कट, कट....फ्लैश बैक! पिछले साल इन्हीं दिनों चर्चित अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत (14 जून 2020) पर टीवी न्यूज और मीडिया का एक हिस्सा जज, जासूस और जल्लाद तीनों भूमिकाओं में चीख-चिल्ला रहा था। तमाम केंद्रीय एजेंसियां सीबीआइ, ईडी, नॉरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ऐसे सक्रिय हो गई थीं, मानो मामले के जर्रे-जर्रे का सच सामने ला देंगी। महीनों यह सब चलता रहा। लेकिन हाथ खाली रहे। आखिर नशे के मामले में दिवंगत अभिनेता की गर्ल फ्रेंड रिया चक्रवर्ती और उसके भाई शौविक को पकड़ने वाले एनसीबी प्रमुख राकेश अस्थाना ने पिछले साल सितंबर में आउटलुक से कहा था, ‘‘हम समस्या की जड़ तक पहुंचेंगे, रिया का मामला छोटा नहीं है। इससे एक ड्रग रैकेट का खुलासा हुआ है, जिसके तार दुबई और आतंकी संगठनों से जुड़े हैं। रिया जैसे लोग युवाओं के लिए रोल मॉडल होते हैं, उन्हें माफ नहीं किया जा सकता।’’
अब 11 महीने हो चुके हैं और अस्थाना रिटायर होने वाले हैं। लेकिन अभिनेता की मौत कैसे हुई, वह हत्या थी या आत्महत्या, या फिर रिया चक्रवर्ती ने उन्हें मौत के मुंह में ढकेल दिया, इसका जवाब न सीबीआइ, एनसीबी, ईडी ढूंढ पाई, न ही मुंबई या बिहार पुलिस, जिनके कथित टकराव से ममला केंद्रीय एजेंसियों को सुपुर्द हुआ था। अब महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत का कहना है, ‘‘सीबीआइ को जांच करते 310 दिन और एम्स के पैनल की ओर से हत्या की आशंका से इनकार किए 250 दिन हो गए हैं। सीबीआइ ने मुंह बंद क्यों किया हुआ है? सीबीआइ राजनीतिक आकाओं के दबाव में है?’’
सावंत के सवाल बेजा नहीं कहे जा सकते। अभी तक मुंबई पुलिस की प्राथमिक जांच के नतीजे ही सामने हंै, जिसमें पाया गया था कि सुशांत ने आत्महत्या की थी। अहम बात यह है कि देश की पांच-पांच एजेंसियां मिलकर भी सुशांत सिंह राजपूत की मौत की पहेली नहीं सुलझा सके। इस बीच 10 जून को दिल्ली हाइकोर्ट ने सुशांत के जीवन पर आधारित फिल्म, न्याय: द जस्टिस की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
बीते एक साल में सुशांत की मौत पर देश के सबसे प्रमुख अस्पताल दिल्ली के एम्स और मुंबई के कूपर अस्पताल की रिपोर्टें जरूर सामने हैं। सितंबर 2020 में आई एम्स की फॉरेंसिक रिपोर्ट ने सुशांत की मौत को आत्महत्या बताते हुए ‘हत्या की थ्योरी’ को खारिज कर दिया और मुंबई के कूपर अस्पताल की रिपोर्ट पर सहमति जताई थी। एम्स के फॉरेंसिक मेडिकल बोर्ड के चेयरमैन डॉ. सुधीर गुप्ता ने आउटलुक से कहा था, ‘‘गले में फंदे के अलावा शरीर पर अन्य किसी चोट का निशान नहीं था। हाथापाई के भी सबूत नहीं मिले। यह आत्महत्या का मामला है। आगे की जानकारी सीबीआइ देगी।’’ सीबीआइ को सौंपी गई उस रिपोर्ट का क्या हुआ, कोई जानकारी नहीं है।
लेकिन याद कीजिए वह मंजर जब कई टीवी चैनल चीख-चीख कर यह साबित करने में लगे थे कि सुशांत ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि हत्या हुई है और शक की सुई रिया चक्रवर्ती की ओर है। टीआरपी की होड़ में टीवी चैनल पर हत्या के ग्राफिक सीन तक क्रिएट किए जा रहे थे। ऐसा माहौल था, मानो देश में सुशांत की मौत के अलावा दूसरा मुद्दा ही नहीं बचा है। उस वक्त मीडिया की खबरों पर नजर रखने वाली संस्था न्यूजलॉन्ड्री के अनुसार, टीवी पर लगभग 35 दिनों तक लगातार खबरों में सुशांत प्रकरण की हिस्सेदारी 70 से 90 फीसदी तक थी।
कथित मीडिया-ट्रायल में कई मोड़ भी आए। पहले एक महीने तक बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद और कुछ खास लोगों के गुट के दबदबे की घुटन में बाहरी किरदारों के दम तोड़ देने के आरोप लगे। फिर, सुशांत के पिता के.के. सिंह की शिकायत पर बिहार पुलिस सक्रिय हुई तो फोकस बदला, सियासी रंग घुला और रिया चक्रवर्ती खलनायिका बन गईं। इसके इर्द-गिर्द राजनीति का भी घेरा था, क्योंकि सुशांत के गृह राज्य बिहार में नवंबर 2020 में चुनाव जो होने वाले थे।
