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अंदरखाने

सियासी दुनिया की हलचल
नौदीप कौर

“तुम दलित हो और तुम्हें दलित जैसा व्यवहार करना चाहिए"

नौदीप कौर, दलित मजदूर अधिकार कार्यकर्ता, (हिरासत में पुलिसवालों ने उनसे जो कहा)

 

फिर बहुरेंगे दिन

नार्थ ब्लॉक में आजकल फिर से दिन सुधरने की चर्चा है। हाल ही में एक वरिष्ठ अधिकारी के रिटायर होने की खबर से ऐसी कानाफूसी शुरू हो गई है। ऐसी उम्मीद थी कि अधिकारी महोदय को सरकार सेवा विस्तार दे सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जिससे उनके मातहत कई बाबुओं ने राहत की सांस ली है। असल में काम करने के उनके सख्त रवैये से कई अधिकारी असहज महसूस करते थे। अब जब उन्हें सेवा विस्तार नहीं मिला है, तो बाबुओं को लगता है कि फिर से उनके दिन फिर जाएंगे। अब सबको अपने अच्छे दिन का इंतजार है। खैर, यह भी देखना है कि नए अधिकारी किस मिजाज के हैं।

पार्टी हमारी, उम्‍मीदवार तुम्‍हारा

राजनीति में गठबंधन का अपना गणित होता है। इस हाथ दे उस हाथ ले। झारखंड में एक सीट पर विधानसभा का उपचुनाव होना है। फूल वाली पार्टी की सहयोगी पार्टी भी इस सीट पर नजर लगाए हुए है। तर्क है कि पूर्व में दो सीटों पर उपचुनाव में उसने कोई दावेदारी नहीं की थी। हालांकि इस सीट पर दावा करने वाली पार्टी का उम्‍मीदवार पिछले विधानसभा चुनाव में तीसरे पायदान पर रहा था। मगर उससे क्‍या फर्क पड़ता है, गठबंधन का भी तो कोई धर्म होता है। इसी भरोसे पर पार्टी ने उपचुनाव वाले इलाके में न केवल सम्मेलन कर डाला बल्कि अपने पुराने उम्‍मीदवार को भी जनता के सामने पेश कर दिया। अब फूल वाली पार्टी एक सीट को लेकर गठबंधन में दरार को टालने का उपाय ढूंढ़ रही है। एक फार्मूला यह भी टटोला जा रहा है कि सीट पर लड़ेगी फूल वाली पार्टी, मगर उम्‍मीदवार गठबंधन की दूसरी पार्टी का होगा।

दल-बदल के मारे

झारखंड की राजनीति में छाए रहने वाले दो नेता इन दिनों लापता हैं। व‌िधानसभा चुनाव का समय आया तो दोनों ने कांग्रेस पार्टी से किनारा कर लिया। एक ने तो अपनी ही पार्टी के प्रदेश अध्‍यक्ष के खिलाफ चुनाव लड़ा और दूसरे ने गठबंधन वाली पार्टी के उम्‍मीदवार के खिलाफ। लेकिन दांव बेकार गया और हार गए। हार गए तो भविष्‍य की चिंता होने लगी। एक नेताजी जिस पार्टी में शामिल हुए उसकी संस्‍कृति उन्‍हें रास नहीं आई, तो दूसरे नेताजी नई पार्टी में फिट नहीं महसूस कर रहे थे। दोनों ने पुनर्वापसी का निर्णय किया। खैर जिस पार्टी में ये विधानसभा चुनाव में शामिल हुए थे वहां से भी पत्‍ता कट ही गया। साल गुजरने को है मगर तमाम कोशिशों के बावजूद अपने पुराने घर में प्रवेश नहीं मिला है। कोई पूछता है तो बोल भी नहीं पाते कि किस पार्टी में हैं।

सिर फुटव्वल

मध्य प्रदेश में रेरा चेयरमैन की पोस्ट पर सिर फुटव्वल शुरू हो गई है। असल में प्रदेश के मुख्य सचिव की चाहत जिस अधिकारी को लेकर है, उसे पार्टी के पैतृक संगठन से हरी झंडी नहीं मिल रही है। ऐसे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नए धर्मसंकट में फंस गए हैं। संकट यह है कि अपने अधिकारी की सुनें या फिर पैतृक संगठन की। वहीं, दूसरा पक्ष बात नहीं बनती देख अब पैतृक संगठन के शीर्ष पदाधिकारियों तक फरियाद पहुंचाने की तैयारी में है। देखना है कि आने वाले समय में किसकी दाल गलती है। लेकिन इस कवायद में छह महीने से अहम पद खाली पड़ा है।

हार का डर

जिस तरह देश के विभिन्न राज्यों में नगरीय चुनाव के परिणाम सामने आ रहे हैं। उसे देख मध्य प्रदेश के कई मंत्री डर गए हैं। उन्हें डर सता रहा है कि किसान आंदोलन से बने माहौल से उनके क्षेत्र में पार्टी का प्रदर्शन खराब रह सकता है। इसे देखते हुए अब कई मंत्रियों ने मुख्यमंत्री से अपने प्रिंसिपल सेक्रेटरी को बदलने की गुहार लगाई है। अब देखना है कि मुख्यमंत्री किसकी बात सुनते हैं, खास तौर पर जब उन्हें अधिकारियों पर ज्यादा भरोसा करने वाला माना जाता है।

कहां जाएं

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी दल के एक नेता इन दिनों काफी बेचैन हैं। वजहः अपने ही क्षेत्र में भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। नाराजगी का आलम यह है कि खाप के ही लोग सामने खड़े हो जा रहे हैं। ऐसे में शिकायत कहां करें, क्योंकि जब किसान आंदोलन शुरू हुआ था तो आलाकमान से कह कर आए थे, कि यह तो पंजाब-हरियाणा का आंदोलन है, पश्चिमी यूपी में कोई असर नहीं होगा। लेकिन अब कूछ सूझ नहीं रहा है, डर है कि कहीं चुनाव भारी न पड़ जाए।

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