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कला/इंटरव्यू/जयंती माला मिश्रा: सितारा देवी पर फिदा थे मंटो

प्रख्यात नृत्यांगना सितारा देवी का यह जन्मशताब्दी वर्ष है
सितारा देवी

प्रख्यात नृत्यांगना सितारा देवी का यह जन्मशताब्दी वर्ष है। वे बालसरस्वती रुकमणी देवी अरूंडेल की तरह किवदंती बन चुकी हैं। उर्दू के महान अफसानानिगार मंटो ने उन पर शानदार संस्मरण लिखा है, जिसमें उन्होंने सितारा देवी को “तूफान” बताया था। बिरजू महाराज उन्हें “दीदी” कहकर सम्मान देते हैं। सितारा देवी की पुत्री जयंती माला मिश्रा भी कुशल नृत्यांगना हैं। उन्होंने अरविंद कुमार से बातचीत में अपनी मां के जीवन और योगदान के कुछ अनछुए पहलुओं का जिक्र किया। प्रमुख अंशः

लॉकडाउन में सितारा देवी की जन्मशती के लिए क्या कर रही हैं?

मेरे पति ने करीब छह महीने पहले संस्कृति मंत्रालय को पत्र लिखकर मम्मी की जन्मशती मनाने का अनुरोध किया था। बड़ा कार्यक्रम करने के लिए हमने सरकार से अनुदान मांगा था। लेकिन आज तक कोई जवाब नहीं आया। लॉकडाउन में हम लोगों ने फेसबुक पेज पर कई ऑनलाइन कार्यक्रम किए क्योंकि सभागार में ऐसा करना संभव नहीं था। जैसे ही स्थिति सामान्य होगी, हम कार्यक्रम करेंगे। ऑनलाइन कार्यक्रम में बिरजू महाराज भी बोले, शोभना नारायण जी भी। बीसवीं सदी में वह एक ही सितारा पैदा हुई थीं। संगीत नाटक अकादमी को राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम करना चाहिए, वरना नई पीढ़ी कैसे जानेगी कि कौन थीं सितारा।

मंटो का जिक्र होते ही सितारा देवी का स्मरण हो आता है। मीना बाजार में उनका संस्मरण कौन भूल सकता है। मंटो और सितारा देवी के रिश्तों पर कुछ बताएं क्योंकि मंटो ने बहुत बातें शायद छुपा ली थीं।

मंटो महान लेखक थे। उन्होंने बड़ी-बड़ी हस्तियों के बारे में लिखा है। उनमें कई फिल्मी सितारे और लेखक भी हैं। वे सितारा देवी के बड़े फैन थे। उनकी नजर में सितारा जी जैसी अभिनेत्री और नृत्यांगना इस सदी में कोई नहीं हो सकती थी। जब सितारा जी की उम्र सोलह वर्ष की थी तो वे हमारे दादा जी से मिलने और मम्मी की डांस प्रैक्टिस देखने आते थे। अक्सर प्रैक्टिस के समय बैठ जाते थे लेकिन मम्मी को यह बात पसंद नहीं थी। वे अपने पिता जी से शिकायत करतीं, तो पिता जी बोलते थे कि मंटो पत्रकार हैं, तुम्हारे बारे में बड़े पेपरों में निकालते रहते हैं।

एक बार मम्मी ने मंटो को घर से बाहर भी निकाल दिया। उस समय मम्मी छोटी थीं। बाद में उन्होंने मंटो से माफी भी मांग ली। एक दिन मंटो घर आए मिठाई और फूल लेकर। मम्मी अकेले प्रैक्टिस कर रही थीं। वे तलवार लेकर डांस कर रही थीं। उन्हें मंटो का आना पसंद नहीं था पर मंटो पर मानो इश्क का भूत सवार था। उन्होंने डायलॉगबाजी शुरू कर दी। मम्मी ने उन्हें समझाया पर मंटो नहीं रुके, तो मम्मी तलवार लहराते हुए उनके सामने नाचने लगीं। वे बहुत दिनों से मंटो के लिए मौका देख रही थीं। इस तरह मम्मी ने मंटो को कड़ा संकेत दिया।

सुना है एक बार वे चंबल में डाकुओं के बीच नृत्य करने गई थीं। यह किस्सा क्या है?

