Advertisement

बॉलीवुड/लौटी बुजुर्ग सितारों की चमक

करण जौहर की नई फिल्म शायद धर्मेंद्र, जया और शबाना जैसे सभी परिपक्व सितारों की वापसी का रास्ता तैयार करे
धर्मेन्द्र, जया बच्चन और शबाना आजमी

निर्देशक के रूप में करण जौहर की अगली फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी में बॉलीवुड की सबसे लोकप्रिय जोडि़यों में एक, रणवीर सिंह और आलिया भट्ट प्रमुख भूमिकाओं में हैं। जाहिर है, जब उनके बैनर धर्मा प्रोडक्शंस ने छह जुलाई को रणवीर के जन्मदिन पर इस फिल्म की घोषणा की, तो गली बॉय (2019) की इसी चर्चित जोड़ी को आकर्षण का केंद्र होना चाहिए था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि उस वक्त यह पता चला कि फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज कलाकारों की एक तिकड़ी भी उसमें काम कर रही है। इस महत्वाकांक्षी प्रेमकथा के लिए  49-वर्षीय करण ने जया बच्चन, शबाना आजमी और खासकर धर्मेंद्र को साइन करके सबको हैरान कर दिया। ऐसी इंडस्ट्री में यह आश्चर्य से कम न था, जहां अनुभवी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उम्रदराज अभिनेताओं को बेरोजगार करके उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है।

अमिताभ बच्चन के अपवाद को छोड़ दिया जाए तो  बॉलीवुड में अनुभवी कलाकारों को अमूमन केंद्रीय भूमिकाओं की पेशकश नहीं के बराबर की जाती है, क्योंकि ऐसा समझा जाता है कि टिकट खिड़कियों पर बुजुर्गों का जादू नहीं चलता। इसलिए करण जैसे बड़े निर्माता-निर्देशक का इनको महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिए साइन करना वाकई सुखद अनुभव था। 

धर्मेंद्र 85 वर्ष के हैं, फिर भी अभिनय के लिए उनका जुनून कम नहीं हुआ है। इसलिए अपनी नई फिल्म की घोषणा पर उन्होंने जोशीली खुशी व्यक्त की। पिछले दो दशक में लाइफ इन ए मेट्रो (2007), अपने (2007) और जॉनी गद्दार (2007) को छोड़कर धर्मेंद्र ने किसी भी यादगार फिल्म में काम नहीं किया है, जो उनकी प्रतिभा और प्रतिष्ठा के साथ न्याय कर सके।

इस दौरान उन्होंने यमला पगला दीवाना (2013) और इसके दो सीक्वल (2013/2018) जैसी अपनी निर्माण कंपनी की फिल्मों में कभी-कभार काम करके अपने आप को व्यस्त रखा। लेकिन अब धर्मेंद्र के प्रशंसकों को उम्मीद है कि करण की फिल्म में वे वर्षों बाद कोई यादगार भूमिका निभाएंगे।

यह भी दिलचस्प है कि धर्मेंद्र के साथ इस फिल्म में दो सशक्त सह-कलाकार जया बच्चन और शबाना आजमी हैं, जिन्होंने 1970 के दशक में हिंदी सिनेमा में प्रतिभा के बल पर अपना सिक्का जमाया था। जया ने हृषिकेश मुखर्जी की धर्मेंद्र-अभिनीत गुड्डी (1970) से हिंदी फिल्मों में अपनी शुरुआत की थी और बाद में उनके साथ समाधि (1972), फागुन (1973), चुपके चुपके (1975) और शोले (1975) जैसी फिल्मों में काम किया।

धर्मेंद्र ने शबाना के साथ भी खेल खिलाड़ी का (1977) और मर्दों वाली बात (1988) में काम किया, लेकिन उनकी सबसे महत्वाकांक्षी फिल्म बिच्छू 1983 में साई परांजपे और धर्मेंद्र के बीच कथित मतभेदों के कारण बंद हो गई।

रॉकी और रानी की प्रेम कहानी जया और शबाना को पहली बार मुख्यधारा की फिल्म में साथ लेकर आ रही है। भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान, पुणे की ये दो शानदार पूर्व छात्राओं ने इससे पूर्व टैगोर की पांच लघु कथाओं पर आधारित तपन सिन्हा की फिल्म डॉटर्स ऑफ द सेंचुरी में काम किया था। अब इनके जैसे कलाकारों के एक साथ काम करने के कारण सबों की निगाहें करण की फिल्म पर टिकी गई हैं, भले ही इसकी मुख्य भूमिकाओं में रणवीर सिंह और आलिया भट्ट सरीखे युवा और लोकप्रिय कलाकार हैं। 

ऐसा नहीं हैं कि धर्मेंद्र, जया और शबाना जैसे कलाकारों का लंबे समय बाद साथ आना फिल्म इंडस्ट्री के वरिष्ठ अदाकारों के प्रति रातोरात बदलते रवैये को दर्शाता है, लेकिन यह उत्साहजनक है। ये तीनों अपने जमाने के दिग्गज कलाकार रहे हैं और आज भी ये अपनी शर्तों पर काम करते हैं। हाल के वर्षों में इंडस्ट्री ने उम्रदराज कलाकारों के लिए जगह बनानी जरूर शुरू कर दी है। पिछले दिनों प्रदर्शित अमित मसूरकर की विद्या बालन-अभिनीत फिल्म शेरनी में 71 वर्षीय अभिनेता शरद सक्सेना लंबे अरसे बाद एक सशक्त भूमिका में दिखे। हालांकि उनका मानना है कि बॉलीवुड मूल रूप से अब भी युवाओं की इंडस्ट्री है।

