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अंदरखाने

सियासी दुनिया की हलचल
रामचंद्र गुहा

क्रिकेट के बॉस गांगुली पैसों के लालची हैं, भारतीय क्रिकेट में भरा है भाई-भतीजावाद- रामचंद्र गुहा, इतिहासकार (बीसीसीआइ पर लिखी किताब में)

 

यूपी में अंग्रेजी प्रेम

वैसे तो यूपी की पहचान हिंदी भाषी क्षेत्र की है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, सत्ताधारी पार्टी को अंग्रेजी भाषा में प्रचार की कमी खल रही है। ऐसे में प्रचार-तंत्र के लिए रखी गई कंपनी को बड़े जोर-शोर से अंग्रेजी भाषा में अच्छी पकड़ रखने वालों को ढूढ़ने की जिम्मेदारी दी गई है। ऐसे लोगों की टीम बनाई जाएगी, जो सरकार की उपलब्धियों को अंग्रेजी भाषी लोगों तक अच्छे से पहुंचा सकें। यानी 2022 के पहले सरकार पूरी तरह से तैयार रहना चाहती है, जिससे चुनाव में कोई कसर नहीं रह जाए। अब देखना है, नया प्रयोग कितना कारगर होता है।

किसका कटेगा पत्ता

पंजाब मंत्रिमंडल में नवजोत सिंह सिद्धू की वापसी के संकेत हैं। जल्द ही मंत्रिमंडल में फेरबदल के बीच सिद्धू की वापसी से कुछ मंत्रियों पर गाज गिरने वाली है। दरअसल जुलाई 2019 में स्थानीय निकाय जैसा अहम महकमा छिनने से नाराज होकर सिद्धू मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद सियासी बनवास में चले गए थे। 2019 के मंत्रिमंडल फेरबदल में हालांकि सिद्धू को बिजली विभाग दिया गया था पर यह विभाग सिद्धू को रास नहीं आया। और उन्होंने मंत्रिमंडल से किनारा कर लिया है। अब फिर सिद्धू को मंत्री बनाए जाने की खबरों ने कई मंत्रियों की नींद उड़ा दी है। चर्चा है कि सिद्धू अपने पुराने विभाग स्थानीय निकाय या स्वास्थ्य विभाग की मांग कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो वरिष्ठ मंत्री ब्रह्म महिंद्रा की स्थानीय निकाय मंत्रालय से छुट्टी तय है। अगर सिद्धू को स्वास्थ्य मंत्रालय मिलता है तो मौजूदा मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू को अपनी सियासी सेहत खराब होने का डर है।

गाड़ी की किस्त

साहब को गाड़ियों का शौक है। कई गाड़ियां हैं उनके पास। जब झारखंड में डीसी यानी कलक्‍टर थे, तब वेतन के अतिरिक्‍त कई स्रोत थे। पैसे की कमी नहीं थी। मगर सावधानी बरतते थे। गाड़ी अपने नाम पर नहीं खरीदते थे। नाम किसी और का और गाड़ी उनके पास। हां, इतनी ईमानदारी जरूर थी कि लोन पर खरीदी गई गाड़ी की किस्त खुद अदा करते थे। सरकार बदली तो शंटिंग पोस्‍ट पर चले गए। अब वेतन से ही काम चलाना पड़ता है। मगर खर्च के रास्‍ते तो बने रहते हैं। अब गाड़ियों की किस्त अदा करना बोझ लग रहा है। ऐसी ही एक गाड़ी के कागजी स्‍वामी ने राज खोला कि बोझ से उबरने के लिए अब वे अपने शौक को तिलांजलि दे रहे हैं। कह रहे थे कि कोई खरीदार मिले तो देखियेगा।

पिता से परेशान नेता

झारखंड में ऐतिहासिक पार्टी के विधायक के पास सूबे में पार्टी की जिम्‍मेदारी है। लाल बत्‍ती की चाहत है मगर अभी तक नहीं मिली है। अपने बयानों को लेकर वे अक्‍सर चर्चा में रहते हैं। इस बार चर्चा में वे नहीं, उनके पिताजी हैं। पिताजी भी सांसद रहे, आधा दर्जन से अधिक बार विधायक रहे। उनकी महत्‍वाकांक्षाएं पूरी नहीं हुईं तो केंद्रीय नेतृत्‍व के खिलाफ बोल बैठे। अब पार्टी ने नोटिस पकड़ा दिया है। पिता की जमीन पर राजनीति करने वाले बेटे की भी चिंता बढ़ गई है, आंच कहीं उस पर न आ गिरे। बेचैनी इसलिए भी है कि केंद्र में उनके एक आका परलोक सिधार गए हैं।

अदालत तेरा सहारा

विधायक जी सिर्फ विधायक नहीं हैं। फूल वाली पार्टी में जबसे वापस लौटे, पार्टी ने उन्‍हें विधायकों का नेता बना दिया। लेकिन वह हक नहीं मिला कि लाल बत्‍ती के हकदार हो जाते। दरअसल उनकी पार्टी के विलय का मामला दलबदल के आईने से देखा जा रहा है। वे हाइकोर्ट की शरण में चले गए हैं। दलबदल के मामले में जब सुनवाई होती है तो उसमें समय लगता है। उन्हें डर यह भी है कि हाइकोर्ट से राहत नहीं मिली तो उनके पास दूसरा विकल्‍प नहीं है।

हमारा नंबर कब आएगा

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में इन दिनों साफ तौर पर दो गुट बन गए हैं। एक गुट मान रहा है कि आलाकमान की मनमानी ज्यादा नहीं चलने वाली है। ऐसे में नए लोगों को मौका मिलने का समय आ गया है। इसके लिए उन नेताओं ने कवायद भी शुरू कर दी है। दक्षिण भारत के एक नेता तो कहीं ज्यादा उम्मीद लगा बैठे हैं। उन्हें पूरा भरोसा है कि पार्टी में उन्हें बड़ी भूमिका मिलने वाली है। वैसे भी नेता जी सत्ता के गलियारों में अपनी विद्वता के लिए काफी प्रसिद्ध हैं।

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