मम्मी बहुत साहसी और वीरांगना थीं। एक बार मोहल्ले में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगे में लोगों को बचाने के लिए आगे आईं और बहुत सारे मर्दों से लड़कर औरतों को बचाया। दरअसल वे किसी से डरती नहीं थीं। एक समय सरकार डाकुओं को अच्छी जिंदगी जीने के लिए आत्मसमर्पण करवा रही थी। तब उनके मनोरंजन के लिए सरकार एक कार्यक्रम करा रही थी। डर के कारण कोई पुरुष डांसर वहां जाना नहीं चाह रहा था। तब सरकारी अधिकारी मुश्किल में पड़ गए और एक आइएएस अधिकारी ने मम्मी से संपर्क किया और कहा हम आपके पास इसलिए आए हैं कि आप दबंग और साहसी हैं, हमारी लाज रखिए। तब मम्मी चंबल घाटी में गईं। वहां बड़ा कैंप लगा हुआ था। वहां डाकुओं की पत्नियां भी थीं। शाम को मम्मी का डांस हुआ। मैदान डाकुओं से भरा था। मम्मी को देखकर डाकू हंस रहे थे। फिर मम्मी ने उनके सामने नृत्य पेश किया। नृत्य के पहले उन्होंने डाकुओं से कहा कि आप लोग जय भवानी बोलकर हमला करते हैं, आज जय भवानी का नृत्य देखिए। तीन घंटे तक नृत्य हुआ। पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया। डाकू इतने खुश हुए कि वे उनके कदमों में झुक गए। फिर, उन्होंने मम्मी के सम्मान में बंदूक से हवा में गोलियां दागीं। डाकुओं ने कहा कि आप हमारे लिए जय भवानी हैं, दुर्गा है, हमारी शक्ति हैं। यह देखकर सरकारी अधिकारी भी बहुत खुश हुए।

सितारा जी कुशल नृत्यांगना के अलावा अभिनेत्री भी थीं। चालीस के दशक में उन्होंने कई फिल्मों में काम किया। उस दौर में फिल्मी हस्तियों के साथ उनके संबंधों के बारे में कोई भूली-बिसरी यादें हों, तो सुनाइए।

बॉलीवुड वाले उन्हें फिल्मों के लिए बनारस से खोज कर लाए थे। उस समय उषा हिरण फिल्म बन रही थी। वे मेरे नाना सुखदेव महाराज के घर आए और इस काम के लिए उनकी तीनों लड़कियों को देखा पर पसंद सितारा जी को किया। तब उनकी उम्र बारह साल थी। उन्हें ऐसी लड़की चाहिए थी, जो कथक की कुशल नृत्यांगना हो और गायिका भी हो। मम्मी में ये दोनों गुण थे। इस तरह मम्मी का फिल्मी सफर शुरू हुआ और तीस साल तक चला। उन्होंने अनगिनत फिल्मों में काम किया। उनकी फिल्मों में नृत्य जरूर हुआ करता था। उषा हिरण के बाद दूसरी फिल्म अल हिलाल, लेख, स्वामी, परदेशी, हलचल, फूल नर्तकी आदि फिल्में आईं। कम लोगों को पता होगा कि वे फिल्मों में खुद गाती भी थीं। इन फिल्मों में भी उन्होंने गाया था। उन्होंने करीब डेढ़ सौ फिल्मों में गाया था। मुगले आजम ने उन्होंने नृत्य निर्देशन किया था। कोहिनूर फिल्म में उस जमाने में छह हजार रुपये में डांस किया था। वेस्टर्न डांस में भारतीय नृत्य का फ्यूजन कर उन्होंने फिल्मी डांस की शुरुआत भी की। तब कूल्हे नहीं मटकाए जाते थे। उन्हें फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का गौहर अवॉर्ड मिला था, जो सोने का था। वह अवॉर्ड लंदन में मिला था। उन्हें फिल्म फेयर अवॉर्ड, स्क्रीन अवॉर्ड भी मिला। संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड भी मिला और संगीत रत्न भी। पद्मभूषण उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि पद्मश्री मिलने के तीस साल बाद सरकार उनको पूछ रही है जबकि उनसे जूनियर लोगों को पद्मभूषण, पद्मविभूषण मिलता रहा। मम्मी का कहना था कि वे भारत रत्न की हकदार हैं। वे बहुत स्वाभिमानी थीं। उनमें एक कलाकार का स्वाभिमान था। किसी से समझौता करना वे नहीं जानती थीं। देव आनंद, राज कपूर, दिलीप कुमार राजकुमार, धर्मेंद्र, मनोज कुमार, मधुबाला, निम्मी, मीना कुमारी से उनके अच्छे रिश्ते थे। पृथ्वीराज कपूर और राजकुमार मम्मी के फैन थे। अपने पति के. आसिफ को बोला कि राजकुमार को फिल्मों में रखिए। राजकुमार मरते दम तक मम्मी की इज्जत करते रहे, दिलीप कुमार को वे हमेशा राखी बांधती थीं, उनकी मृत्यु तक बहुत ही घरेलू संबंध रहे।  

