यूक्रेनी लेखिका, ओक्साना ज़बुज़हको 1996 की अपनी क्लासिक पुस्तक फील्डवर्क इन यूक्रेनियन सेक्स में लिखती हैं, ‘‘यूक्रेन के लिए पसंद (आशय यूक्रेनी लोगों के संघर्ष से है) गैर-मौजूदगी और अस्तित्व के बीच है, जो आपको तबाह कर देता है।’’ फरवरी 2022 में शुरू हुए रूसी कब्जे के बाद से यूक्रेन में वृत्तचित्रों की बाढ़ सी आ गई हैं। इनमें कुछ सीधे, तो कुछ अपरोक्ष रूप से इस संघर्ष को दिखाते हैं। ये वृत्तचित्र यूक्रेन के संघर्ष के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं, जिनमें रूसी कब्जे के दौरान हुए नुकसान और यूक्रेनी लोगों के जीवन पर इसका प्रभाव शामिल है। ये ‘यूक्रेनी पसंद’ पर गहराई से और दुख के साथ इसका निरीक्षण करते हैं। सर्वोत्तम वृत्तचित्र कठोर तथ्यों और आंकड़ों से परे जाकर एक गहरी, मानसिक और भावनात्मक अनुभूति प्रदान करते हैं। ऐसी ही एक फिल्म ओक्साना कर्पोविच की है। इंटरसेप्टेड (2024) नाम की यह फिल्म यूक्रेन में तैनात रूसी सैनिकों की मानसिक स्थिति को उजागर कर उनके अंतर्द्वंद्वों को दर्शाती है। फिल्म दक्षिण और पूर्व की ओर जाने से पहले कीव के उत्तर की दशा का वर्णन करती है। जो कि स्पष्ट रूप से आक्रमण का मार्ग है। जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तब कारपोविच देश में ही अल जजीरा के लिए निर्माता के रूप में काम कर रही थीं। यूक्रेनी सुरक्षा एजेंसियों ने रूसी सैनिकों के फोन कॉल्स को इंटरसेप्ट किया था। इनमें उनके परिवार के सदस्यों को घर पर की गई कॉल्स भी शामिल थीं। जल्द ही, ये ऑडियो क्लिप्स सार्वजनिक कर दिए गए। कारपोविच ने 30 घंटे की इन्हीं ऑडियो क्लिपों को खंगाला और नामात्र के सदस्यों के साथ युद्धग्रस्त भूमि में वीरानी कैद करने निकल पड़ीं। यह फिल्म मार्च से नवंबर 2022 तक की अवधि में रिकॉर्ड की गई कॉल्स के साथ यूक्रेन के भौगोलिक परिदृश्य को मिलाकर बनाई गई है।
ध्वनि और छवि के बीच टकराव कभी डरावना तो कभी परेशान करने वाला माहौल पैदा करता है। जब रूसी सैनिकों के कॉल्स को यूक्रेनियों के दैनिक जीवन के सामान्य दृश्यों के साथ जोड़ा जाता है, तो गहरी वेदना उपजती है। ये आवाजें और दृश्य अलगाव और भावनात्मक संकट की भावना को दर्शाते हैं। ऐसा लगता है, जैसे अत्यधिक क्रूरता के प्रति स्वस्थ, सहानुभूतिपूर्ण प्रतिक्रिया को परखा जा रहा हो और हर दिन हिंसा की सहने की क्षमता को आंका जा रहा हो। फिल्म में हिंसा का कोई प्रत्यक्ष रूप नहीं है। बल्कि, एक भूतिया छाया वातावरण पर मंडराती है। यह छूट गए या छोड़े गए निशानों में स्पष्ट दिखता है। जैसे देश के हर हिस्से में हुई तबाही की अलग छाप दिखाई देती है। घर ऐसे लगते हैं, जैसे उन्हें या तो जल्दबाजी में खाली कर दिया गया हो या उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया गया हो।
युक्रेन पर बने वृत्तचित्र का दृश्य
टैप किए गए फोन कॉल्स में, जो बात विशेष रूप से ध्यान में आती है वह है रूसी सैनिकों की बातचीत में ड्यूटी के दौरान किए जा रहे अत्याचार के प्रति अधिकार की भावना। साथ ही उनकी मानसिक स्थिति के धीरे-धीरे टूटने के बीच का टकराव। सैनिक अपने परिवार की महिलाओं- मां और पत्नी से सुरक्षा और समर्थन की आशा करते हैं, ताकि कब्जे को न्यायपूर्ण ठहरा सकें। इनमें से किसी भी पुरुष की आवाज में उत्साह या कर्तव्य की भावना नहीं है। उन्होंने खुद को चीजों के साथ गहरे में झोंक दिया है ताकि वे अपना कर्तव्य जल्दी से पूरा कर घर वापस आ सकें। वे अपने मिशन की तुलना अंधेरे में खोज से करते हैं। लेकिन चूंकि वे इसके लिए प्रतिबद्ध हैं, तो अब पीछे मुड़ने का उनके पास कोई रास्ता नहीं है। पीछे हटने या भागने की कोशिश करने से वे अपने लोगों द्वारा मारे जा सकते हैं। साथ ही यह विश्वासघात भी होगा।