चार दशकों से अधिक समय से काम कर रहे शरद कहते हैं कि उम्रद्रराज कलाकारों के लिए लिखी गई अच्छी भूमिकाएं अभी सिर्फ अमिताभ बच्चन को मिलती हैं, और जो रोल बच जाते हैं वही उन जैसे कलाकारों के खाते में आते हैं। शरद के अनुसार बुजुर्ग कलाकारों को इंडस्ट्री में मांग के अनुसार हर समय युवा दिखते रहने की कोशिश में रहना पड़ता है। उन्होंने हाल में कहा था, ‘‘71 वर्ष की आयु में भी जिम में हर दिन दो घंटे पसीना बहाता हूं, ताकि परदे पर 55 साल का दिख सकूं।’’ जाहिर है, उन्हें आशंका है कि बूढ़ा दिखने पर उन्हें बचा-खुचा काम भी नहीं मिलेगा।

शरद की आशंकाएं निर्मूल नहीं हैं। फिल्म इंडस्ट्री के कई दिग्गज कलाकारों को ढलती उम्र में काम मिलना बंद हो गया और इसी कारण उनमें से कई लोगों के आखिरी दिन मुफलिसी में बीते। भारत भूषण जैसे बीते जमाने के नायकों से लेकर ए.के. हंगल जैसे दिग्गज चरित्र अभिनेताओं के पास उनके आखिरी दिनों में इलाज तक के पैसे न थे।

सांड की आंख में बुजुर्ग निशानेबाज महिलाओं के किरदार के लिए तापसी पन्नू और भूमि पेडणेकर जैसी युवा अभिनेत्रियों को लिया गया

सांड की आंख में बुजुर्ग निशानेबाज महिलाओं के किरदार के लिए तापसी पन्नू और भूमि पेडणेकर जैसी युवा अभिनेत्रियों को लिया गया

हालांकि ऐसा हॉलीवुड में नहीं है, जहां अब भी बुजुर्ग कलाकारों को केंद्रीय भूमिकाओं में रखकर फिल्में बनाई जाती हैं। लेकिन बॉलीवुड में तो अगर किरदार किसी उम्रदराज व्यक्ति का भी हो तो निर्माता युवा अभिनेताओं को ही उसके लिए तरजीह देते हैं, जैसा दो वर्ष पूर्व अनुराग कश्यप की फिल्म सांड की आंख में हुआ। फिल्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश की दो बुजुर्ग निशानेबाज महिलाओं चंद्रा तोमर और प्रकाशी तोमर की जिंदगी से प्रेरित थी, लेकिन परदे पर उनके किरदार निभाने के लिए तापसी पन्नू और भूमि पेडणेकर जैसी युवा अभिनेत्रियों का चयन किया गया। यह बात और है कि इंडस्ट्री में रेखा और शबाना आजमी जैसी असाधारण कलाकार मौजूद थीं।

इसका मतलब यह नहीं है कि तापसी या भूमि ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय नहीं किया। यह भी सच है कि प्रत्येक फिल्म निर्माता को अपनी पसंद के अभिनेताओं को चुनने का अधिकार है। संजीव कुमार जैसे कलाकार ने तो परदे पर वास्तविक जीवन में अपने से बड़े कई अभिनेताओं के पिता की भूमिका निभाई। लेकिन इसमें शक नहीं कि रेखा और शबाना वर्तमान पीढ़ी की किन्हीं दो अभिनेत्रियों की तुलना में दो बुजुर्ग महिलाओं की भूमिकाओं में ज्यादा अनुकूल होतीं और उन्हें अपने आप को किरदार के रूप में दिखने के लिए प्रोसथेटिक्स वाली मेकअप का भी सहारा नहीं लेना पड़ता। 

पिछले कुछ वर्षों में वृद्ध किरदारों को केंद्र में रखकर कपूर ऐंड संस (2016), 101 नॉट आउट (2018), बधाई हो (2018) और सरदार का ग्रैंडसन (2021) जैसी कुछ फिल्में बनी हैं, लेकिन ऐसी फिल्मों की संख्या अभी बेहद कम है। हालांकि जब-जब अनुभवी कलाकारों को अपना जौहर दिखने को मिला, वे चूके नहीं हैं। 2017 में नीना गुप्ता जैसी बेहतरीन अभिनेत्री को बॉलीवुड में काम ढूंढ़ने के लिए ट्वीट करना पड़ा लेकिन एक साल के अंदर ही उन्होंने बधाई हो से यह सिद्ध कर दिया कि उनके अभिनय कौशल पर बढ़ती उम्र का कोई प्रतिकूल असर नहीं हुआ है। आज वे अमिताभ बच्चन की गुडबाय सहित कई महत्वपूर्ण फिल्मों में काम कर रही हैं। बधाई हो में गजराज राव ने भी अपनी छाप छोड़ी और हाल में दिवंगत हुई सुरेखा सिकरी को उस फिल्म में नायक आयुष्मान खुराना की दादी के भूमिका के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। 

उम्मीद है, करण की फिल्म धर्मेंद्र, जया और शबाना जैसे परिपक्व सितारों की वापसी का रास्ता तैयार करेगी, जिनके पास कलाकार के रूप में इंडस्ट्री और प्रशंसकों को देने के लिए बहुत कुछ है। हो सकता है कि उनका सर्वश्रेष्ठ अभी तक न आया हो!

Advertisement
Advertisement
Advertisement