महामारी कोरोना के दौर में देश और दुनिया में लोग अनेक तरह की समस्या से मुकाबिल हैं। बेकाबू संक्रमण की आशंका और अर्थव्यवस्था की तबाही से रोजी-रोटी पर भारी संकट है। उद्योग-धंधे खस्ताहाली के शिकार हैं, नौकरियां जा रही हैं, रोजगार छिन गए हैं या ठप हैं। देश में पहले से ही मंदी की शिकार अर्थव्यवस्था मुश्किल बढ़ा रही है। रोज-कमाने खाने वालों के सामने जीवन-मरण का संकट खड़ा हो गया है। चर्चाएं सबकी हैं लेकिन एक तबका ऐसा भी है जिसकी न कहीं चर्चा है, न कोई मदद का हाथ उनके लिए बढ़ रहा है।
देश में लाखों सेक्स वर्कर आज भुखमरी की कगार पर हैं। देश में करीब ढाई महीने तक चार बार के लॉकडाउन के बाद अनलॉक-2 में जिंदगी और अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने के लिए सरकार और तमाम गैर सरकारी संगठन जहां समाज के कई तबकों को राहत के लिए आगे आए हैं, वहीं संकट की इस घड़ी में यौनकर्मी पूरी तरह उपेक्षित हैं। यौनकर्मियों के मानवाधिकारों की चर्चा तक नहीं हैं। पंजीकृत सेक्स वर्कर भी सरकारी मदद की योजनाओं में शामिल नहीं हैं। हर साल 2 जून को इंटरनेशनल सेक्स वर्कर डे पर दुनिया भर में उनके अधिकारों की बात तो होती है लेकिन ये सम्मान से जिंदगी जी सकें, इसके कोई कारगर उपाय नहीं हैं। कोरोना वायरस के प्रकोप में इनकी अजीविका पर ग्रहण लग गया है। अमेरिका जैसे देश में भी इन दिनों मानवाधिकार संगठनों ने यौनकर्मियों को अन्य श्रमिकों जैसे अधिकार दिए जाने की बहस छेड़ी है।
देश में यौनकर्मियों को लेकर पुख्ता आंकड़े तो नहीं हैं, मगर कुछ मोटे अनुमान हैं। नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन (नाको) के मुताबिक देश के रेड लाइट इलाकों में कार्यरत 6.37 लाख यौनकर्मियों के यहां प्रतिदिन औसतन 5 लाख ग्राहक जाते रहे हैं। इधर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में 30 लाख सेक्स वर्कर हैं वहीं ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में 1200 के करीब रेड लाइट इलाकों में 2 करोड़ के लगभग सेक्स वर्कर कोरोना काल में भूखमरी और बीमारी से जूझ रहे हैं। थाईलैंड की जीडीपी में 10 फीसदी योगदान देने वाले सेक्स टूरिज्म के ठप होने से वहां के तीन लाख से अधिक सेक्स वर्कर संकट में हैं। इधर हावर्ड मेडिकल स्कूल और येल स्कूल ऑफ मेडिसन की ताजा स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि अनलॉक अवधि के दौरान भी भारत के रेड लाइट इलाकों को बंद रखा जाना चाहिए क्योंकि सेक्स वर्करों को छूट दिए जाने से कोरोना संक्रमण विकराल रूप धारण कर सकता है।
यौनकर्मियों के लिए काम करने वाले संगठन ‘ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स’ (एआइएनएसडब्लू) के राष्ट्रीय संयोजक अमित कुमार का कहना है, “कोरोना ने देश के 95 फीसदी से अधिक सेक्स वर्करों को बेरोजगार कर दिया है। कोरोना काल में देह दूरी के मानकों से इनका काम ठप है। इनके पास सरकारी सुविधाएं नहीं हैं। यहां तक कि समाज की सहानुभूति भी इनके हिस्से नहीं आती।” एआइएनएसडब्लू की अध्यक्ष कुसुम का कहना है कि लॉकडाउन खत्म होने के बावजूद यौनकर्मियों की परेशानी खत्म नहीं हुई। दिल्ली के जीबी रोड की 60 फीसदी यौनकर्मी में से ज्यादातर एनसीआर इलाकों में चली गई हैं।