हालांकि, उन्हें यह स्पष्ट नहीं है कि वे क्या मुक्त कर रहे हैं। उन्होंने यूक्रेन पर कब्जा क्यों किया? वे आखिर किस ‘‘उद्देश्य’’ के लिए लड़ रहे हैं, यह पूछते हुए उन्हें निराशा और हार का अनुभव होता है। वे जानते हैं कि पुतिन के लिए लोगों की कोई कीमत नहीं है। एक सैनिक की पत्नी जब उसे निराशा और आत्मसमर्पण के खिलाफ समझाती है, तब वह कहता है, ‘‘यह सब जमीन जीतने के बारे में है।’’ अक्सर, घर पर अपने प्रियजनों की वापसी का इंतजार कर रहे लोगों की व्यावहारिक सोच विनाश के दृश्यों से कहीं अधिक गहराई से प्रभावित करती है। सैनिकों की पत्नियां और माएं उन्हें जितना संभव हो, उतनी चीजें लूट लेने के लिए प्रेरित करती हैं- मेकअप, स्नीकर्स, लैपटॉप ‘‘जो है, सब ले लो।’’
संरक्षणवाद के तहत हस्ताक्षरित, राज्य के प्रचार का तोपखाना नागरिकों की अमानवीयता के दिमाग में इतना कैसे घुस गया है? जब एक सैनिक की निराशा उजागर होती है, तो उनका साथी उन्हें यह याद दिलाने की कोशिश करता है कि उनके कार्य आवश्यक हैं, भले ही वे क्रूर हों। तब एक मां को अपने बच्चों के साथ घूमते समय गोली मारे जाने को भी उचित ठहराया जाता है। बिना किसी भावुकता के एक सैनिक की पत्नी कहती हैं, ‘‘मां भी दुश्मन की श्रेणी में आती है।’’ हालांकि, वृत्तचित्र, यूक्रेनियनों के लिए रूसियों के बीच करुणा दर्शाने में सतर्क और संशयपूर्ण है। यूक्रेनियों की तुलना में उनके पास कम सुख या सामग्री होने के कारण उनके मन में गहरी घृणा और ईर्ष्या है। रूसी सेना ने गरीबी से पीड़ित इलाकों से बड़े पैमाने पर सैनिकों की भर्ती की थी। उनकी शुरुआती जिम्मेदारी इसी गुस्से और कड़वाहट से निकली थी। लेकिन यह भावना पूरे युद्ध के दौरान टिकी नहीं रह सकती है।
कैमरे की आंख से युक्रेन की तबाही का मंजर
यदि इंटरसेप्टेड वृत्तचित्र यूक्रेनी परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट रूप से कहने में कहीं चूक जाता है, ओल्हा ज़ुर्बा का एक और वृत्त चित्र सॉन्ग्स ऑफ स्लो बर्निंग अर्थ (2024) इसे सीधे और स्पष्ट रूप से बताता है। बाद के आग्रहपूर्ण, अत्यावश्यक दृश्यों में से एक महत्वपूर्ण दृश्य आखिर में आता है। युद्ध भूमि से हजार किलोमीटर दूर, एक हाई स्कूल में, छात्रों से पूछा जाता है, ‘‘क्या हमें सपने देखने, खुशी महसूस करने का अधिकार है, जबकि यूक्रेन युद्ध में है?’’ प्र्शन भले ही चुभने वाला था, लेकिन उत्तर उतनी ही तेजी से आता है, ‘‘हां।’’
यूक्रेन के भविष्य को कल्पना करने का एक अवसर मिलता है। लेकिन, एक विस्तृत दृष्टिकोण के बजाय, यूक्रेनी लोग अपने भविष्य को एक सीमित समय सीमा में देखते हैं। यह भविष्य के दशकों की बात नहीं है, बल्कि केवल कुछ वर्षों का मूल्यांकन है। वे समय की संकुचित अवधारणा से परे नहीं देख सकते। फिर भी, भविष्य की कल्पना करने का भार केवल उन्हीं पर है। शांति, एक समृद्ध और स्वतंत्र देश जहाँ सीमाएँ नहीं हों, विकास और स्वतंत्रता—यही है जिसकी युवाओं को इच्छा है। ‘‘आप इसके लिए क्या करने को तैयार हैं?’’ शिक्षक पूछता है। इसके ठीक बाद, रूस में कहीं स्कूली बच्चों, युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण देते हुए दिखाया जाता है। यह विरोधाभास तुरंत प्रभाव डालता है।
फ्रंटलाइन से दूर जाते हुए, निकासी केंद्रों और पूरी क्षमता से भरी हुई ट्रेनों में जाते हुए फिल्म सॉन्ग्स ऑफ स्लो बर्निंग अर्थ कुछ सटीक और विचारशील पलों में अपनी गति कम कर लेती है। पूरी फिल्म में, हम अवरुद्ध मार्गों, अपने घरों और जड़ों के हो जाने पर विलाप करते परिवारों को, शहरों को तबाह किए जाने और बच्चों को मलबे के साथ खेलते हुए देखते हैं, भले ही भले ही हवाई हमले की चेतावनी हवा में गूंजती हो।