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31 मार्च 2025 · MAR 31 , 2025

अमेरिका/नजरिया: ट्रम्प के पत्ते रूस की भी पहेली

ह्वाइट हाउस में जेलिंस्की प्रकरण और ट्रम्प के नाटो संबंधी बयानों से यूरोप में कई शंकाएं, मगर रूस भी अमेरिकी राष्ट्रपति को हल्के में नहीं ले सकता
जस के तसः लंदन में 2 मार्च को यूरोपियन लीडर समिट में जुटे राष्ट्राध्यक्ष

यह कहना सही होगा कि युक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलिंस्की का ह्वइट हाउस दौरा विनाशक साबित हुआ। वे वहां अमेरिका से खनिजों पर सौदा करने गए थे, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प 350 अरब डॉलर के अनुमानित युद्ध सहयोग के बदले मुआवजे के तौर पर मांग रहे थे। उसके बदले ह्वाइट हाउस में जमा हुए पत्रकारों के सामने जेलिंस्की, ट्रम्प और वान्स के बीच जबानी जंग चालू हो गई, जो अप्रत्याशित और राजनयिक रूप से चौंकाने वाली थी।

ज‍ेलिंस्की से ट्रम्प को कोई सहानुभूति नहीं है, यह बात युक्रेन अच्छे से जानता था। चुनाव से पहले ट्रम्प ने जेलिंस्की को सुपर सेल्समैन कहा था, जो हर बार अमेरिका आकर अपने साथ अरबों डॉलर मदद के नाम पर ले जाता है। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रम्प ने उन्हें तानाशाह कह दिया, उनकी कम पब्लिक रेटिंग का मखौल उड़ाया और युक्रेन में चुनाव करवाने की बात कही। चुनाव के दौरान और उसके बाद भी ट्रम्प ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से वार्ता करने की अपनी मंशा जाहिर की थी और युक्रेन की जंग को खत्म करने की दिशा पर काम करने की बात कही थी क्योंकि युद्ध को वे पैसे और जीवन की बरबादी मान रहे थे और उन्हें आशंका थी कि यह कहीं तीसरे विश्व युद्ध में न तब्दील हो जाए। 

विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने भी सीनेट की बैठकों में इस युद्ध को खत्म करने की बात पर जोर दिया था क्योंकि युक्रेन के पास अब युद्ध जारी रखने के संसाधन नहीं बच रहे। रक्षा मंत्री पीट हागसेथ ने पिछले महीने म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में कहा था कि यूरोप को शामिल किए बगैर अमेरिका इस युद्ध को खत्म करने के लिए सीधे रूस से बात करने की मंशा रखता है क्योंकि यूरोप बीते तीन साल में इसका कोई हल नहीं निकाल सका है।   

अमेरिका फिलहाल इस मामले में युक्रेन को भी शामिल करने की जरूरत महसूस नहीं कर रहा। एक बार अमेरिका और रूस बुनियादी बातों पर राजी हो जाएं, तो फिर युक्रेन को साथ बैठाया जा सकता है। रूस के लिए अमेरिका के साथ तरोताजा हुए अपने अनुबंध के उद्देश्य व्यापक हैं और यह केवल युक्रेन युद्ध को खत्म करने तक सीमित नहीं है।

रूस ने युक्रेन पर टकराव से बचने के लिए यूरोपीय सुरक्षा पर दिसंबर 2021 में अमेरिका को कुछ प्रस्ताव पेश किए थे, जिसे उसने सीधे ठुकरा दिया था। यह यूरोप में समतापूर्ण और अविभाज्य सुरक्षा का विचार है, जिसकी परिणति रूस के मुताबिक अमेरिका को ट्रांसअटलांटिक अलायंस का नेतृत्व प्रदान करने में होनी थी। यूरोप का स्वतंत्र न बने रहकर अमेरिकी सुरक्षा पर निर्भर हो जाने का निहितार्थ यह था कि युक्रेन से जुड़ी चिंताओं को रूस नाटो के दायरे में ला देना चाहता था। इसके लिए सबसे पहले रूस की अमेरिका से वार्ता की दरकार थी, न कि यूरोप से। इसकी परिकल्पना के पीछे शायद मिंस्क 1 और मिंस्‍क 2 के अनुभव तथा नॉरमैन्डील का खाका शायद रूस के दिमाग में रहा होगा। इसी से यह बात स्परष्ट होती है कि एक बार ट्रम्प के सत्ता में आ जाने के बाद दोनों पक्ष अपने शुरुआती समझौतो से किसी तीसरे पक्ष को बाहर रखने पर सहमत होते, चाहे वह यूरोप हो या फिर युक्रेन। 