कुसुम कहती हैं, “मैं एक आम नागरिक हूं तो सारी सुविधाएं मिलेंगी लेकिन सेक्स वर्कर होकर कहीं कुछ लेने जाती हूं तो मुझे कुछ नहीं मिलेगा। जैसे ही मेरी पहचान सेक्स वर्कर के रूप में उजागर होती है वहीं पर मेरे सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। तब मैं एक मजबूर महिला, एक मां और बहन नहीं रह जाती हूं। कुसुम जिस एआइएनएसडब्लू संगठन से जुड़ी हैं, उससे देशभर की लगभग पांच लाख सेक्स वर्कर जुड़ी हुई हैं। संगठन 16 राज्यों में काम करता है। राजस्थान के अजमेर जिले में 580 रजिस्टर्ड सेक्स वर्करों के लिए आवाज उठाने वाली एआइएनएसडब्लू की संयुक्त सचिव सुल्ताना बेगम के मुताबिक, “जितनी भी अौरतें इस पेशे से जुड़ी हैं उनमें 60 फीसदी के परिवार को पता ही नहीं है कि वो क्या काम करती हैं। इस समय इनकी परेशानी बढ़ गई है क्योंकि खर्चा चलाने का और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इनके काम को काम का दर्जा नहीं मिला इसलिए सरकार की किसी योजना का फायदा भी इन्हें नहीं मिलता। इस बीच यौनकर्मियों की सामाजिक सुरक्षा के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में मई में दायर जनहित याचिका में इनके पुर्नवास, खाने-पीने और इलाज सुनिश्चित करने की मांग की है।
हरियाणा के हिसार जिले के टोहाना की सेक्स वर्कर बबली (बदला नाम) कहती हैं, “हमारे पेशे के हालात रोज कमाने-खाने के हैं। हमारे घर में किसी को नहीं पता कि मैं सेक्स वर्कर हूं। सबको यह लगता है कि मैं ऑफिस जाती हूं। जब लॉकडाउन हुआ तो घर पर सबको लगता था कि हम काम पर नहीं जाएंगे तो भी हमें पैसे मिलेंगे। लॉकडाउन खुला पर हमारा ‘ऑफिस’ नहीं खुला। बच्चे भी परेशान हैं। रोज पूछते हैं, आपकी सैलरी कब आएगी? उन्हें क्या जवाब दूं। उन्हें क्या बताऊं कि तुम्हारी मां एक सेक्स वर्कर है। मजबूरी थी इस पेशे में आना। क्या खिलाती बच्चों को? नशेड़ी पति को घर के खर्चों से कोई मतलब नहीं। ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं इसलिए घर का खर्च चलाने के लिए 6 साल पहले मैं इस काम में पड़ी। पर कोरोना ने सब कुछ तबाह कर दिया।”
चंडीगढ़ एस्कॉर्ट सर्विसेज से जुड़ी कविता कहती हैं, “लोगों में कोरोना वायरस का डर है, मुझे नहीं लगता कि अगले एक साल तक कोई भी हमारे पास आएगा। ये डर तो अब हमारे लिए भी है कि जो लोग हमारे पास आएंगे, पता नहीं वे कहां के हैं?” ये परेशानी सिर्फ कविता की नहीं है बल्कि उसकी जैसी और कितनी ही सेक्स वर्कर्स की है जो इन दिनों अपना खर्चा न चला पाने के चलते परेशान हैं। कविता कहती हैं, “अनलॉक मंे न जाने कितने ही काम फिर से शुरू हो गए हैं पर कोरोना ने हमारे काम पर ताला लगा दिया है। हम किसी को कह भी नहीं सकते कि हम क्या करते हैं, हमारा काम क्या है। किसी को पता नहीं हैं और हम कभी चाहते भी नहीं कि किसी को पता चले।” कविता बीते दो साल से सेक्स वर्कर बन न सिर्फ अपने दो बच्चों को पढ़ा रही हैं, बल्कि अपनी बुजुर्ग मां की देखभाल का जिम्मा भी उन्हीं पर है। कविता कहती हैं, “पति बहुत मारता-पीटता था। चार साल पहले छोड़कर चला गया। सब्जी मंडी में मजदूरी का काम भी किया वहां ठेकेदार कभी पैसा देता, कभी नहीं देता। लोगों के घरांे में झाड़ू-पोछा भी किया, लेकिन इससे दो बच्चों को पढ़ाना आैर बीमार बुजुर्ग मां का खर्च उठाना मुश्किल था।” बहुत से सेक्स वर्कर्स एचआईवी पॉजिटिव भी हैं और दूसरी बीमारियों से पीड़ित हैं पर इनके पास अस्पताल जाने तक के पैसे नहीं हैं।
