स्नेहा (8) और नेहा (10) (नाम बदला हुआ) के लिए कोविड-19 महामारी को भूलना आसान नहीं होगा। महामारी ने उनके माता-पिता को छीन लिया। अभी दोनों अपनी मौसी के साथ हैं, जो बताती हैं कि स्नेहा तो हालात के अनुसार बदल रही है लेकिन नेहा के लिए यह सब बहुत मुश्किल है। स्नेहा जब भी माता-पिता के बारे में पूछती है तो घरवाले कहते हैं कि दोनों कुछ दिनों के लिए भगवान के पास गए हैं। पर नेहा जानती है कि माता-पिता अब कभी नहीं आएंगे। मौसी कहती हैं, “हम इन्हें किसी को गोद नहीं देंगे। अब ये दोनों मेरी जिम्मेदारी हैं। परिवार यही तो होता है। आठ साल बाद नेहा वयस्क हो जाएगी, तब वह अपने और अपनी बहन के बारे में फैसला करेगी।”
पंजाब के एक गांव में 16 साल के रोहनप्रीत (नाम बदला हुआ) ने अप्रैल में उस समय माता-पिता को खो दिया जब उसकी बोर्ड की परीक्षाएं होने वाली थीं। एक पड़ोसी ने बताया, “गांव के बुजुर्गों ने तय किया है कि जब तक वह 18 साल का नहीं हो जाता तब तक गांव वाले उसकी देखभाल करेंगे। उसके पिता काफी संपत्ति छोड़ गए हैं। डर है कि रिश्तेदार संपत्ति का इस्तेमाल निजी फायदे के लिए करेंगे। जरूरी हुआ तो उसकी जरूरतों के लिए सभी गांव वासी पैसा देंगे।”
सोशल मीडिया पर ऐसे अनेक बच्चों की कहानियां चल रही हैं, महामारी ने जिनके माता-पिता को छीन लिया। व्हाट्सएप पर एक मैसेज आता हैः दो साल की बच्ची और दो महीने का बच्चा, उनके माता-पिता कोविड-19 की वजह से मारे गए, उन्हें एक घर की जरूरत है, अगर आपके आसपास कोई गोद लेना चाहता है तो कृपया संपर्क करें...।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट किया कि दलालों या व्हाट्सएप मैसेज आदि के जरिए किसी बच्चे को गोद लेना गैरकानूनी है। इसके लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है। उत्तराखंड में अस्पताल में भर्ती होते समय कोविड-19 मरीजों के लिए बच्चों के बारे में बताना जरूरी है। यह भी कि अगर पति-पत्नी दोनों की मौत हो जाती है तो वे किसे अपना बच्चा सौंपना चाहेंगे।
मई के पहले हफ्ते में राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग (एनसीपीसीआर) ने राज्यों के मुख्य सचिवों को एक पत्र भेजा। इसके मुताबिक, जुवेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन एक्ट 2015 में बताया गया है कि अगर किसी बच्चे को पारिवारिक मदद नहीं मिलती है और उसे देखभाल तथा सुरक्षा की जरूरत है, तो वैसी स्थिति में क्या किया जाना चाहिए। नियमों के मुताबिक ऐसे बच्चों को जिला स्तरीय बाल सुरक्षा अथॉरिटी के सामने प्रस्तुत करना पड़ता है। हालांकि एनसीपीसीआर के पास कोविड-19 से अनाथ हुए बच्चों का कोई आंकड़ा नहीं है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी कहते हैं, “कई गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ऐसे बच्चों के नाम पर पैसा लूट रहे हैं, लोगों को यह मालूम होना चाहिए। अगर किसी की जानकारी में ऐसा मामला आता है तो निकटवर्ती थाने या हेल्पलाइन नंबर 1098 पर जानकारी दें।” उन्होंने नोएडा के एक एनजीओ का उदाहरण दिया जो ऐसे अनाथ बच्चों के नाम पर पैसे मांग रहा था। उन्होंने बताया, “ये बच्चे बेचने वाले या मानव अंग बेचने वाले गैंग या सेक्स रैकेट का शिकार हो सकते हैं। लोगों को समझना चाहिए कि बच्चों को बचाने के लिए उन्हें सिस्टम में लाना जरूरी है।”
