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यॉर्करः अफगानिस्तान की आवाज राशिद

अफगानिस्तान के खिलाड़ियों की प्रेरणा राशिद खान चाहते हैं कि बड़ी टीमें उनके देश की टीम के साथ क्रिकेट खेलें
राशिद खान

राशिद खान एक बेहतरीन लेग स्पिनर से बढ़कर हैं। उनकी गूगली उनकी हाजिरजवाबी जितनी ही तेज है। 23 साल के इस युवा खिलाड़ी में मैदान-ए-जंग में अनुभव हासिल किए योद्धा जैसी परिपक्वता भी दिखती है। वे अफगानिस्तान के खेल जगत के सर्वोत्कृष्ट प्रतिनिधि हैं। दुनिया के जाने-माने लेग स्पिनरों में से एक राशिद ऐसे सुपरस्टार हैं जिनके बिना विश्व की सबसे अमीर टी-20 प्रतिस्पर्धा इंडियन प्रीमियर लीग (आइपीएल) अधूरी जान पड़ती है। लगभग 24 करोड़ रुपये ब्रांड वैल्यू के साथ राशिद अफगानिस्तान के सबसे अमीर खिलाड़ी हैं। उनकी आधे से अधिक कमाई आइपीएल से ही होती है। इस टूर्नामेंट ने 2017 से उनका जीवन बदल दिया है। गुजरात टाइटंस टीम ने इस सीजन में उन्हें 15 करोड़ रुपये में खरीदा है।

राशिद अफगानिस्तान क्रिकेट के अगुआ कहे जा सकते हैं। वे ऐसे अंतरराष्ट्रीय आइकॉन बन गए हैं जिन्हें दुनिया की शीर्ष टी-20 लीग पसंद करती हैं। उनके करोड़ों प्रशंसक हैं। पश्चिम में कैरीबियन प्रीमियर लीग से लेकर पूर्व में बिग बैश तक राशिद अफगानिस्तान का चेहरा हैं। उस अफगानिस्तान का जो अक्सर गलत वजहों से सुर्खियों में रहता है। इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आइसीसी) ने जब उन्हें दशक का टी-20 खिलाड़ी चुना तो वह एक तरह से खेल पर उनके प्रभाव की स्वीकारोक्ति थी। वे युवा अफगान क्रिकेटरों की प्रेरणा हैं। सिर्फ पुरुषों के नहीं बल्कि राशिद अफगानिस्तान की महिला क्रिकेटरों के भी नायक हैं। देश में तालिबान की तरफ से खेलने पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद कई महिला खिलाड़ी भागकर दूसरे देशों में चली गई हैं। उनमें एक रोया शमीम हैं जिन्हें अफगानिस्तान महिला क्रिकेट टीम का कप्तान चुना गया था।

सितंबर 2021 में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से पहले रोया, उनकी बहनें और उनकी मां कनाडा चली गईं। अफगानिस्तान की महिला फुटबॉलरों को तो दुनिया में अनेक देशों का समर्थन मिला, लेकिन महिला क्रिकेटर उतनी भाग्यशाली नहीं। कनाडा के न्यू ब्रुनस्विक से रोया ने बातचीत में कहा, “हमारी भलाई और हमारे भविष्य के बारे में एक ही व्यक्ति ने सोचा और वह है राशिद खान। न क्रिकेट बोर्ड न आइसीसी, किसी ने यह कोशिश नहीं की कि हम दोबारा क्रिकेट खेल सकें। राशिद हमारी प्रेरणा हैं।”

जून 2018 में भारत के खिलाफ बेंगलूरू टेस्ट के दौरान

जब तालिबान काबुल पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ रहा था तब उनके खिलाफ आवाज उठाने वाले राशिद अफगानिस्तान के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे। अगस्त 2021 में राशिद ने ट्विटर पर लिखा कि “काबुल में फिर खून बह रहा है, कृपया अफगानियों की हत्या रोकिए,” तब ट्विटर पर उनके 13 लाख फॉलोअर ने उनके साहस की तारीफ की थी। यही साहस राशिद की खासियत है। वे विनम्र दिखते जरूर हैं लेकिन हैं बड़े मजबूत। अफगानिस्तान क्रिकेट उनके बिना आगे नहीं बढ़ सकती। अपनी टिप्पणी से तालिबान को नाराज करने के बावजूद उन्हें संयुक्त अरब अमीरात में आइसीसी टी-20 वर्ल्ड कप में अफगानिस्तान का कप्तान बनाया गया था। हालांकि घोषणा के बाद ही राशिद ने कप्तानी से इनकार कर दिया।