पेट की आग और बच्चों की परवरिश के लिए दो साल पहले नेपाल के पोखरा से दिल्ली आई सुहानी को तीन महीने से भी ज्यादा समय से एक भी ग्राहक नहीं मिला है। घर भेजने के लिए पैसा भी नहीं है। किराया देने के लिए भी मुश्किल हो रही है। दिल्ली पुलिस और कुछ संस्थाओं ने सूखा राशन दिया था, वरना भूखे मरना पड़ता। 2016 में उत्तर प्रदेश के बहराइच से लुधियाना आई बिंदिया देवी का पति 12 साल पहले परिवार छोड़कर भाग गया था। तब से ही बिंदिया के कंधे पर परिवार के भरण-पोषण का बोझ है। बिंदिया कहती हैं, “लॉकडाउन के बाद हुए अनलॉक में भी परेशानियां कम नहीं हुई हैं। मुझे तीन बेटों और दो विवाहित बेटियों और उनके बच्चों को देखना पड़ता है। पहले एक कंपनी में काम करती थी। लेकिन जब बीमार पड़ी तो काम से हटा दिया गया। फिर लोगों के यहां झाड़ू-पोछा करने लगी, लेकिन उतने पैसों से इतने लोगों का पेट नहीं पाल सकते, इसलिए परिवार से छुप कर यह काम करने लगी।” हर जगह से मिली निराशा के बाद बिंदिया भी दो साल पहले इस पेशे में आई थीं, लेकिन कोरोना ने उनकी परेशानी बढ़ा दी। वह कहती हैं, “काफी कुछ तो पहले जैसा हो रही है और बाकी भी हो जाएगा, लेकिन हमारा क्या होगा, बच्चा बीमार है, उसका इलाज कैसे होगा?” सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए काम करने वाली मृगनयनी सेवा संस्थान की अध्यक्ष प्रतिमा कुमारी का कहना है कि कोरोना का संक्रमण जैसे-जैसे बढ़ेगा, सेक्स वर्कर्स की परेशानी भी बढ़ती जाएगी। अकेले दिल्ली में यौनकर्मियों की संख्या 50 हजार के ऊपर है।”
पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी का दावा है कि इन राज्यांे और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में सेक्स वर्कर्स की संख्या लगभग 10 हजार है। इन लोगों तक सरकारी योजनाओं के लाभ पहुंचाए जा रहे हैं। लॉकडाउन में भी एनजीओ के जरिए उन तक मदद पहुंचाई गई है। जैसे, सूखा राशन, सैनिटाइजर और मास्क। इसके अलावा कोविड-19 को लेकर लगातार काउंसलिंग भी कर रहे हैं। पटियाला की प्रमिला कहती हैं कि उन्हें कुछ भी नहीं मिला। बच्चों की पढ़ाई के लिए लॉकडाउन से कुछ महीने पहले ही उसने 20 हजार रुपए कर्ज लिया था। वह कहती हैं, “सोचा था कर्ज कमाई से चुकता कर दूंगी लेकिन बीते तीन महीने से एक भी ग्राहक नहीं मिला है। हम तो बाहर निकलकर राशन भी नहीं मांग सकते।” प्रमिला बच्चों की पढ़ाई के लिए इस पेशे में आई। पति के निधन को 14 साल हो गए। बच्चे बहुत छोटे थे। दूसरों के यहां झाड़ू-पोछा करके अपना और अपने बच्चों का पेट पाल लेती थी लेकिन जैसे-जैसे खर्च बढ़ा तो यह काम करना पड़ा। वह पूछती हैं, “अब क्या काम करें, हमें कौन काम देगा?”