यूरोप और युक्रेन दोनों ने ही अमेरिकी-रूस वार्ता से खुद को बाहर रखे जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है। फ्रांस, ब्रिटेन और पोलैंड के नेता खुद को अमन के प्रयासों में शामिल किए जाने और युक्रेन की पीठ पीछे कोई फैसला लिए जाने के खिलाफ गोलबंदी के लिए वॉशिंगटन डीसी का दौरा कर चुके हैं।     

बीते कुछ वर्षों में जेलिंस्की को अमेरिका के पूर्व प्रशासन, तमाम यूरोपी नेताओं और पश्चिमी मीडिया ने खूब हवा दी है। संभव है कि इस सबने उनके भीतर अति आत्मविश्वास भर दिया हो कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना पक्ष आक्रमकता के साथ रख सकते हैं- इस हद तक कि वे युद्ध में दूसरे के सहयोग को एक अधिकार की तरह मांग सकते हैं यह दलील देते हुए कि युक्रेन न सिर्फ अपने लिए बल्कि समूचे यूरोप की सुरक्षा के लिए और पूरे विश्व में आजादी और लोकतंत्र के लिए लड़ रहा है।

ऐसा लगता है कि जेलिंस्की के भीतर एक किस्म के विशेषाधिकार का बोध पनप चुका था। यह उनके सहयोगी रहे बाइडन, मैक्रां, शुल्ज़क और पिछले पोलिश प्रधानमंत्री, ब्रिटेन के तत्कालीन रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री मोदी के प्रति उनके रूखे व्यवहार से जाहिर होता है। मोदी के युक्रेन दौरे पर जेलिंस्की  ने उन्हें रूस से तेल खरीदने पर उलाहना दी थी और जोर दिया था कि भारत अगर कोई भूमिका अदा करना चाहता है तो पहले वह जेलिंस्की की अमन योजना स्विस कम्युमनी पर दस्तखत करे।

जेलिंस्की की शख्सियत का यही झोल ह्वाइट हाउस में ट्रम्प  से हुई उनकी मुलाकात के दौरान उनके व्यवहार को रेखांकित करता है। वे जानते थे कि ट्रम्प को भरोसा है कि वे पुतिन से बातचीत करके एक व्यापक अमन सौदे के तहत युद्ध विराम करवा देंगे, फिर भी जेलिंस्की ने ट्रम्प की मान्यता पर सवाल उठाते हुए पुतिन को हत्यारा और आतंकवादी कह डाला तथा किसी संभावित युद्धविराम को खारिज करते हुए पुतिन पर 25 बार से ज्यादा यु‍द्ध विराम का उल्लंघन करने का आरोप लगा दिया। फिर वे उपराष्ट्रपति वान्स के साथ टकराव का समाधान करने के लिए कूटनीति की जरूरत पर अनावश्यक बहस में इस हद तक उलझ गए कि यह कह डाला कि आज अगर रूस ने युक्रेन के खिलाफ जंग छेड़ी है, तो अमेरिका को भी खुद को महफूज नहीं समझना चाहिए, सिर्फ इसलिए क्योंकि यूरोप और उसके बीच एक महासागर खड़ा है। यही वह बिंदु है जिस पर ट्रम्‍प उकसावे में आ गए और भड़क गए। फिर भी जेलिंस्की पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा और वे लगातार भड़काऊ बातें बोलते रहे।      