उनके विवाह और प्रेम प्रसंगों को लेकर भी कई भ्रांतियां हैं। विकिपीडिया में लिखा है कि उनकी पहली शादी पाकिस्तान के किसी नासिर हुसेन के साथ हुई थी।

नासिर हुसेन उनके अच्छे मित्र थे। उनसे मम्मी की शादी नहीं हुई थी। वे तो खुद पैसे लेकर भाग गए थे। मम्मी उनसे शादी क्या करतीं। नासिर हुसेन के परिवार वालों ने भी इंटरनेट पर इस भ्रामक जानकारी पर आपत्ति की है। मैं भी विकिपीडिया को लिखने वाली हूं कि इस गलत तथ्य को हटा दें।

के. आसिफ से उनकी शादी क्यों टूटी थी?

के. आसिफ मशहूर डायरेक्टर थे। उनका अभिनेत्रियों से अफेयर चलता था। वे मम्मी की अनुपस्थिति में भी लड़कियों को घर में लाते थे। मम्मी खुले दिमाग की थीं। वे के. आसिफ की महिला मित्रों से भी अच्छे से मिलती थीं। के. आसिफ शादी के बाद मम्मी को तो बच्चे पैदा करने से मना करते रहे। लेकिन खुद पिता बनते रहे। उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री निगार सुल्ताना से भी उनका संबंध था। वे निगार के पास चले गए। उन्होंने मम्मी से माफी भी मांगी। तब मम्मी ने कहा तुम अपनी जिंदगी जियो, मैं अपनी जिंदगी। अब हम पति-पत्नी नहीं रहे, मित्र बनकर रहेंगे। फिर आसिफ साहब ने चुपचाप बिना बताए निगार से शादी कर ली। मम्मी ने बहुत कोशिश की कि आसिफ उनको तलाक दे दें पर उन्होंने मम्मी को तलाक नहीं दिया, जबकि कोर्ट मैरिज थी। इस तरह बीस साल की शादी टूट गई। मम्मी ने प्रताप बनोट से शादी कर ली। प्रताप बनोट से उनकी मुलाकात वर्ल्ड टूर पर हुई मगर वह शादी भी टूट गई। प्रताप बनोट ने मम्मी की शोहरत और पैसे के लिए शादी की थी।

टैगोर ने सितारा जी को नृत्य सम्राज्ञी की उपाधि कहां दी थी?

मुंबई में हैदराबाद एस्टेट में स्वतंत्रता सेनानियों की एक सभा थी। उसमें टैगोर, नेहरू, पटेल आदि थे। इंदिरा जी भी थीं। वे मम्मी की उम्र की थीं। मम्मी सोलह वर्ष की थीं। सभा के बाद मम्मी के नृत्य का कार्यक्रम हुआ। बीस मिनट का कार्यक्रम था। वह लोगों को इतना पसंद आया कि पैंतालीस मिनट तक चलता रहा। टैगोर दंग रह गए। उन्होंने कहा कि तुम तो नृत्य सम्राज्ञी हो। फिर उनकी तरफ से एक प्रमाण पत्र दिया गया और एक प्रतीक चिन्ह भी।

सितारा देवी की बेटी जयंती माला मिश्रा

सितारा देवी की बेटी जयंती माला मिश्रा

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