मुंबई के कमाठीपुरा रेड लाइट एरिया में हजारों सेक्स वर्कर्स हैं जिनमें से कई यहीं की चालों में रहती हैं तो कई मुंबई के उपनगरों से देहव्यापार के लिए आती हैं। देश का ऐसा कोई इलाका नहीं जहां की कॉलगर्ल्स यहां न आती हों। कोरोना के कारण न केवल कमाठीपुरा बल्कि देश भर की देह मंडियों की सेक्स वर्कर्स भुखमरी की कगार पर हैं। चूंकि उन्हें समाज के माथे पर बदनुमा दाग मान जाता है इसलिए कोई उनकी सुध नहीं ले रहा। इनकी हालत दिहाड़ी मजदूरों से भी बदतर है। सेक्स वर्कर, बाला का कहना है कि हमारे ऊपर भी बूढ़े मां-बाप और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी है। धंधा चौपट है तो अब हम क्या करें? कमाठीपुरा में दो लाख से अधिक सेक्स वर्कर्स कोरोना के चलते बदबूदार संकरे अंधेरे कमरों में कैद होकर रह गईं हैं। कोलकाता का सोनागाछी एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट इलाका है। यहां की तीन लाख सेक्स वर्कर्स मंे से कुछ पार्ट टाइम तो कुछ फुल टाइम सेक्स वर्कर्स हैं। इनके संगठन, दरबार महिला समन्वय समिति से करीब ढेड़ लाख सेक्स वर्कर्स रजिस्टर्ड हैं। लॉकडाउन से पहले ही यहां ग्राहकों की आवाजाही कम हो गई थी। दरबार महिला समन्वय समिति की कार्यकारिणी सदस्य महाश्वेता मुखर्जी के मुताबिक भुखमरी से बचाने के लिए हर दिन उन्हें दर्जनों सेक्स वर्कर्स के फोन आ रहे हैं। ऐसे में महाश्वेता ने एक और एनजीओ, सोनगाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की मदद से एक योजना बनाई है। इस एनजीओ के प्रबंध निदेशक समरजीत साना ने ममता बनर्जी सरकार की सामाजिक कल्याण मंत्री शशि पांजा से सेक्स वर्कर्स की मदद की गुहार लगाई है। तीन महीने पहले तक सोनागाछी चौबीसों घंटे गुलजार रहने वाला बाजार था। अब यहां सन्नाटा पसरा रहता है।
मुंबई के कमाठीपुरा और कोलकता के सोनागाछी के मुकाबले दिल्ली के रेड लाइट इलाके जीबी रोड की सेक्स वर्कर्स कुछ एनजीओ की मदद से थोड़ी बेहतर हालात में हैं। दिल्ली के अजमेरी गेट से लाहौरी गेट तक की दूरी के बीच मौजूद जीबी रोड इलाके में 100 के लगभग कोठाें में 3500 से अधिक सेक्स वर्कर्स कोरोना के चलते भुखमरी के कगार पर थी लेकिन उन्हें खाना दिल्ली पुलिस दे रही है और नजदीक के गुरुद्वारे से भी राशन मिल जाता है। सेक्स वर्कर्स और इनके बच्चे भूखे न रहें इसके लिए सोसायटी फॉर पार्टिसिपेटरी इंटीग्रेटेड डवलपमेंट(एसपीआईडी)ने दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) के साथ मिलकर जीबी रोड के कोठों में रहने वाली सेक्स वर्कर्स को राशन मुहैया कराया है। पहले सेक्स वर्कर्स के लिए यहां एक हंगर सेंटर बनाया था लेकिन लोगों के तानों के