मुझे आशा है, सुशांत सिंह राजपूत मौत की जांच की दशा भी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की जांच जैसी न हो। 2014 में शुरू हुई उनकी हत्या की सीबीआइ जांच का अभी तक कोई नतीजा नहीं आया है।
शरद पवार, अध्यक्ष, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी
बयान के मायने
आजकल बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे अपने बयानों को लेकर काफी चर्चा में हैं। वे पुलिस अधिकारी की जगह नेता की तरह बयानबाजी कर रहे हैं। ऐसे में सत्ताधारी दल के दिल्ली में बैठे एक नेता का कहना है कि लग रहा है, पांडे नई पारी की तैयारी में है। नेता जी के बयान से साफ है कि वे किस ओर इशारा कर रहे हैं। असल में पांडे फरवरी 2021 में रिटायर होने वाले हैं। और बिहार में नवंबर में चुनाव की संभावना है। जिस तरह डीजीपी साहब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पैरवी कर रहे हैं, उससे यह चर्चा जोरों पर है कि लगता है पांडे राजनीति की पारी खेलने के लिए तैयार हो गए हैं। खैर! अब यह तो वक्त ही बताएगा।
कोरोना का फायदा
विधानसभा की बैठकें छह माह के भीतर बुलाने की परंपरा रही है। झारखंड में पहला मौका होगा जब सरकार चल रही हो और छह माह के भीतर सदन की बैठक न हो। 28 फरवरी को बजट सत्र हुआ उस हिसाब से इसी माह के अंत में मॉनसून सत्र के लिए बैठकें होनी चाहिए। संसदीय कार्य मंत्री की दलील है कि कोरोना के संक्रमण को देखते हुए फिलहाल मॉनसून सत्र बुलाने का कोई इरादा नहीं है। बिहार में भी यही समस्या पैदा हुई थी तब विधानसभा भवन के बाहर एक बड़े हॉल में एक दिन के लिए सत्र बुलाकर औपचारिकता पूरी की गई। झारखंड सरकार में जन सरोकार वाला महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले एक मंत्री ने कहा कि बढ़िया है विधानसभा की बैठकें न हों। कोरोना के कारण कोई काम तो हो नहीं पाया है। विपक्ष के सवालों का जवाब कौन देगा।
सम्मान और पुलिस
गाहे बगाहे अपराधियों, नक्सलियों से मुकाबले को लेकर बिहार पुलिस अपनी बहादुरी दिखाती रही है। दूसरे सराहनीय काम भी किये जाते रहे हैं। मगर इस साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिये जाने वाले मेडल की सूची में बिहार के पुलिसकर्मियों के नाम गायब हैं। अंदरखाने में नामों की अनुशंसा को लेकर भी विवाद होते रहे हैं कि बड़े अधिकारी अपने चहेतों को ही उपकृत करते हैं। इस बार एक भी नाम न होने को लेकर सवाल उठ रहा है। बिहार पुलिस एसोसिएशन ने ही आरोप जड़ दिया है कि अनुशंसा की सूची समय पर नहीं गई। इससे बेहतर प्रदर्शन करने वाले पुलिसकर्मियों में निराशा है। अब इस बात की भीतर ही भीतर जांच हो रही है कि लापरवाही किस स्तर पर हुई, पुलिस मुख्यालय या गृह विभाग। आखिर मामला राज्य के भी सम्मान का है।
कैप्टन का दांव
अपनी ही पार्टी के विधायकों पर ढीली पकड़ के बीच पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिदंर सिंह विपक्ष के निशाने पर हैं। 120 मासूम जानें जहरीली शराब के कारण चली गईं। शराब, ड्रग्स, रेत खनन, ट्रांसपोर्ट माफिया भी ज्यों के त्यों फल-फूल रहे हैं। विधानसभा के आगामी मानसून सत्र में विपक्षी दल शिरोमणि अकाली दल, भाजपा और आम आदमी पार्टी की सरकार को घेरने की तैयारी थी। लेकिन उम्मीदों पर पानी तब फिरा, जब 28 जुलाई को कुछ घंटों में ही सत्र को निपटा दिया गया। यहां तक कि स्पीकर ने विधायकों को धरने-प्रदर्शन की अनुमति भी नहीं दी। सत्ताधारी दल इसे कैप्टन का मास्टर स्ट्रोक बता रहा है।
बाबा और चिट्ठी
वर्दी वाले बाबा को झारखंड सरकार ने समय से पहले हटा दिया। सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि वर्दी वाले इस शीर्ष पद पर किसी अधिकारी की दो साल के लिए ही पोस्टिंग होगी। पुरानी सरकार के दौरान पैनल से नियम संगत तरीके से बाबा की पोस्टिंग हुई थी। नई सरकार आई तो उन्हें किनारे कर दिया गया। दूसरे अधिकारी को प्रभारी बनाकर तैनात कर दिया गया। हालांकि, प्रभारी का कोई पद नहीं है। बाद में नियमित पोस्टिंग के लिए यूपीएससी को नया पैनल भेजा गया। मामला यूपीएससी से सुप्रीम कोर्ट तक गया। यूपीएससी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हवाले से कहा कि दो साल के बदले उन्हें नौ महीने में ही हटा दिया गया, जबकि उन पर कोई गंभीर आरोप नहीं लगे थे। यूपीएससी ने राज्य सरकार द्वारा भेजे गये पैनल की सिफारिशों को भी ठुकरा दिया। खबर मीडिया में आई तो राज्य के बड़े अधिकारी भौंचक रह गये कि उन लोगों ने तो मीडिया को जानकारी दी नहीं फिर यूपीएससी वाली बात कहां से आ गई। बाद में जाहिर हुआ कि जो पत्र मीडिया वालों के हाथ लगा उसमें ओसी अंकित था। यानी ऑफिस कॉपी। अब बाबा और आयोग के रिश्ते की पड़ताल हो रही है, वहां कोई भाई है क्या।