ह्वाइट हाउस के बवाल के बाद जब जेलिंस्की लंदन में रुके, तो यूरोप के नेताओं ने ट्रम्प को एक तरह से ठेंगा दिखाते हुए जेलिंस्की से इस तरह बरताव किया गोया वे ऐसे नायक हों जिसके साथ कुछ गलत घट गया हो। उन्होंने जेलिंस्की को पैसे और हथियार से मदद और अमन सौदे के बाद सुरक्षा की गारंटी दे डाली। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने किंग चार्ल्स से बात करवा कर जेलिंस्की के सियासी कद को और फुला दिया। 

लंदन में हुई इन मुलाकातों का संदेश यह था कि जेलिंस्की राजनैतिक रूप से कारगर ऐसे नेता हैं, जिन पर दांव लगाया जा सकता है, भले ट्रम्प और उनका प्रशासन उनके बारे में कुछ भी सोचता हो। इससे युक्रेन के मसले पर यूरोप और ट्रम्प प्रशासन के बीच बढ़ती खाई तो उजागर होती ही है। साथ ही इन चढ़ावों ने जेलिंस्की को इतना मनबढ़ बना दिया कि वे फिर से युद्ध के प्रति अपना संकल्प जाहिर करते हुए और ज्यादा हथियार व वित्तीय सहयोग की बात करने लगे। उन्होंने सुरक्षा की गारंटी लिए बगैर युद्ध विराम की संभावना को खारिज कर डाला और खुद को युक्रेन के स्वाभाविक और लोकप्रिय नेता के रूप में पेश किया।

अब जेलिंस्की के कितने दिन बचे हैं, यह देखने वाली बात होगी। ट्रम्प ने तो संकेत दे ही दिया है कि जेलिंस्की सत्ता में नहीं रह सकते। दबाव की राजनीति के तहत उन्होंने फिलहाल युक्रेन को हथियारों की आपूर्ति रोक दी है। ऐसे में यूरोप नारेबाजी से इतर युक्रेन को सैन्य और आर्थिक सहयोग का बोझ वास्तव में उठा पाएगा या नहीं, यह सवाल भी बहसतलब है। अपनी शर्मनाक स्थिति से उबरने के लिए जेलिंस्की ने माफी मांगने के बजाय ह्वाइट हाउस के घटनाक्रम पर खेद जताया है और ट्रम्प की रहनुमाई में युद्ध विराम की संभावनाएं खंगालने तथा खनिज सौदे पर दस्तखत करने को तैयार हो गए हैं। इसके बावजूद अब भी उन्हें अमेरिका या नाटो से ठोस सुरक्षा गारंटी चाहिए क्योंकि नतीजों पर उन्हें संदेह है। फिलहाल ट्रम्प के अहं को उन्होंने शांत कर दिया है। ट्रम्प ने स्टेट ऑफ द यूनियन के अपने संबोधन में जेलिंस्की के भेजे खेद पत्र का संतोषजनक ढंग से जिक्र किया। कुल मिलाकर वजूद कायम रखने के बदले जेलिंस्की को थोड़ी-सी शर्मिंदगी उठानी पड़ी है।

रूस या युक्रेन से अमन समझौते की ट्रम्प की योजना को यूरोप रोकना चाहता है क्योंकि उसके नेताओं को लंदन की बैठक में निर्णायक रूप से चुने जेलिंस्की के पक्ष से वापस हटने में कठिनाई होगी। इसका असर नाटो अलायंस पर पड़ सकता है जिस बारे में ट्रम्प पहले से ही संशय में हैं। युद्ध को रोकने की ट्रम्प की योजना को भी यह जटिल बना सकता है।

इसमें कोई शक नहीं है कि अमेरिका और जेलिंस्‍की के बीच पड़ी दरार को रूस सकारात्मक मान रहा होगा। ट्रम्प की सनकी प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए रूस की रणनीति यह होगी कि उन्हें ऐसे चक्कर में फंसा दिया जाए, जहां उसके पास अपने सुरक्षा हितों को चाक-चौबंद रखने की पर्याप्त जगह बच सके। रूस अच्छे से जानता है कि ट्रम्प के हाथ में कई बड़े पत्ते हैं लेकिन सारे नहीं हैं। ट्रम्प के पत्ते ही रूस की पहेली है।

(लेखक पूर्व विदेश सचिव और रूस के पूर्व राजूदत हैं)

 

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