बॉलीवुड-राजनीति-मीडिया का गठजोड़ पूरी ताकत से सक्रिय था। फिर भी ‘हत्या या आत्महत्या’ की गुत्थी तो नहीं सुलझी, लेकिन रिया को न केवल कई महीनों तक ‘मीडिया ट्रायल’ का सामना करना पड़ा, बल्कि जेल भी जाना पड़ा। रिया को मीडिया के एक वर्ग ने सुशांत की मौत का करीब-करीब जिम्मेदार घोषित कर दिया था। आखिर पिछले अक्टूबर में उन्हें मुंबई हाइकोर्ट से जमानत के रूप में राहत मिली। कोर्ट ने कहा, ‘‘इस बात के पुख्ता सबूत नहीं हैं कि रिया ड्रग डीलर नेटवर्क का हिस्सा हैं। कोई ड्रग का सेवन करता है तो वह दोषी है, लेकिन वह ड्रग रैकेट का हिस्सा भी हो यह जरूर नहीं।’’ मामले में रिया के भाई शौमिक चक्रवर्ती और अब्दुल बासित परिहार की भी गिरफ्तारी हुई थी। बाद में मीडिया का वह वर्ग खुद ही टीआरपी घोटाले के भंवर में भी फंस गया।
सुशांत को ‘न्याय’ दिलाने की होड़ में जो ड्रग्स का एंगल सामने आया, वह भी कम गौरतलब नहीं है। रिया के ह्वाट्सऐप चैट से ड्रग खरीदने की जानकारी के साथ एनसीबी ने एक कथित डीलर से महज 56 ग्राम गांजा बरामद की थी, जो कानूनन बड़ा अपराध नहीं है। फिर भी रिया और उनके भाई शौमिक के साथ-साथ अभिनेत्री दीपिका पादुकोण, सारा अली खान समेत कई लोगों से एनसीबी पूछताछ कर चुकी है। बीते दिनों रिया ने एनसीबी के सामने इस बात का भी खुलासा किया था कि सुशांत के मारिजुआना लेने की आदत की बात उनके परिवार वालों को पता थी। कुल मिलाकर एक साल में इस पूरे प्रकरण की गुत्थी उलझती गई। एजेंसियां अब तक कुछ भी ठोस सामने लेने में नाकाम रही हैं।
पिछले एक साल में मीडिया ही नहीं, पुलिस का भी नया चेहरा सामने आया। जांच के नाम पर मुंबई पुलिस और बिहार पुलिस में भिड़ंत, तू-तड़ाक की नौबत आई। बिहार पुलिस की एक टीम जांच के लिए मुंबई पहुंच गई, जबकि उसका अधिकार क्षेत्र कैसे बनता है, यह बहस का मुद्दा बना रहा क्योंकि घटना तो मुंबई में हुई थी और मुंबई पुलिस जांच कर रही थी। मुंबई पहुंची बिहार पुलिस की टीम के साथ नाटकीय मंजर भी देखने को मिले। उधर बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने रिया को अलटीमेटम भी दे दिया था। बाद में पांडे रिटायर हुए तो विधानसभा चुनाव से पहले जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए। लेकिन चुनाव में टिकट पाने की उनकी मुराद पूरी नहीं हो पाई।
सुशांत प्रकरण में ईडी की एंट्री का भी दिलचस्प वाकया सामने आया। वह सुशांत के परिवार के उन आरोपों की जांच कर रही है, जिसमें कहा गया था कि रिया ने सुशांत के बैंक खातों से 15 करोड़ रुपये निकाले थे। ईडी ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत पड़ताल शुरू की, लेकिन 15 करोड़ रुपये का कहीं अता-पता नहीं लगा। ईडी ने रिया से अगस्त 2020 में इस मामले में पूछताछ की। रिया के मैनेजर और सुशांत के पूर्व हाउस मैनेजर को भी ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया। लेकिन अभी तक कुछ साबित नहीं हो पाया है। बीते 26 मई को सुशांत के दोस्त सिद्धार्थ पिठानी को गिरफ्तार किया गया।
बहरहाल, कोई यह नहीं पूछता कि अभी तक केवल मुंबई पुलिस और एम्स की रिपोर्ट ही क्यों सामने है, जिसमें इसे आत्महत्या का मामला बताया गया है। हालांकि एम्स की रिपोर्ट पर सुशांत के परिवार के वकील विकास सिंह ने आउटलुक से तब कहा था, ‘‘एम्स के डॉ. गुप्ता ने जो बातें पहले कही थीं, उससे वे पीछे हट रहे हैं। उन्होंने पहले सुशांत की मौत को ‘दो सौ फीसदी मर्डर’ का मामला बताया था। एक बात और समझनी चाहिए कि एम्स को सिर्फ कूपर अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट पर राय देनी थी। वह इसे गले में फंदा का मामला बता सकता है, लेकिन यह आत्महत्या है, ऐसा कैसे कहा जा सकता है? इसे तो जांच एजेंसी को तय करना है।’’ जाहिर है एक साल के बाद भी सच और न्याय का इंतजार है। लेकिन मीडिया और तमाम एजेंसियों पर लगे न दाग धुल सकते हैं, न रिया चक्रवर्ती की जिंदगी में आए तूफान की भरपाई हो सकती है।