अनुच्छेद 370 हटाए जाने की तीसरी बरसी के दो दिन पहले 3 अगस्त 2022 को दो लोगों ने श्रीनगर के लकदक राजबाग मुहल्ले में ऑल पार्टी हूर्रीयत कॉन्फ्रेंस के दफ्तर के फाटक पर तिरंगा लगा दिया। तिरंगा फहराने के बाद खुद को कश्मीरी पंडित एक्टिविस्ट कहने वाले संदीप मावा ने पत्रकारों से कहा कि हूर्रीयत कॉन्फ्रेंस कश्मीर पाकिस्तान शह वाला सबसे बड़ा अलगाववादी आंदोलन था। यह भी कहा कि पाकिस्तान और हूर्रीयत कॉन्फ्रेंस ने कश्मीर को बर्बाद कर दिया और दावा किया कि हूर्रीयत के दफ्तर पर तिरंगा लहराकर यह संदेश दिया है कि कश्मीर में भारत का संकल्प मजबूत हुआ है जबकि पाकिस्तान की दखल खत्म हो गई है। उन्होंने कहा, ‘‘अब हमें कश्मीरियों के जख्म पर मरहम लगाना है।’’
मावा ने कहा कि 5 अगस्त 2019 के बाद अलगाववादी राजनीति और अलगाववादी नेता गायब से हो गए हैं, लेकिन हूर्रीयत के मुख्यालय पर तिरंगा लहराना कश्मीर में ‘‘अलगाववादी पागलपन’’ के खात्मे के ऐलान के लिए जरूरी था। मावा जम्मू-कश्मीर में उप-राज्यपाल के प्रशासन के नजदीकी माने जाते हैं। वे अक्सर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के घर के बाहर दो से छह लोगों के साथ तिरंगा ‘‘रैलियां’’ निकालते रहते हैं।
हूर्रीयत कॉन्फ्रेंस का राजबाग दफ्तर अलगाववादी राजनीति का बड़ा ठिकाना हुआ करता था। 2000 में सैयद अली गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक, यासीन मलिक, शब्बीर अहमद शाह और प्रो. अब्दुल गनी भट सहित सभी शीर्ष अलगाववादी नेता हुर्रीयत की रणनीति तैयार करने के लिए वहां मिला करते थे। दरअसल के.सी. पंत, एन.एन. वोहरा और राधा कुमार जैसे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त कई कश्मीर वार्ताकारों ने 23 अलगाववादी राजनीतिक दलों वाले हुर्रीयत कॉन्फ्रेंस के राजबाग कार्यालय में ही सामूहिक रूप से हूर्रीयत नेताओं से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन वे सफल नहीं हो सके, हालांकि वे गिलानी के अलावा इन नेताओं से अलग-अलग मिलने में सफल रहे। मई 2001 में शब्बीर शाह ने तत्कालीन केंद्रीय वार्ताकार के.सी. पंत की अपने आवास पर मेजबानी की थी। यह वार्ता तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के नई दिल्ली दौरे के पहले आयोजित की गई थी।
एनआइए ने टेरर फंडिंग मामले में अदालती आदेश पर जनवरी में राजबाग स्थित हूर्रीयत कॉन्फ्रेंस मुख्यालय को सील कर दिया था
एनडीए-1 सरकार के दौरान पंत कश्मीर में केंद्र सरकार के सूत्रधार बने रहे, लेकिन कई दूसरे लोग भी बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे। देश की ताकतवर बाह्य खुफिया संगठन रॉ के पूर्व प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत श्रीनगर के एलीट तबके और अलगाववादियों के घरों में पहुंचकर पारंपरिक कश्मीरी व्यंजनों का स्वाद चखा करते थे। अपनी नई किताब ए लाइफ इन द शैडोज में दुलत लिखते हैं, ‘‘एक दिन शब्बीर शाह ने मुझसे कहा कि वे सीमा पार काठमांडू जाना चाहते हैं। वहां उनका महमूद सागर नाम का एक आदमी था। ‘मैंने सागर साहब को बुलाया है काठमांडू। कुछ बातें करनी हैं उनसे।’ उन दिनों नेपाल से हमारे अच्छे संबंध थे, इसलिए मैंने चीफ से कहा कि शब्बीर जाना चाहता है। मैंने कहा, ‘हम उसे सीमा तक ले जाएंगे’... पूरी योजना को मंजूरी दे दी गई थी, लेकिन किसी तरह शब्बीर के जाने के बाद चीफ अचानक ठंडे पड़ गए। उन्होंने मुझसे कहा, ‘यह बहुत ज्यादा है, उसे वापस बुलाओ।’ जम्मू में वापस, शाह ने दुलत से कहा, ‘‘आपको भरोसा ही नहीं है तो हम कैसे रिश्ते बना सकते हैं?’’ ऐसा था रिश्ता!
