रक्षा राज्यमंत्री के रूप में मेरी जिम्मेदारियों में सीमा सड़क विकास बोर्ड (बीआरडीबी) का कार्यभार भी था। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ), सशस्त्र बलों के साथ-साथ दुर्गम क्षेत्रों में आर्थिक विकास के लिए कनेक्टिविटी प्रदान करने के दोहरे उद्देश्य के साथ देश के दूरस्थ क्षेत्रों में सड़कों, पुलों और हवाई क्षेत्रों का निर्माण करता है।
मैंने सेना और बीआरओ के अधिकारियों से बात की और पूरे भारत से आए श्रमिकों को देखा और उनके काम अनुभव किया है, जिन्होंने कठिन परिस्थिति और आने वाली हर चुनौती का सामना करके इस प्रोजेक्ट को पूरा किया। इन परियोजनाओं का काम लगातार चलता रहे, यह आश्वस्त करने के लिए अकसर मैंने इन दूरस्थ स्थानों का दौरा किया। पहली बार सुरंग के बारे में मैंने तब जाना जब मैं मनाली से लेह गया। यह रास्ता खूबसूरत तो है लेकिन उतना ही कठिन भी। सुरंग बन जाने से रोहतांग दर्रे पर निर्भरता कम हो सकती थी, जो अक्सर बंद हो जाता था और इससे लेह तक हर मौसम में कनेक्टिविटी बनी रह सकती थी।
महानिदेशक, बीआरओ (डीजीबीआर), लेफ्टिनेंट जनरल एम.सी. बधानी और अतिरिक्त सचिव नीलम नाथ के साथ मंत्रालय में इसकी समीक्षा करते हुए, हमने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि इसकी तुरंत आवश्यकता थी। हमने यह भी महसूस किया कि परियोजना का काम रुकने और दूसरी चुनौतियों से लागत बढ़ रही है। लागत अनुमान और कार्यान्वयन विवरण प्राप्त करने के बाद, प्रस्ताव रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी के सामने प्रस्तुत किया गया। सुरंग की अनुमानित लंबाई 8.8 किलोमीटर की थी, जिससे 46 किलोमीटर की दूरी कम होकर, यात्रा समय 4 घंटे कम होना था। इसे 5 साल में पूरा किया जाना था।
ए.के. एंटनी के अनुमोदन के बाद मैंने मनाली की एक और यात्रा की, जिसमें लॉजिस्टिक और इलाके की चुनौतियों को जानना था। मनाली में डीआरडीओ प्रयोगशाला, हिमपात और हिमस्खलन अध्ययन प्रतिष्ठान (एसएएसई) में बैठक हुई, जिसमें रोहतांग दर्रे से संबंधित जानकारी दी गई।
इसमें इलाके और सुरंग, सुरंग तक पहुंच मार्ग के मॉडल सहित, मैंने जाना कि सुरंग तक पहुंच मार्ग अपने आप में बड़ी चुनौती थी। इसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शुरू किया था। सुरंग परियोजना के बारे में फैसला करने के बाद, इस यात्रा ने मुझे मौसम और इसमें शामिल लॉजिस्टिक और इसके क्रियान्वयन की चुनौतियों की स्पष्ट तस्वीर दी। मंत्रिमंडल ने इस परियोजना को मंजूरी दी और सहमति व्यक्त की कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को सुरंग की नींव रखने के लिए आमंत्रित किया जाए।
सोनिया गांधी की सहमति के बाद, जून 2010 में नींव रखने की तारीख तय की गई। डीजीबीआर और मैंने मनाली की कुछ यात्राएं कीं, ताकि सुरंग पर काम शुरू करने के लिए सभी व्यवस्थाएं तय की जा सकें। समारोह और सार्वजनिक सभा की उचित व्यवस्था करने के लिए हम एक सप्ताह पहले मनाली पहुंचे। पहाड़ों पर मौसम अनिश्चित रहता है और तेजी से बदलता है, तो हम लगातार मौसम पर नजर रखे हुए थे क्योंकि सभी अतिथि कुल्लू हवाई अड्डे पर उतरने के बाद हेलीकॉप्टर से आयोजन स्थल पहुंचने वाले थे। पहाड़ों पर मौसम लगातार बदलता है इसलिए लैंडिंग और टेक ऑफ के लिए बहुत कम समय मिलता है। हमने स्थानीय देवताओं की पूजा कर प्रार्थना की कि समारोह वाले दिन मौसम में कोई गड़बड़ी न हो
हमने जैसा सोचा था, रोहतांग सुरंग की नींव रखने का समारोह अच्छे से सोनिया गांधी की उपस्थिति में हो गया। इस कार्यक्रम में उनके साथ ए.के. एंटनी, हिमाचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सिंह और हिमाचल में विपक्ष की नेता विद्या स्टोक्स भी शामिल थीं। सभी गणमान्य लोगों के साथ आम जनता की उपस्थिति भी बड़ी सफलता थी। सुरंग का फायदा यह था कि वह घाटी के दूसरी ओर रह रहे लोगों को जोड़ने का साधन बन रही थी, जो सर्दी के मौसम में बिलकुल कट जाते थे। समारोह में हमारे लिए उपहार में लाई गई सुंदर हिमाचली टोपी और शॉल के अलावा, वीरभद्र सिंह ने हमें एक-एक बैग उपहार में दिया, जो सूखे पत्तों जैसा दिख रहा था। लेकिन बाद में मुझे पता चला कि यह हिमालय क्षेत्र में पाया जाने वाला महंगा और दुर्लभ मोरल मशरूम ‘गुच्ची’ है।
कुल मिलाकर, हमें अपने दृढ़ संकल्प और सामूहिक प्रयासों को सुचारू रूप से घटित होते हुए देखने की खुशी थी। संतोषजनक अहसास था कि हमने अपने महान राष्ट्र की रणनीतिक जरूरतों के लिए सफलतापूर्वक एक शुरुआत कर दी है!