भारत दौरे पर आए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दिल्ली के दंगों और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के मुद्दों को नजरंदाज कर दिया, ताकि उनके इस दौरे पर कोई नकारात्मक छाया न पड़े। लेकिन भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा निकट भविष्य में भारत-अमेरिका के बीच बातचीत में लौट सकता है। भारत की मौजूदा घटनाएं नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में प्रचार का मुद्दा बन सकती हैं। डेमोक्रेट नेता बर्नी सैंडर्स ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत में सांप्रदायिक दंगों को नजरंदाज करने पर ट्रंप की आलोचना की है। सैंडर्स के अनुसार, ट्रंप को यह मुद्दा बेबाकी से उठाना चाहिए था। भारत में एक वर्ग यह कहकर सैंडर्स की आलोचना को खारिज कर सकता है कि चुनाव के कारण ट्रंप के विरोधी उन्हें इस मुद्दे पर घेरने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन ऐसा सोचना काफी महंगा पड़ सकता है। धार्मिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार और विचारों की आजादी अमेरिकी संविधान के मूलभूत तत्व हैं। ये मुद्दे अमेरिका के आर्थिक हितों के लिए भी महत्व रखते हैं। धार्मिक स्वतंत्रता की मनाही और समाज के कमजोर वर्गों का उत्पीड़न सामाजिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता को जन्म देती है, जिसे निवेशक नापसंद करते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी को सुनिश्चित करना होगा कि ये मुद्दे सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझें और देश के विकास में समाज के सभी वर्ग समान रूप से हिस्सेदार बनें।
ट्रंप के दौरे के समय ही दिल्ली में दंगे भड़कने पर सवाल उठने लगे कि क्या यह मोदी को शर्मिंदा करने का प्रयास था? भारत को शर्मिंदगी से बचाने के लिए ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “मैंने सुना तो है, लेकिन उनसे (मोदी से) इस पर कोई बात नहीं हुई। भारत खुद इस मुद्दे से निपटने में सक्षम है।” हालांकि, बातचीत में धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा जरूर आया। ट्रंप ने कहा, “प्रधानमंत्री चाहते हैं कि लोगों को धार्मिक आजादी मिले।” ट्रंप ने तय कार्यक्रम के अनुसार भारत के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने की पहल की। दोनों पक्षों ने रक्षा, मैरीटाइम, घरेलू सुरक्षा, न्यूक्लियर एनर्जी, अंतरिक्ष और 5जी टेक्नोलॉजी में सहयोग बढ़ाने के समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
पत्नी मेलानिया, बेटी इवांका, दामाद जैरेड कुशनर और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ ट्रंप 24 फरवरी को अहमदाबाद पहुंचे, तो स्वागत करते जन समूह को देखकर प्रभावित हुए बगैर नहीं रह पाए। हवाई अड्डे से अहमदाबाद की सड़कों से होते हुए सवा लाख की क्षमता वाले मोटेरा क्रिकेट स्टेडियम में ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम को देखकर गदगद अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, “मुझे बताया गया कि किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के लिए यह अभी तक का सबसे शानदार स्वागत है।” अहमदाबाद से आगरा में ताजमहल देखने के बाद ट्रंप दिल्ली पहुंचे, जहां उनका आधिकारिक स्वागत हुआ।
ट्रंप के स्वागत का शोर थमने के बाद एक सवाल उठना लाजिमी था कि उनके इस दौरे का मकसद क्या है? अमेरिकी सीनेट में डेमोक्रेट्स के महाभियोग से दोष मुक्त होने के बाद ट्रंप अपनी राजनीति को नई धार देने भारत पहुंचे। सुधरती अर्थव्यवस्था और ऐतिहासिक रूप से कम बेरोजगारी दर के साथ कोरोना वायरस के प्रकोप से चीन की विकास दर प्रभावित होने की आशंका के बीच वे दोबारा राष्ट्रपति बनना चाहते हैं। लेकिन चुनाव प्रचार के बीच 36 घंटे के दौरे के लिए 8,000 मील की हवाई यात्रा करने पर कई सवाल उठते हैं। कुछ लोग इसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अहमियत के संकेत के तौर पर देखते हैं। लेकिन अनेक लोग इससे सहमत नहीं हैं, खासकर यह देखते हुए कि ट्रंप सिर्फ भारत के दौरे पर आए थे। आम तौर पर ट्रंप किसी भी दौरे में कई देशों की एक साथ यात्रा करते हैं। एक अपवाद जापान दौरे का है, जिसके प्रधानमंत्री शिंजो आबे उनके घनिष्ठ मित्र हैं। मोदी को इतना सम्मान देने की वजह क्या है? व्यक्तिगत केमिस्ट्री और भारत-अमेरिकी रिश्तों की घनिष्ठता की ओर से संकेत देते हुए मोदी ने कहा कि पिछले आठ महीनों में वह पांचवीं बार ट्रंप से मिल रहे हैं। ट्रंप को पिछले साल ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम के समय भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों की भीड़ देखकर मोदी की लोकप्रियता का अहसास हुआ था।