चलते सेक्स वर्कर्स वहां जाने से कतराईं तो उन्हें उनके घरों पर ही दवाइयां और राशन पहुंचाया जा रहा है। एसपीआईडी की अध्यक्ष ललिता के मुताबिक कमाई बंद होने से दिल्ली के जीबी रोड और रेवला खानपुर इलाके की हजारों सेक्स वर्कर्स संकट में हैं। इन्हें सूखा राशन तो मिल रहा है पर इसे पकाने के लिए इनके पास गैस सिलेंडर के पैसे नहीं हैं। संकट की घड़ी में सरकार से इनके राशन कार्ड और पेंशन की मांग की है।
कोरोना का सबसे बुरा असर उन शहरों की सेक्स वर्कर्स पर पड़ा है, जो संगठित नहीं हैं। इनमें ग्वालियर का रेशमपुरा, आगरा का कश्मीरी मार्केट, पुणे का बुधबर पैठ, सहारनपुर का नक्काफसा बाजार, इलाहाबाद का मीरागंज, वाराणसी का मड़ुआडिह, मेरठ का कबाड़ी बाजार, नागपुर का गंगा-जमुना, मुजफ्फरपुर का चर्तुभुज, आंध्र प्रदेश का पेड्डापुरम और गुडविडा आदि हैं। यहां की अधिकांश सेक्स वर्कर्स घरों में कैद हैं। ढाई महीने के लॉकडाउन के बाद अनलॉक में बहुत से दूसरे दिहाड़ी मजदूरों अपने काम-धंधे पर वापस लौट आए हैं, पर सेक्स वर्कर्स के इलाके गुलजार होने में लंबा वक्त लगेगा क्योंकि हर कोई कोरोना से बचाव में देह से दूरी बनाए रखेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि जिस्म की भूख पर कोरोना कितना और कब तक भारी पड़ेगा? भोपाल के एमपी नगर इलाके की कॉलगर्ल लक्ष्मी के मुताबिक, “नौबत तो भूखों मरने की आ गई है। सामाजिक संगठन जो खाना बांट रहे हैं उससे पेट भर रही हूं। लेकिन अब न तो खाने में मजा आ रहा है और न ही जीने में। विदिशा से भोपाल आकर धंधा करने वाली लक्ष्मी कहती है कि पैसों के लिए कई ग्राहकों को फोन किया लेकिन कोई मदद नहीं कर रहा।”
सेक्स वर्कर्स के लिए काम करने वाली संस्था भारतीय पतिता उद्धार सभा के अध्यक्ष खैराती लाल भोला की मानें तो केंद्र सरकार की जनधन और सेहत बीमा योजना का लाभ सेक्स वर्कर्स को नहीं मिल पा रहा, क्योंकि अधिकांश के पास न तो आधार कार्ड हैं न राशन कार्ड। ज्यादातर के बैंक खाते भी नहीं हैं। कोरोना संकट में कई संस्थाओं ने राशन दिया पर सेक्स वर्कर्स के पास उसे पकाने के लिए गैस सिलेंडर नहीं है। भोला के मुताबिक उन्हें देश भर से परेशान सेक्स वर्कर्स के फोन आए जिसके बारे उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्वास्थ मंत्री हर्षवर्धन को पत्र लिखकर अवगत कराया है लेकिन जबाब नहीं आया। मुंबई स्थित क्रांति संस्था लगातार सेक्स वर्कर्स की बच्चियों की शिक्षा और उनके भविष्य को बेहतर बनाने का काम कर रही है। यह संस्था इन बच्चियों को आवास भी मुहैया कराती है। संस्था की सह संस्थापक बानी दास कहती हैं, “एक सेक्स वर्कर की बेटी का उनके पास फोन आया