निस्संदेह राशिद अफगानिस्तान क्रिकेट की आवाज हैं और उस भूमिका को बखूबी निभा भी रहे हैं। बात राजनीतिक स्तर की हो या अफगानिस्तान क्रिकेट की तरक्की के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट समुदाय से मदद की अपील हो, राशिद अपने मन की बात कहने से जरा भी नहीं हिचकते।

कभी उन्होंने भी मुश्किल वक्त गुजारे थे और युद्ध की विभीषिका झेली थी। इसलिए राशिद परिवार और एकजुटता का महत्व समझते हैं। वे भावुक भी हैं। बल्कि यह कहना ठीक होगा कि वे व्यवहारिक हैं। हाल ही आउटलुक से बातचीत में उन्होंने कहा, “जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं, बचपन से मैंने जीवन में अच्छी चीजों को आते और जाते देखा है। लेकिन इंसान को नहीं बदलना चाहिए। आप जो हैं वही रहिए... विनम्र और अपनी जड़ों से जुड़े हुए।”

राशिद को शोहरत तो मिली ही उनके मुरीद भी कम नहीं। इस बात ने उन्हें अफगानिस्तान की छवि सुधारने के लिए प्रेरित किया है। वे कहते हैं, “जब मेरे विकेट लेने या रन बनाने पर मेरे देशवासी जश्न मनाते हैं तो उससे मुझे सबसे अधिक खुशी मिलती है। उससे मुझे बहुत ऊर्जा मिलती है। तब लगता है मुझे कोई भी बाधा रोक नहीं सकती है। सिर्फ छह साल के प्रोफेशनल क्रिकेट जीवन में ‘दशक का क्रिकेटर’ चुना जाना किसी स्वप्न से कम नहीं। मैं अफगानिस्तान क्रिकेट को अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर मजबूती के साथ रखना चाहता हूं।”

विश्व क्रिकेट का बर्ताव

आइसीसी ने जून 2017 में अफगानिस्तान और आयरलैंड को टेस्ट मैच खेलने की मान्यता दी थी। उससे पहले वर्ष 2000 में आइसीसी ने बांग्लादेश को टेस्ट खेलने वाले देश के तौर पर मान्यता मिली थी। इस एलीट क्लब में शामिल किया जाना अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अफगानिस्तान के बढ़ती बढ़ते कद की स्वीकारोक्ति थी। उन्हीं दिनों उसने टी-20 विश्व चैंपियन वेस्टइंडीज के साथ एकदिवसीय मैचों की सीरीज ड्रॉ की थी। युद्ध पीड़ित देश के लिए वह ईद के तोहफे की तरह था। हालांकि अभी वह भारत, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसे टेस्ट मैच खेलने वाले बड़े देशों की छाया में ही है।

बीते पांच वर्षों में अफगानिस्तान ने सिर्फ छह टेस्ट मैच खेले हैं। टेस्ट क्लब में बांग्लादेश को शामिल किए जाने के बावजूद भारत ने 2018 में उसके साथ टेस्ट सीरीज खेली थी। उसके बाद उसके साथ कोई टेस्ट नहीं खेला। जिंबाब्वे (दो), आयरलैंड, वेस्टइंडीज और बांग्लादेश अफगानिस्तान के साथ एक-एक टेस्ट खेल चुके हैं। इनमें से किसी भी देश की टीम अच्छी टेस्ट टीम नहीं मानी जाती है। अफगानिस्तान ने बांग्लादेश के साथ जो एकमात्र टेस्ट मैच खेला उसमें उसने जीत दर्ज की थी।