पारंपरिक रूप से अप्रवासी भारतीय डेमोक्रेट को वोट देते रहे हैं। 2016 में 77 फीसदी ने हिलेरी क्लिंटन को और सिर्फ 16 फीसदी ने ट्रंप को वोट दिया था। हाल के सर्वे से पता चलता है कि मोदी के कारण ट्रंप के पक्ष में भारतीयों का अनुपात बढ़कर 56 फीसदी हो गया है। भारत आने के पीछे यह महत्वपूर्ण कारण है, खासकर गुजरातियों को संबोधित करने से उनके चुनावी गणित का अनुमान लगाया जा सकता है। भारत से निवेश, अमेरिकी सैन्य उपकरण, न्यूक्लियर रिएक्टर, तेल और गैस के लिए व्यापार समझौते की जमीन तैयार करना भी दौरे को उपयोगी बनाता है। अभी दोनों देशों के बीच 20 अरब डॉलर का व्यापार घाटा (भारत के पक्ष में) है। ट्रंप जिस तरह भारत को सैन्य उपकरण और रिएक्टर बेचने में सफल रहे, उससे इसे कारोबारी दौरा कहना गलत नहीं।
2000 में बिल क्लिंटन के दौरे के बाद ट्रंप भारत आने वाले लगातार चौथे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं। क्लिंटन के बाद जॉर्ज बुश और बराक ओबामा भारत आए। क्लिंटन से पहले 1978 में अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर जिमी कार्टर भारत आए थे। पिछले दो दशकों में भारत-अमेरिका के बीच रिश्तों में मजबूती आई है। ओबामा और ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भारत का दौरा किया। विशाल बाजार और निवेश स्थान के तौर पर भारत का खास आकर्षण है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की भूमिका बढ़ने से भी अमेरिका का नजरिया बदला है।
सिर्फ भारत दौरे पर आने से पता चलता है कि ट्रंप भारत और पीएम मोदी को कितनी अहमियत देते हैं। एक अमेरिकी थिंक टैंक के वरिष्ठ सदस्य ने कहा, “बड़ी ताकतों के बीच होड़ का दौर लौट आया है, जिसके कारण भारत को अमेरिका जरूरत से ज्यादा महत्व दे रहा है।” मोटेरा में भाषण के दौरान ट्रंप ने चीन का नाम लिए बगैर कहा कि बड़ी ताकत के रूप में भारत के उभरने को अमेरिका और अन्य देश समर्थन कर रहे हैं, जबकि कई दूसरे देश इसके खिलाफ हैं। इन सबके बावजूद भारत-अमेरिका के बीच कई मुद्दों पर मतभेद छिपे नहीं हैं। अमेरिका में रहे एक पूर्व भारतीय राजदूत ने कहा, “1990 के दशक में अमेरिका कहता था कि चीन का उभरना अमेरिका के हित में है। आज वह भारत के उभार को अमेरिका के हित में बताता है। चीन के पक्ष में अपना रुख बदलने में उसे कितना वक्त लगेगा?” हालांकि, निकट भविष्य में अमेरिका के रुख में बदलाव की संभावना नहीं है, लेकिन इस बात में भी संदेह नहीं कि भारत और अमेरिका, दोनों को चीन के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाना है। इसलिए भारत, अमेरिका और अन्य देशों के साथ ऐसी भागीदारी करेगा, जिससे यह सुनिश्चित हो कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में किसी एक देश का प्रभुत्व न हो, लेकिन वह ऐसे किसी गठबंधन का हिस्सा भी नहीं बनेगा, जिसमें चीन शामिल न हो।
भारतीय अधिकारी कहते हैं कि ट्रंप ने पाकिस्तान से आतंकवाद को रोकने की बात कह कर भारत का समर्थन किया है, लेकिन अमेरिका इस्लामाबाद से भी बातचीत करेगा। तालिबान के साथ समझौते और अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के लिए पाकिस्तान का समर्थन महत्वपूर्ण है। ट्रंप अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध खत्म करने का श्रेय ले सकते हैं। अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण हो सकता है। यह भारत के लिए चिंता का विषय है। हालांकि अमेरिका, भारत को वहां विकास कार्यों में लगे रहने की सलाह दे रहा है। भारत की चिंता का एक अन्य विषय अमेरिका में दोनों पार्टियों के समर्थन को लेकर है। भारत को वर्षों से रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों का समर्थन मिलता रहा है। मोदी-ट्रंप की केमिस्ट्री देख विश्लेषक मानते हैं कि भारत को डेमोक्रेट नेतृत्व को समझाना होगा कि ट्रंप का भव्य स्वागत अमेरिकी राष्ट्रपति को दिया गया, न कि किसी व्यक्ति को। लेकिन अमेरिका का राजनीतिक माहौल राष्ट्रपति चुनाव नजदीक आने के साथ तीखा होता जाएगा। ऐसे में भारतीय राजनयिकों के लिए चुनौती और गंभीर होती जाएगी।
----------------
--------------------
धार्मिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार और विचारों की आजादी अमेरिकी संविधान के मूलभूत तत्व हैं। ये मुद्दे अमेरिका के आर्थिक हितों के लिए भी महत्व रखते हैं