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पोर्टल चाइल्ड एडॉप्शन रिसोर्स इनफॉरमेशन एंड गाइडेंस सिस्टम (केयरिंग्स) के अनुसार मार्च 2021 में 2,253 बच्चे कानूनी रूप से गोद लिए जाने के लिए उपलब्ध थे। इनमें दो साल से कम उम्र के 169 स्वस्थ बच्चे और दो साल से अधिक उम्र के 570 स्वस्थ बच्चे हैं। 178 बच्चे भाई या बहन के साथ हैं। इनके अलावा 1,336 बच्चे विकलांग हैं। ज्यादातर बच्चे मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के हैं।
इस बीच, पंजाब सरकार ने कोविड-19 से अनाथ हुए बच्चों को प्रतिमाह 15 सौ रुपये सामाजिक सुरक्षा पेंशन और ग्रेजुएशन तक मुफ्त पढ़ाई की सुविधा देने का वादा किया है। उत्तराखंड सरकार ने मुख्यमंत्री वात्सल्य योजना की घोषणा की है, जिसमें हर महीने तीन हजार रुपये, 21 साल तक मुफ्त पढ़ाई और सरकारी नौकरियों में पांच फीसदी कोटा मिलेगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी घोषणा की है कि कोविड-19 की दूसरी लहर में अनाथ हुए बच्चों की देखभाल राज्य सरकार करेगी। राज्य ने अभी तक 60 ऐसे बच्चों की पहचान की है। मध्य प्रदेश सरकार ने मासिक पेंशन, मुफ्त शिक्षा और राशन देने का ऐलान किया है। आंध्र प्रदेश ने उनके लिए 10 लाख रुपये की एफडी करने की घोषणा की है। दूसरे राज्य भी इसी तरह की स्कीमों पर विचार कर रहे हैं।
भारत में अनाथालयों और चाइल्ड केयर सेंटर की बदहाल स्थिति को देखते हुए कोविड में अनाथ हुए बच्चों को यथाशीघ्र गोद लेने की व्यवस्था करना बेहतर विकल्प हो सकता है। गोद लेने के इच्छुक व्यक्तियों को सलाह देने वाली और गैर लाभकारी संगठन व्हेयर आर इंडियाज चिल्ड्रन (डब्ल्यूएआइसी) की सह संस्थापक मीरा मार्थी कहती हैं, “ढाई से तीन करोड़ परित्यक्त और अनाथ बच्चों में से 2.5 से पांच लाख ही चाइल्ड केयर संस्थाओं तक पहुंचते हैं। गोद लिए जाने वाले बच्चों का एक पूल होता है, वहां तक तो सिर्फ दो हजार बच्चे पहुंचते हैं।” डब्ल्यूएआइसी की अन्य संस्थापकों स्मृति गुप्ता और प्रोतिमा शर्मा के साथ मीरा ‘सेफ सरेंडर’ अभियान चला रही हैं। इसमें बच्चों को त्यागने या अनाथालय में छोड़ने के बजाय उन्हें एडॉप्शन एजेंसी को सौंपने के बारे में बताया जाता है।
मीरा कहती हैं कि चाइल्ड केयर संस्थाओं के गोद लिए जाने योग्य बच्चों को एडॉप्शन पूल में लाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। कई संस्थाओं के पास ऐसे बच्चे होते हैं, लेकिन या तो वे संस्थाएं इस प्रक्रिया के बारे में नहीं जानतीं या उनका नजरिया ऐसा नहीं है। ऐसी संस्थाएं भी हैं जो जेजे एक्ट में पंजीकरण कराए बिना बच्चों को रख रही हैं।