सीमित ओवरों की क्रिकेट में भी शीर्ष देशों ने अफगानिस्तान के साथ द्विपक्षीय मैच कम ही खेले हैं। विश्व कप में अफगानिस्तान, आयरलैंड, स्कॉटलैंड, केन्या और कनाडा जैसी टीमों के साथ उन्होंने खेला जरूर, लेकिन तीन बड़े देशों भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड ने उन्हें कभी गंभीरता से नहीं लिया। जिस पाकिस्तान का अफगानिस्तान से रक्त संबंध माना जाता है, उसने उसके साथ एक भी टेस्ट मैच नहीं खेला। जब तालिबान ने महिला खिलाड़ियों पर प्रतिबंध लगाया तो ऑस्ट्रेलिया ने अफगानिस्तान की पुरुष टीम के साथ खेलने से मना कर दिया।

राशिद कहते हैं, “ऐसी बातें काफी चोट पहुंचाती हैं। हम अलग-थलग महसूस करते हैं क्योंकि बड़ी टीमें विश्वकप के सिवाय हमारे साथ खेलना भी पसंद नहीं करती हैं। जब हम मिलते हैं तो इस पर चर्चा होती है। मैं अफगानिस्तान बोर्ड के सीईओ और चेयरमैन से बार-बार कहता हूं कि वे भारत, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड जैसी टीमों के साथ अधिक मैच खेलने का प्रयास करें।”

उनका कहना है, “मैं भाग्यशाली हूं क्योंकि मैं आइपीएल में अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनेक खिलाड़ियों के खिलाफ खेलता हूं। लेकिन अफगानिस्तान के दूसरे खिलाड़ियों का क्या। वहां के युवा खिलाड़ी कैसे प्रतिस्पर्धा करना सीखेंगे, कैसे अपना खेल सुधारेंगे अगर शीर्ष टीमें हमारे साथ नहीं खेलेंगी।” राशिद का कहना है कि अफगानिस्तान के खिलाड़ियों ने कई बार अपनी प्रतिभा दिखाई है, लेकिन मौका न मिलने के कारण वे अपना स्तर एक सीमा से ऊपर नहीं ले जा पा रहे हैं।

वे कहते हैं, “अचानक टी-20 या एकदिवसीय विश्वकप में बड़ी टीमों के खिलाफ मुकाबले में आप अच्छा खेल दिखाने की कोशिश करते हैं। हमने चाहे जितना कठिन परिश्रम किया हो, जितनी तैयारी की हो, हमारे पास अनुभव का अभाव होता है जो वास्तव में मायने रखता है। आप देखें तो शीर्ष टीमें विश्वकप की तैयारियों और एक दूसरे को समझने के लिए अनेक द्विपक्षीय सीरीज खेलती हैं। ऐसा अफगानिस्तान के साथ भी हो तो वह हमारे लिए बहुत फायदेमंद होगा। उम्मीद है भविष्य हमारे लिए बेहतर होगा।”

हाल के वर्षों में बांग्लादेश ने बड़ी टीमों के खिलाफ लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है। उसने विश्व टेस्ट चैंपियन न्यूजीलैंड को हराकर विदेश में पहली जीत दर्ज की। उसके बाद दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहली एकदिवसीय श्रृंखला जीती। राशिद कहते हैं कि बांग्लादेश की यह सफलता अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बार-बार मौका मिलने की वजह से संभव हो सकी है। वे कहते हैं, “बांग्लादेश की टीम घरेलू और विदेशी दोनों मैदानों पर शीर्ष टीमों के खिलाफ खेल रही है। वे अपनी गलतियों से सीख रहे हैं, अच्छी तैयारी कर रहे हैं और फिर उन टीमों को शिकस्त दे रहे हैं। आप अफगानिस्तान को भी मौका दीजिए और फिर नतीजे देखिए।”

राशिद कहते हैं, “मैं बड़ी टीमों से अफगानिस्तान के साथ साल में सिर्फ एक टेस्ट मैच खेलने का आग्रह करता हूं। जहां कहिए हम वहां आकर खेलेंगे। लेकिन हमें अपनी क्षमता दिखाने का मौका तो दीजिए।” हालांकि राशिद भी जानते हैं कि आइसीसी और बीसीसीआइ, ऑस्ट्रेलिया तथा इंग्लैंड जैसे बड़े क्रिकेट बोर्ड अपने क्रिकेट कैलेंडर प्रतिभाओं को निखारने के लिए नहीं बल्कि ब्रॉडकास्टिंग अधिकार बेचने और ग्लैमर के भूखे विज्ञापनदाताओं से करोड़ों रुपये लेने को ध्यान में रखकर बनाते हैं।

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