अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में बेहद कड़े शब्दों में कहा कि जब तक भारत टैरिफ घटाने पर राजी नहीं होता, तब तक उसके साथ कोई व्यापार वार्ता नहीं की जाएगी। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपनी अमेरिका-समर्थक विदेश नीति का रुख बदलने पर मजबूर हो रही है। ट्रम्प के टैरिफ युद्ध से तमाम देश अपने व्यापार विकल्पों पर नए सिरे से सोचने पर मजबूर हो रहे हैं। 2020 की गर्मियों में पूर्वी लद्दाख की गलवन घाटी में सैन्य टकराव से भारत-चीन संबंधों में कड़वाहट के बाद अब दिख रही नरमी खासकर दोनों देशों के सामने मौजूद नई आर्थिक हकीकतों की वजह से है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने 8 अगस्त को इस खबर का स्वागत किया कि प्रधानमंत्री मोदी इस महीने के अंत में चीन में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।
भारत-रूस
उसी दिन मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के बीच फोन पर बात हुई। रूसी नेता ने राष्ट्रपति ट्रम्प से अपनी मुलाकात से पहले यूक्रेन के ताजा घटनाक्रम पर अपनी राय रखी। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत उनकी मेजबानी के लिए उत्सुक है। दोनों नेताओं ने भारत और रूस की ‘‘विशेष रणनीतिक साझेदारी’’ को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता भी दोहराई।
इस हफ्ते की शुरुआत में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल मॉस्को गए। उन्होंने रूस की शक्तिशाली सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगु के साथ बातचीत की। बाद में राष्ट्रपति पुतिन के साथ उनकी मुलाकात हुई। क्रेमलिन ने डोभाल की यात्रा के दौरान घोषणा की कि रूसी नेता भारत भी जाएंगे।
इस तरह नई दिल्ली चुपचाप अमेरिकी राष्ट्रपति को संकेत दे रही है कि वह उनकी इच्छा के मुताबिक अपने पारंपरिक सहयोगी को कुर्बान नहीं करने वाली। इसमें यह भी संदेश था कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। पूर्व भारतीय विदेश सचिव कंवल सिब्बल कहते हैं, ‘‘ट्रम्प अहंकार में मस्त हैं। उन्हें लगता है कि अमेरिका सभी देशों पर अपनी शर्तें थोपने के लिए पर्याप्त ताकतवर है।’’ वे यह भी कहते हैं, ‘‘वे बिना किसी फायदे के भारत-अमेरिका संबंधों को बिगाड़ रहे हैं। विदेश नीति व्यक्तिगत अहंकार का मामला नहीं हो सकती। क्या भारत के साथ संबंध सिर्फ 46 अरब डॉलर के हैं? मामला इतने भर का नहीं है। भारत के साथ सेवा क्षेत्र में अमेरिका को व्यापार में बढ़त है। उसकी रक्षा कंपनियां भारत में बाजार के अवसर खो देंगी। भारत को अमेरिका से एलएनजी खरीदने की जरूरत नहीं है। संभावित परमाणु सहयोग के दरवाजे बंद हो जाएंगे। अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति की गति धीमी पड़ जाएगी।’’ भारत और अमेरिका शीत युद्ध के दौरान अलग-अलग खेमे में थे लेकिन तकरीबन पिछले 25 वर्षों से दोनों देशों के रिश्तों में बड़ा बदलाव आया है। नई दिल्ली और वॉशिंगटन की सरकारों ने इन संबंधों को समृद्ध आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी में बदलने की दिशा में ठोस कदम उठाए गए। इसकी मुख्य वजह एशिया में चीन का उभार भी था। लेकिन अब यह सब कुछ फिर बदल गया है या थम-सा गया है।
ब्राजील और ब्रिक्स
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला द सिल्वा ने 7 अगस्त को मोदी को फोन किया। भारत और ब्राजील दोनों ही देशों पर ट्रम्प ने 50 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगाया है। रूसी तेल खरीदने पर भारत पर लगाया गया 25 प्रतिशत का जुर्माना इसी महीने के अंत में लागू होगा। ट्रम्प अपने करीबी दोस्त ब्राजील के दक्षिणपंथी पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के प्रति लूला सरकार के रवैए से भी नाराज हैं और उन पर निशाना साध रहे हैं। बोल्सोनारो ट्रम्प के पक्के समर्थक हैं और फिलहाल अमेरिका में शरण लिए हुए हैं।
दरअसल ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के शिखर संगठन ब्रिक्स शुरू से ट्रम्प के निशाने पर रहा है क्योंकि वे इस संगठन को अमेरिका विरोधी मानते हैं और उसकी मंशा अंतरराष्ट्रीय व्यापार की लेनदेन के लिए अमेरिकी डॉलर के बदले अलग तरह की मुद्रा बनाने की है। उन्होंने ब्रिक्स के सदस्य देशों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी भी दी है।