कि उसकी मां की तबियत ठीक नहीं है। दरअसल वह सेक्स वर्कर एचआइवी पॉजिटिव हैं उसे टीबी भी है। तेज बुखार और दर्द से वह बेहाल थी, उसके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं था। मैंने उसकी फाइल ली और उसे भर्ती कराने अस्पताल गई। लेकिन अस्पताल ने कोरोना के अलावा दूसरे मरीजों के लिए स्टाफ की कमी का हवाला देकर भर्ती करने से मना कर दिया।” बानी दास बताती हैं, “कमाठीपुरा को पूरी तरह लॉक कर दिया गया लेकिन सरकार ने यहां राशन या खाने के पैकेट पहुंचाने की जरूरत नहीं समझी।” कोरोना संकट के बीच सेक्स वर्कर्स की व्यथा बताते हुए बानी दास कहती हैं, समझ नहीं आता कि तकरीबन 20,000 लोगों के परिवार वाला यह मोहल्ला सरकार को नजर क्यों नहीं आता? यहां के परिवार भुखमरी की कगार पर हैं। इनके छोटे बच्चों तक को दूध नहीं मिल रहा। चंद रुपयों के लिए बेगानों की जिस्मानी भूख मिटाने वाली इन सेक्स वर्कर्स के पेट की भूख खैरात के खाने से जैसे-तैसे मिट रही है पर सेक्स वर्कर्स की गिनती दिहाड़ी मजदूरों में भी नहीं होती इसलिए ये सरकारी योजनाओं के फायदे से वंचित हैं। वजह इनका धंधा गैर-कानूनी और अभिशप्त है, जिनसे चलते इनकी जिंदगी भी अभिशप्त हो गई है।
इनमें पढ़ी-लिखी हाईटेक कॉलगर्ल्स उतनी परेशानी में नहीं हैं, जितनी भोपाल की लक्ष्मी जैसी कम पढ़ी-लिखी। लक्ष्मी जैसी लड़कियों को ज्यादा पैसा नहीं मिलता। कई बार तो इन्हें दिन में 200 से 300 रुपये ही मिल पाते हैं। कमाठीपुरा, सोनागाछी और जीबी रोड जैसे इलाकों में लक्ष्मी जैसी ही सेक्स वर्कर्स हैं जबकि फाइव स्टार होटलों, स्पा, मसाज सेंटर्स, फार्म हाउसों और खुद के आलीशान फ्लेट्स से धंधा करने वाली सेक्स वर्कर्स पर लॉकडाउन का इतना खराब असर नहीं पड़ा है। हाइटेक कॉलगर्ल्स की तादाद पांच फीसदी ही है जबकि रोजाना कमाने खाने वाली सेक्स वर्कर्स 95 फीसदी हैं। पांच फीसदी सेक्स वर्कर्स ने पिछले तीन महीने में स्मार्ट मोबाइल फोन के जरिए ऑनलाइन सेक्स को कमाई का जरिया बनाया है। मोबाइल फोन चैटिंग और वीडियो कॉल के जरिए ये अपने ग्राहकों को संतुष्ट करने की कोशिश कर रही हैं। दिल्ली में जीबी रोड की एक सेक्स वर्कर बताती है कि वह तय समय पर पुराने ग्राहकों को वीडियो कॉल करती हैं। आधा घंटे से लेकर एक या दो घंटे तक वीडियो कॉल या चैटिंग, गूगल पे या पेटीएम के जरिए पैसे बैंक खाते में आने के बाद ही की जाती है। उसका कहना है, ऑनलाइन में ज्यादा रुपये नहीं मिलते लेकिन इतने, तो मिल ही जाते हैं कि खाने-पीने का इंतजाम हो सके। भारत में ही नहीं, विदेशों में भी ऑनलाइन सेक्स चैटिंग का चलन बढ़ा है। लोग सेक्स वर्कर्स के साथ फोन पर ही समय बिता रहे हैं।