बच्चे को गोद कैसे लें
भारत में किसी बच्चे को गोद लेने में डेढ़ से दो साल लग जाते हैं। अगर आप किसी बच्चे को गोद लेना चाहते हैं तो पहले आपको प्लेसमेंट एजेंसी या स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी के पास रजिस्ट्रेशन कराना पड़ेगा।
तीन महीने के भीतर एक सामाजिक कार्यकर्ता आपके घर आएगा। वह माता-पिता के रूप में आप की खूबियों और कमजोरियों को समझेगा। काउंसलिंग के कुछ सत्र भी आयोजित किए जाएंगे।
जब कोई बच्चा गोद लिए जाने के लिए तैयार होगा तो एजेंसी आपको सूचना देगी। वह बच्चे का रिकॉर्ड भी साझा करेगी। तब आप बच्चे से मिल सकेंगे।
सभी कागजात पूरे होने के बाद उन्हें कोर्ट में जमा करना पड़ेगा। तय तारीख को कोर्ट जाकर आपको दस्तखत करने पड़ेंगे। उसके बाद बच्चे की देखभाल के लिए काउंसलिंग के सेशन होंगे।
कोर्ट बंद कमरे में आप से और बच्चे से सवालात करेगा। जज बच्चे के नाम पर कुछ रकम एफडी करने के लिए भी कह सकता है।
यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद कोर्ट आदेश जारी करता है और तब आप बच्चे को अपने घर ले जा सकते हैं। एक साल तक एजेंसी के लोग आपके घर आएंगे और बच्चे की देखभाल के बारे में कोर्ट को रिपोर्ट देंगे।
“मां-बाप के जाने के बाद घर न छूटे”
प्रियांक कानूनगो चेयरपर्सन, एनसीपीसीआर
कोविड-19 में अनाथ हुए बच्चों की मदद की गुहार लगाने वाले अनेक संदेश सोशल मीडिया पर आ रहे हैं। इस पर आप क्या कहेंगे?
अगर किसी बच्चे को सुरक्षा और देखभाल की जरूरत है तो उसे बाल कल्याण समिति के सामने लाना जरूरी है। समिति तय करती है कि बच्चे को कहां और कैसे रखना है। हेल्पलाइन नंबर 1098 पर अनेक कॉल आ रहे हैं और ऐसे बच्चों को बाल कल्याण समिति के सामने लाया भी जा रहा है।
इन बच्चों को गोद लिए जाने में तेजी लाने का कोई प्रस्ताव है?
बच्चे का गोद लिया जाना सीडब्ल्यूसी की जिम्मेदारी है। महामारी में माता-पिता को खो चुके बच्चों को अपना घर और संपत्ति नहीं खोना चाहिए। इन चीजों की देखभाल करना सीडब्ल्यूसी की जिम्मेदारी है। लेकिन एक-दो साल के बच्चों को निश्चित रूप से गोद लिया जाना चाहिए।
सरकारी मशीनरी तो कोविड-19 राहत कार्यों और लॉकडाउन से निपटने में लगी है। ऐसे में आप बच्चों की देखभाल कैसे कर पा रहे हैं?
सभी बाल सुरक्षा जिला इकाइयों को अलर्ट कर दिया गया है। हेल्पलाइन नंबर चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं। बच्चों की सुरक्षा के लिए परिवार को साथ रखना जरूरी है। हम जरूरत पड़ने पर भावनात्मक और आर्थिक मदद देने की भी कोशिश करेंगे। हमारे पास आने वाले हर बच्चे की जानकारी रखी जाती है। महामारी का असर कम होने पर हम अनाथ होने वाले हर बच्चे के लिए अलग चाइल्ड केयर योजना बनाएंगे। यह प्रक्रिया ऑनलाइन होगी।