रॉयटर्स के मुताबिक, राष्ट्रपति लूला ने मोदी को फोन करने से पहले पत्रकारों से कहा कि वे ब्रिक्स नेताओं को ट्रम्प के टैरिफ पर सामूहिक चर्चा करने के लिए बुलाएंगे। लूला ने कहा, ‘‘मैं उनके साथ इस बारे में चर्चा करूंगा कि ऐसी स्थिति में हर देश क्या करे, हर देश पर उसके क्या असर पड़ेंगे, ताकि हम कोई फैसला ले सकें। यह याद रखना जरूरी है कि जी20 में ब्रिक्स के दस देश हैं।’’ मोदी के साथ बातचीत के बाद लूला के कार्यालय से जारी एक बयान में कहा गया, ‘‘दोनों नेताओं ने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य और एकतरफा टैरिफ लगाने पर चर्चा की। ब्राजील और भारत, आज तक, सबसे ज्यादा प्रभावित दो देश हैं।’’ ब्राजील के राष्ट्रपति कार्यालय के अनुसार, लूला और भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को सालाना 20 अरब डॉलर से ज्यादा तक बढ़ाने के लक्ष्य को दोहराया, जो पिछले साल लगभग 12 अरब डॉलर था।
लेकिन भारत का बयान इस तरह दो-टूक नहीं, बल्कि ज्यादा सतर्कता भरा था। बयान में सिर्फ इतना कहा गया, ‘‘प्रधानमंत्री ने पिछले महीने अपनी ब्राजील यात्रा को याद किया, जिसके दौरान दोनों नेताओं ने व्यापार, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, रक्षा, कृषि, स्वास्थ्य और लोगों के बीच संबंधों में सहयोग को मजबूत करने पर सहमति व्यक्त की। इन चर्चाओं के आधार पर, उन्होंने भारत-ब्राजील रणनीतिक साझेदारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की प्रतिबद्धता दोहराई। दोनों नेताओं ने आपसी हित के विभिन्न क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। दोनों नेता संपर्क में बने रहने पर राजी हुए।’’
भारत की रणनीति
भारत पर ट्रम्प के लगातार हमलों के विपरीत, मोदी सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ किसी भी तरह की बहस में न उलझने का फैसला किया है। इसके बजाय, विदेश मंत्रालय ने दो अलग-अलग बयानों में टैरिफ को ‘‘अनुचित, नाजायज और अतार्किक’’ बताया है। धीरे से यह भी कहा कि यूरोपीय और अमेरिका सहित दूसरे देश रूस से खरीदारी कर रहे हैं।
भारतीय अधिकारी व्यापार वार्ता के लिए अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के नई दिल्ली पहुंचने का इंतजार कर रहा है। हालांकि इस महीने के अंत में आने पर अभी असमंजस बना हुआ है। उधर, भारतीय अधिकारी यह गुणा-भाग कर रहे हैं कि वे किस टैरिफ में कहां बदलाव कर सकते हैं, ताकि देश की अर्थव्यवस्था को ज्यादा नुकसान पहुंचाए बिना अमेरिकी वस्तुओं का आयात हो सके। हालांकि, कृषि और डेयरी क्षेत्रों को खोलने पर बातचीत नहीं हो सकती है क्योंकि प्रधानमंत्री ने 7 अगस्त को खुद भारतीय किसानों को आश्वासन दिया है कि वे उन्हें निराश नहीं करेंगे और उनके लिए राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है। भारत ने संकेत दिया है कि वह रूसी तेल का आयात बंद नहीं करेगा। हालांकि खबर है कि तेल कंपनियों ने रूस से तेल खरीद घटा दी है। हर दूसरे देश की तरह, भारत भी नए बाजारों की तलाश में है और चीन के साथ संबंध सुधारने की मौजूदा कोशिशें भी काफी हद तक ट्रम्प के टैरिफ युद्ध के बाद आर्थिक चिंताओं के कारण हो रही हैं।
भारत अगले दौर की व्यापार वार्ता का इंतजार करेगा और उम्मीद करेगा कि जल्द ही कोई हल निकले। नई दिल्ली अगले हफ्ते या 15 अगस्त को डोनाल्ड ट्रम्प और व्लादिमीर पुतिन के बीच होने वाली बैठक को भी उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। अगर दोनों नेता यूक्रेन में युद्धविराम पर सहमति बना लेते हैं, तो स्वाभाविक रूप से रूसी खरीद पर अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाए जाएंगे, ऐसी आशा की जा सकती है। ऐसे में 25 प्रतिशत टैरिफ पर समझौते के लिए बातचीत दोनों पक्षों के लिए काफी आसान हो जाएगी, जो सबके लिए अच्छा होगा।
‘‘मैं ब्रिक्स नेताओं के साथ चर्चा करूंगा कि ऐसे में हर देश क्या करे, हर देश पर उसके क्या असर पड़ेंगे, ताकि हम फैसला ले सकें’’
लूला द सिल्वा, राष्ट्रपति, ब्राजील
‘‘ब्रिक्स देश अगर अड़े रहते हैं तो उन पर टैरिफ के अतिरिक्त जुर्माना और प्रतिबंध भी झेलना पड़ सकता है। हमें यह बर्दाश्त नहीं’’
डोनाल्ड ट्रम्प, राष्ट्रपति, अमेरिका