी किताबें पाठकों में बेहद लोकप्रिय रही हैं। उन्हें उनके उपन्यास “दुक्खम सुक्खम” के लिए व्यास सम्मान मिला है। इसके अलावा उन्हें राम मनोहर लोहिया सम्मान और महादेवी वर्मा सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। ममता कालिया आज भी लेखन में सक्रिय हैं और फिलहाल इलाहाबाद के इतिहास पर एक किताब लिख रही हैं।

अशोक वाजपेयी (1941)

अशोक वाजपेयी

अशोक वाजपेयी का जन्म 16 जनवरी 1941 को हुआ था। अशोक वाजपेयी ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की नौकरी की। इस दौरान उन्होंने साहित्यिक केंद्रों की स्थापना और विकास में अहम भूमिका निभाई। एक कवि और कलाविद के रूप में उनकी ख्याति है। अशोक वाजपेयी महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पहले कुलपति रह चुके हैं। कन्नड़ के लेखक एमएम कलबुर्गी की हत्या के विरोध में उन्होंने भी कई बौद्धिकों के साथ प्रतिरोध का स्वर मिलाते हुए साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया था। अशोक वाजपेयी आज भी रजा फाउंडेशन के माध्यम से सक्रिय हैं और वैचारिक गोष्ठियों, सम्मेलनों में उनकी मौजूदगी बनी हुई है।

रोमिला थापर (1931)

रोमिला थापर

प्रतिष्ठित इतिहासकार रोमिला थापर का जन्म 30 दिसम्बर 1931 को हुआ। उन्हें मूल रूप से प्राचीन भारतीय इतिहास पर उनके शोध, उनके व्याख्यानों, उनकी किताबों के लिए जाना जाता है। रोमिला थापर ने लम्बे समय तक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य किया। देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय रोमिला थापर को डॉक्टरेट और अन्य उपाधियों से सम्मानित कर चुके हैं। नब्बे पार रोमिला थापर आज भी सक्रिय हैं और भारतीय राजनीति व इतिहास से जुड़े मुद्दों पर अपनी  बेबाक प्रतिक्रियाएं देती रहती हैं।

काशीनाथ सिंह (1937)

काशीनाथ सिंह

काशीनाथ सिंह का जन्म 1 जनवरी 1937 को हुआ। उन्होंने बनारस हिंदू युनिवर्सिटी में पढ़ाई की और वहीं हिंदी विभाग के प्रमुख बनकर रिटायर हुए। अपना मोर्चा, रेहन पर रग्घू, काशी का अस्सी काशीनाथ के चर्चित उपन्यास हैं। उन्हें साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया है। बनारस की सांस्कृतिक-साहित्यिक गोष्ठियों में काशीनाथ सक्रिय रहते हैं। आज भी वे विद्यार्थियों से संवाद करते हैं। उनके उपन्यास काशी का अस्सी पर मोहल्ला अस्सी नाम की फिल्म भी बन चुकी है।

मृदुला गर्ग (1938)

मृदुला गर्ग

मृदुला गर्ग का जन्म 25 अक्टूबर 1938 को कलकत्ता में हुआ था। उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से एमए किया, फिर इन्द्रप्रस्थ कॉलेज और जानकी देवी कॉलेज में बतौर प्राध्यापिका अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान उन्होंने सामाजिक और आर्थिक शोषण जैसे विषयों पर भी गहन अध्ययन किया। मृदुला गर्ग ने हिंदी और अंग्रेजी भाषा में लिखा है। उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध, संस्मरण आदि विधाओं में लेखन किया। उनकी 30 से अधिक किताबें हिंदी में प्रकाशित हैं। मृदुला गर्ग को 2013 में उनके उपन्यास मिलजुल मन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मृदुला गर्ग आज भी निरंतर सक्रिय हैं और निरंतर उनकी कहानी और अनुवाद प्रकाशित हो रहे हैं।

शरद पवार (1940)