यहां तक कि जम्मू-कश्मीर काडर के पूर्व आइएएस अधिकारी वजाहत हबीबुल्ला भी कश्मीर और कश्मीरी अलगाववादियों से लगातार संपर्क में रहे। एक मौके पर प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी के नेतृत्व में एक गैर-सरकारी कश्मीर समिति भी अलगाववादियों के साथ बातचीत में शामिल रही, जिसके सदस्य पत्रकार एम.जे. अकबर, राजनयिक वी.के. ग्रोवर, न्यायविद तथा सांसद एफ.एस. नरीमन, वकील अशोक भान, शांति भूषण, जावेद नकवी और पत्रकार दिलीप पडगांवकर थे। 19 फरवरी, 2003 को केंद्र ने अफसरशाह नरेंद्र नाथ वोहरा को कश्मीर वार्ताकार के रूप में चुना, जो बाद में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने। अक्टूबर 2010 में केंद्र ने तीन वार्ताकारों दिलीप पडगांवकर, प्रो. एम.एम. अंसारी, सूचना आयुक्त और प्रोफेसर (श्रीमती) राधा कुमार को अलगाववादियों के साथ बातचीत करने के लिए नामित किया था।
अलगाववादी नेता यासीन मलिक
उससे पहले हुर्रीयत के नरमपंथी धड़े ने 22 जनवरी, 2004 को तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ नई दिल्ली में बातचीत की थी। बाद में 27 मार्च 2004 को वे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिले। फिर, यूपीए सरकार के गठन के बाद मीरवाइज के नेतृत्व वाली हूर्रीयत कॉन्फ्रेंस से 5 सितंबर, 2005 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बातचीत का एक और दौर चला। उस बैठक में मीरवाइज उमर फारूक, प्रोफेसर अब्दुल गनी भट, मौलाना अब्बास अंसारी, बिलाल गनी लोन और फजलुल हक कुरैशी शामिल थे, लेकिन बात एक खास बिंदु से आगे नहीं बढ़ पाई। हूर्रीयत ने अपना रुख कड़ा कर लिया।
गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और मोहम्मद यासीन मलिक 2016 में खास मुद्दों पर एक फ्रंट कायम किया। उन्होंने इसे साझा प्रतिरोध नेतृत्व (जेआरएल) का नाम दिया और प्रेस में कई बयान जारी करने शुरू कर दिए लेकिन वार्ता को लेकर एक भी बयान नहीं दिया।
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद कश्मीर में अलगाववादी राजनीतिक परिदृश्य बदल गया। नरमपंथी अलगाववादी नेता हूर्रीयत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक के मुताबिक, वे अगस्त 2019 से घर में नजरबंद हैं। उनके पुराने सहयोगी बिलाल गनी लोन कुपवाड़ा जिले में सभाएं कर रहे हैं, जिससे उनका रुझान चुनाव जब भी हों, उसमें हिस्सेदारी के पक्ष में दिख रहा है। अलगाववादी खेमे से आज बस यही खबर है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में चुनाव हैं कि होने का नाम ही नहीं ले रहे। इस बीच सैयद अली गिलानी की 1 सितंबर, 2021 को मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु को 5 अगस्त, 2019 के बाद कश्मीर में अलगाववादियों के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा गया था, जब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया था।
मीरवाइज उमर फारूक
5 मई, 2020 को गिलानी के करीबी और उनके संगठन तहरीक-ए-हूर्रीयत के अध्यक्ष का जम्मू के एक सरकारी अस्पताल में निधन हो गया। 78 वर्षीय नेता जुलाई 2020 से हिरासत में थे। शब्बीर शाह को 2017 के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया गया और वे दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं। यासीन मलिक टेरर फंडिंग मामले में तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। 25 मई, 2022 को, दिल्ली की एक अदालत ने मलिक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और उन्हें ‘‘2017 में कश्मीर घाटी में आतंकवाद के वित्तपोषण, आतंकवाद फैलाने और अलगाववादी गतिविधियों’’ का दोषी ठहराया।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने टेरर फंडिंग मामले में दिल्ली की एक अदालत के आदेश पर 29 जनवरी को राजबाग स्थित हूर्रीयत कॉन्फ्रेंस मुख्यालय को सील कर दिया। नई दिल्ली से एनआइए की एक टीम श्रीनगर पहुंची और गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत परिसर को बंद कर दिया। मुख्यालय के फाटक पर चिपके नोटिस में लिखा है, ‘‘लोगों को सूचित किया जाता है कि राजबाग में ऑल पार्टी हूर्रीयत कॉन्फ्रेंस के कार्यालय, जिसकी साझा मिल्कियत नईम अहमद खान के नाम है, जो फिलहाल मुकदमे का सामना कर रहा है ... उसे 27 जनवरी 2023 नई दिल्ली के पटियाला हाउस में विशेष एनआइए अदालत के आदेश से अटैच किया गया है।’’
भाजपा नेता सुनील शर्मा
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से कश्मीर में अलगाववादी राजनीति का वजूद खत्म-सा है। वरिष्ठ भाजपा नेता सुनील शर्मा कहते रहे हैं कि हूर्रीयत नेताओं के पास केवल दो विकल्प बचे हैं, मुख्यधारा में शामिल हों या जेल जाएं। असली परीक्षा तब होगी जब मीरवाइज उमर फारूक जैसे अलगाववादी नेताओं में से किसी को भी खुलकर आवाजाही और अपनी बात कहने की छूट मिल जाएगी। सरकार ऐसा कोई जोखिम उठाएगी या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा।