महामारी कोविड-19 के प्रकोप से दुनिया घरों में सिमट गई है, बाहरी संपर्क के थोड़े-बहुत जरिए में एक टेलीविजन भी है। लेकिन टीवी भी बदल गया है। अब यह वैसा नहीं रहा, जैसा तब था, जब सुरभि शो को छह साल हुए थे और संयुक्त राष्ट्र ने 21 नवंबर को विश्व टेलीविजन दिवस घोषित किया था। वह 1996 का वक्त था। दर्शक बदल गए, प्लेटफॉर्म बदल गए, फॉर्मेट भी बदल गया। ऐसे में, आज के शो की तुलना क्या 20 साल पहले सफल रहे शो से की जा सकती है? कहां 1990 के दशक में सुरभि और कहां 2020 के दौरान का कोई शो, यह तो तांगे की तुलना कार से करना हुआ! सुरभि का अनूठापन उसका उद्देश्य था- साझे गौरव की साझा तलाश, बिना किसी व्यावसायिक मकसद के। पूरा देश इसके लिए सामग्री जुटाने, गहरी छान-बीन करने, फिल्म इनपुट मुहैया कराने और आगंतुकों की मेहमान नवाजी में स्वेच्छा से जुट गया था। सुरभि का संदेश पहुंचाने के लिए भाषा और भौगोलिक सीमाओं को पार करना रचनात्मक चुनौती बन गई थी। सांस्कृतिक संदेश को ऐसे विचार की तरह आगे बढ़ाना चाहिए, जो आधुनिक तकनीकों के जरिए वर्ग और भौगोलिक सीमाओं के आगे ले जाया जा सके। क्या यह कठिन था? बिल्कुल। असंभव भी? नहीं।
यह कहना ठीक होगा कि सुरभि की सफलता पर सबसे ज्यादा आश्चर्य रेणुका शहाणे और मुझे हुआ। हमने जब यह कार्यक्रम शुरू किया, तो हमारे सामने ऐसी कोई मिसाल नहीं थी। सुरभि से पहले संस्कृति से संबंधित टीवी कार्यक्रम बेहद गंभीर या बहुत दक्ष कलाकारों के ही हुआ करते थे। लेकिन हमने शुरुआत की, तो दो ऐसी बातें हुईं जिनकी हमें उम्मीद नहीं थी। एक, हमें नहीं पता था कि सदियों पुरानी भारतीय परंपरा के मुताबिक सीधे फर्श पर बैठकर दर्शकों से मुखातिब होना प्राइम टाइम शो में क्रांति ला देगा। दूसरे, हमें रेणुका की मुस्कराहट का हजार मेगावाट बिजली जैसा जादू होगा, इसका भी अंदाजा नहीं था। लगभग रातोरात पूरे देश का चेहरा खिल उठा।
तभी एक समस्या आन खड़ी हुई। उस समय की सख्त कला समीक्षक, अमिता मलिक ने रेणुका की मुस्कान के बारे में एक प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक में लिखा, “वह संस्कृति के बारे में बता रही हैं या टूथपेस्ट बेच रही हैं?” अमिता जी के शब्दों का रेणुका पर गहरा असर हुआ और उन्होंने मुस्कराना बंद कर दिया। हम टेलिकास्ट के चौथे सप्ताह में थे और हमारी बुद्धि ने काम करना बंद कर दिया था। रेणुका को मुस्कराना चाहिए! रेणुका की दिलकश मुस्कराहट के गायब होने पर दर्शकों की बहुत सारी प्रतिक्रियाएं आने लगीं। आठवें सप्ताह में मुस्कराहट फिर लौटी और दशकों तक जारी रही। अमिता मलिक, ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे, हमारी पक्की प्रशंसक बन गईं। एक बार उन्होंने समीक्षा में लिखा, सुरभि भारत की इंद्रधनुषी छवि है।
सुरभि ऐसा रोमांच था जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता। इतने सारे लोगों की प्रशंसा और प्यार पाना, और इतने वर्षों बाद भी याद किया जाना, बेहद संतोष देने वाला अनुभव है। लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान से लेकर राजस्थान के गर्म रेगिस्तान तक, केरल के बैकवॉटर से लेकर अंडमान के सुदूर द्वीपों तक (जहां हमें जंगलों में आदिवासियों के बीच सुरभि के प्रशंसक मिले), बीहड़ मध्य प्रदेश से लेकर उपजाऊ पूर्वोत्तर की घाटियों तक देश के हर हिस्से की हमने यात्रा की। सुरभि भारत की विविधता की अवधारणा की जीती-जागती ऐसी मिसाल बनी, जो हमेशा मेरी थाती रहेगी।
सुरभि से मुझे ऐसे भारत के दर्शन हुए, जिससे मैं कभी वाकिफ नहीं था। आखिर उसके बिना मैं अनूठे गांधीवादी बाबा आमटे से कैसे मिल पाता मिलता और नदी में तेंदुए को नहलाने के लिए उनके शिष्यों का साथ कैसे दे पाता? आखिर मैं जूनागढ़ शहर के एक क्लिनिक में गिर के शेर के एक्स-रे को फिल्माने का मौका कहां पाता? शेर ने जब आंख खोली और कैमरे की तरफ देखा, तो कमरे में मौजूद सभी पीछे सरक गए और तभी आगे आए, जब पशु चिकित्सक ने उसे इंजेक्शन देकर वापस सुला दिया। क्या आप ऐसी पेलिकन की कल्पना कर सकते हैं, जिसे नलसरोवर पक्षी अभयारण्य के पास के गांव के लोगों ने गोद लिया हो और वह बच्चों के साथ क्रिकेट खेलती हो?
अगर सुरभि शो नहीं होता तो मुझे कैसे पता चलता कि भारतीय लोकतंत्र 1,000 साल से भी ज्यादा पुराना है? तमिलनाडु में उत्तरामेरुर के खंडहरों में एक सहकारी समिति के चुनाव के सख्त नियम खुदे हुए हैं। आप गांव के चुनाव में खड़े होना चाहते हैं, तो आपको शिक्षित होना जरूरी है। आपकी उम्र 35 वर्ष से कम और 70 वर्ष से ज्यादा नहीं होनी चाहिए क्योंकि उम्र की यही अवधि अनुभव और ज्ञान के लिहाज से सर्वोत्तम है। आपके पास खुद की कुछ संपत्ति होनी चाहिए। आप अपनी संपत्ति की देखभाल नहीं कर सकते, तो गांव की संपत्ति की देखभाल कैसे करेंगे? कोई भी उम्मीदवार किसी पद के लिए दो बार से ज्यादा चुनाव में खड़ा नहीं हो सकता, ताकि दूसरों को मौका मिल सके। उम्मीदवार के अयोग्य होने के नियम भी कड़े थे, “शराब पीना, अनैतिक संबंध, हत्या, डकैती और रिश्वत लेना पाप है। अयोग्य उम्मीदवार के सभी रिश्तेदारों को अगली सात पीढ़ियों के लिए चुनाव में खड़े होने से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। ये नियम भारतीय चुनावों के लिए क्रांतिकारी होंगे। क्या नहीं? जीतने वाले उम्मीदवार का चयन करते समय, वोटों को सबके सामने एक बर्तन में रखा जाता था और कोई छोटा बच्चा विजेता की पर्ची निकालता था। ठीक जैसे एक हजार साल बाद सुरभि प्रश्नोत्तरी के विजेताओं को चुना जाता रहा। यह भारत के अद्भुत अनुभव का छोटा-सा हिस्सा है। इसे साझा करने के लिए सक्षम बनाने के लिए मैं सुरभि का शुक्रगुजार हूं। डीडी रेट्रो पर सुरभि की ऐसी आश्चर्यजनक कहानियों का फिर प्रसारण हो रहा है, जिससे आप जुड़ सकते हैं।
(1990-2001 के बीच आए टीवी शो सुरभि से चर्चित, वृत्तचित्र निर्माता, टीवी प्रोड्यूसर और प्रस्तोता)