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देश में चुनाव सुधार के पर्याय

शेषन द्वारा किए गए सुधारों का फायदा मुल्क के लोकतंत्र को अभी तक मिल रहा है
टी.एन. शेषन

टी.एन. शेषन का नाम देश में चुनाव का पर्यायवाची है। उनका निधन पूरे देश के लिए शोकपूर्ण रहा। ऐसा तभी होता है, जब कोई व्यक्ति-विशेष किसी संस्था की पहचान बन जाए। जब 1990 में शेषन ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त की जिम्मेदारी संभाली, वह वक्त आयोग का सबसे कठिन वक्त था। जैसा कि उन्होंने स्वयं अपने शब्दों में मेरी एक किताब के लिए लिखा-“आयोग को कई मोर्चों पर लड़ना था। एक तरफ चुनाव बहुत हिंसात्मक और नियंत्रण के बाहर हो गए थे, दूसरी तरफ आदर्श आचार संहिता टूथलेस डॉक्यूमेंट बन चुका था। सरकार को सुधार में कोई दिलचस्पी नहीं थी, बल्कि उसकी कोशिश थी कि चुनाव आयोग पूरी तरह सरकार के चंगुल में रहे।” शेषन ने जो सुधार शुरू किए उसमें सबसे पहले मतदाता सूची को शुद्ध करना था। सुधारों में शांतिपूर्ण चुनाव के लिए सुरक्षा बलों की तैनाती, चुनाव को कई चरणों में संपन्न करना, बेईमानी प्रमाणित होने पर चुनाव रद्द करना वगैरह शामिल थे। उन्होंने मतदाताओं की सुरक्षा के लिए कई मतदान स्थल की मतपेटिकाओं के मतपत्रों का मिश्रण करने का प्रचलन शुरू किया।

शेषन द्वारा किए गए सुधारों का फायदा मुल्क के लोकतंत्र को अभी तक मिल रहा है। उनकी रखी बुनियाद पर ही उनके बाद आने वाले मुख्य निर्वाचन आयुक्तों ने मजीद सुधार किए और इस अच्छी बुनियाद पर मजबूत इमारत कायम की। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि जो सम्मान बाद में आने वाले हम मुख्य निर्वाचन आयुक्तों ने पाया, वह शेषन की ही देन है। उनके साथ काम करने का अवसर मुझे कई बार मिला, जब मुझे जगह-जगह ऑब्जर्वर बनाकर भेजा गया। कुछ चुनाव खास तौर पर मुश्किल थे, जैसे 1996 में जम्मू-कश्मीर एवं बिहार के चुनाव। जैसा कि शेषन ने स्वयं लिखा है कि ‘बहुत सारे नौकरशाह चुनाव को सिर्फ एक ‘पिकनिक’ समझते थे।’ उनके अंदर संजीदगी भरना भी शेषन की बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

जब मैं मुख्य चुनाव आयुक्त बना, उनका आशीर्वाद लेने उनके घर चेन्नै गया। उनके बारे में यह बहुत मशहूर था कि जितने वे कठोर हैं, उतनी ही उनकी धर्मपत्नी का हृदय कोमल है। जब मैं उनके घर पहुंचा, तो मेरी मुलाकात एक नहीं बल्कि दो कोमल हृदयों से हुई। उन्होंने बड़े प्यार से अपनी पत्नी से कहा-“कुरैशी को खाली हाथ नहीं जाने देंगे। इसके लिए कोई उपहार लेकर आओ।” वे कई वस्तुएं मेरे लिए निकालकर लाईं, जिसमें से मैंने एक चंदन का गणेश चुना। उनका दिया हुआ आशीर्वाद और ये उपहार जीवन भर मेरे लिए मशाले-राह हैं। मैं समझता हूं कि बतौर मुख्य चुनाव आयुक्त मैं जो भी थोड़ा-बहुत अच्छा काम कर पाया, वह शेषन साहब से ली हुई प्रेरणा ही नहीं, बल्कि उनके दिए हुए उपहार और आशीर्वाद की देन है।

(लेखक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त हैं)