कहीं खुशी, कहीं गम
प्रभारी महोदय ने साफ कर दिया है कि फिलहाल पार्टी में कोई फेरबदल नहीं होगा। दरअसल पार्टी में 'एक व्यक्ति एक पद' को लेकर लंबे समय से झारखंड प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ दबाव की राजनीति चल रही थी। अध्यक्ष जी मंत्री भी हैं। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष के लिए नए नामों की चर्चा भी रह-रहकर उड़ जाती है। खैर, इसी पार्टी से बाहर निकले दो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने भी वापसी के लिए अर्जी लगा रखी है। अर्जी लगाए भी एक साल हो गए। आलाकमान के संदेश के बाद सब स्पष्ट हो गया। प्रदेश अध्यक्ष के खेमे में खुशी है तो जो मौका मिलने के इंतजार में थे, उनके खेमे में मातम का माहौल।
छवि के लिए क्या-क्या
हाल में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने एक वरिष्ठ आइएएस अधिकारी को बड़े विभाग से हटाकर छोटे विभाग में भेज दिया। सीएम के इस निर्णय से सब हैरान हैं। कारण यह है कि उस अधिकारी महोदय के रिटायर होने में बमुश्किल बीस दिन बचे थे। आम तौर पर किसी वरिष्ठ आइएएस अधिकारी के साथ ऐसा नहीं होता कि सेवानिवृत्ति के इतने करीब होने पर विभाग बदल दिया जाए। हैरानी इसलिए भी है क्योंकि अधिकारी महोदय पहले शिवराज के काफी करीबी माने जाते थे। यही नहीं, वे संघ के भी करीब माने जाते हैं। इन सबके बावजूद शिवराज ने यह फैसला लिया। चर्चा है कि इस कदम के जरिए सीएम साफ छवि का संदेश देना चाहते हैं। अधिकारी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और मुख्यमंत्री बताना चाहते हैं कि वे भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेंगे।
अपने पर ही चाल
चुनाव के मौके पर कोई भी पार्टी हर किसी का साथ लेने को तैयार रहती है। दुश्मनों के घर जाकर भी सहयोग का अनुरोध किया जाता है। मगर झारखंड के मधुपुर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा अकेली है। दूसरी तरफ यूपीए के लोग पूरी तरह एकजुट हैं। भाजपा ने सहयोगी पार्टी के नेताओं को प्रचार के लिए औपचारिक आमंत्रण तक नहीं भेजा है। अभी तक कोई आया भी नहीं है। भाजपा के उम्मीदवार को सहयोगी पार्टी से ही अंतिम समय में तोड़ कर लाया गया है। भाजपा वालों की समझ है कि मधुपुर में सहयोगी पार्टी का कोई प्रभाव नहीं है, असली प्रभाव वहां के उम्मीदवार का है। हालांकि पहले के दो उपचुनावों में भाजपा ने आजसू की मदद ली थी।
परेशान महाराज
भाजपा में आने के बाद मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया का कद काफी घट गया है। भाजपा में उन्हें उतना भाव नहीं मिल रहा जितना पार्टी में शामिल होने से पहले मिलता था। हाल में मध्य प्रदेश के दमोह उपचुनाव और बंगाल चुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की सूची में उनका नाम काफी नीचे रखा गया। बंगाल तो दूर, उनको दमोह में भी प्रचार के लिए नहीं भेजा जा रहा है। सिंधिया ने शिवराज से इसकी शिकायत की, उसके बाद चुनाव के ठीक पहले दमोह में कुछ सभाएं रखी गईं।
2 मई का इंतजार
दो मई को पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों का बहुतों को बेसब्री से इंतजार है। कांग्रेस में ग्रुप-23 के कई नेताओं की तो इंतजार में नींद खराब हो रही है। आलाकमान ने इस गुट को विधानसभा चुनावों में तरजीह नहीं दी। ज्यादातर नेता चुनाव अभियान से दूर रहे। ऐसे में वरिष्ठ नेताओं को नतीजों का इंतजार है। ऐसे ही एक नेता कहते हैं कि 2 मई को सब पानी की तरह साफ हो जाएगा। तब मैं पूछूंगा कि कौन कितने पानी में है। खैर! अब नतीजों में ज्यादा समय नहीं बचा है, तो जाहिर है ऐसे नेताओं की धड़कनें बढ़ गई हैं।
वरिष्ठ अधिकारी की चर्चा
दिल्ली में एक वरिष्ठ अधिकारी हैं जो हाल ही रिटायर हुए हैं। उनके नाम की चर्चा इन दिनों सत्ता के गलियारों में जोरों पर है। दरअसल, मामला ही कुछ ऐसा है। उनके खिलाफ कई शिकायतें सामने आई हैं और उनकी फाइल उच्च स्तर तक पहुंच गई है। मामले में कुछ उनके साथियों के नाम भी चर्चा में हैं। अब देखना है कि आने वाले दिनों में कोई धमाका होता है या नहीं। फिलहाल तो चर्चा का बाजार गरम है।