शरद पवार

शरद पवार का जन्म 12 दिसंबर 1940 को  हुआ था। स्कूल और कॉलेज में ही राजनीति की तरफ उनका रुझान पैदा हो गया था। शरद पवार 1967 में महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य बने और अगले दस साल तक विभिन्न विभागों के मंत्री रहे। 1978 में वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। उनका कार्यकाल दो साल का रहा। 1984 में वे लोकसभा के सांसद बने मगर 1985 में इस्तीफा देकर 1988 में फिर से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। 1991 में वे देश के रक्षा मंत्री बने। 1999 में कांग्रेस पार्टी से अलग होकर शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई। वे बीसीसीआई के चेयरमैन और आईसीसी के प्रेसिडेंट भी रहे। महाराष्ट्र की पिछली सरकार में उनकी अहम भूमिका थी।

राजमोहन गांधी (1935)

राजमोहन गांधी

महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी का जन्म 7 अगस्त 1935 को हुआ। 1975 में इमरजेंसी के दौरान उन्होंने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया। वे चुनाव भी लड़े मगर हार गए। जनता दल और आम आदमी पार्टी में भी वे रहे हैं। वे राज्यसभा में भी रहे। अपने नाना और आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी की जीवनी लिखने के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। लंबे समय तक वे अध्यापन कार्य में संलग्न रहे। उनकी गांधी, पटेल, सीमांत गांधी, स्वतंत्रता संग्राम के तमाम नायकों पर चर्चित किताबें हैं। इस साल अगस्त में उनकी नई किताब इंडिया आफ्टर 1947ः रिफलेक्शंस ऐंड रिकलेक्शन आई है।

सुब्रह्मण्यम स्वामी (1939)

सुब्रह्मण्य स्वामी

सुब्रह्मण्यम स्वामी का जन्म 15 सितंबर 1939 में चेन्नई में हुआ था। रॉकफेलर छात्रवृत्ति पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय से उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी की और वहीं असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए। 1969 में आइआइटी दिल्ली में वे प्रोफेसर हुए। तब उन्होंने जनसंघ का दामन थामा और राजनीति में उतर आए। 1974-1999 के दौरान स्वामी पांच बार सांसद हुए। स्वामी ने तमाम घोटालों को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है जिनमें हालिया मुकदमा कांग्रेस के अखबार नेशनल हेराल्ड के खिलाफ था।

छन्नूलाल मिश्र (1936)

छन्नूलाल मिश्र

छन्नूलाल मिश्र का जन्म 3 अगस्त 1936 को आजमगढ़ के हरिहरपुर में हुआ। पिता शास्त्रीय गायक थे। प्रारंभिक शिक्षा उन्हीं की देखरेख में हुई। मां का मानना था कि खराब नाम रखने से व्यक्ति ज्यादा जीवित रहता है। यही सोचकर मां ने नाम छन्नू रख दिया। पिता से संगीत की शुरुआती तालीम के बाद छन्नूलाल किराना घराने के महान गायक अब्दुल गनी खां के पास पहुंचे। खयाल, ध्रुपद, ठुमरी से छन्नूलाल ने दुनिया भर के संगीत प्रेमियों को अपना दीवाना बनाया। हिंदी फिल्मों में भी उन्होंने आवाज दी है। उनकी होली गायकी की अदा विश्व भर में लोकप्रिय है।

यशवंत सिन्हा (1937)

यशवंत सिन्हा

यशवंत सिन्हा का जन्म 6 नवंबर 1937 को पटना में हुआ था। उन्होंने कुछ वर्षों तक पटना यूनिवर्सिटी में अध्यापन किया, 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में आए और 1984 में इस्तीफा देकर राजनीतिक पारी की शुरुआत की। जनता पार्टी से उन्हें 1988 में राज्यसभा सांसद चुना गया। 1990 में चंद्रशेखर की सरकार में वे देश के वित्त मंत्री बने। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में एक बार फिर सिन्हा वित्त मंत्री बने लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले वे विदेश मंत्री के पद पर थे। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया तो यशवन्त सिन्हा ने अपना समर्थन जाहिर किया पर बाद में मोदी से उनके मतभेद हुए, जिस कारण उन्होंने भाजपा छोड़ दी। हाल में हुए राष्ट्रपति चुनाव में यशवन्त सिन्हा विपक्ष के उम्मीदवार थे। यशवंत सिन्हा सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ मुखर रहते हैं और विभिन्न मंचों पर अपनी राय जाहिर करते हुए दिखाई देते हैं।

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