क्रिकेट ने समय के साथ केवल अपनी पहचान नहीं बदली, बल्कि खिलाड़ियों के किरदार और उनकी प्राथमिकताएं भी बदली हैं। साल दर साल भारत में स्टार कल्चर का दबदबा बढ़ा है। आज के खिलाड़ी स्टारडम की ऊंचाइयों को छू रहे हैं। विराट कोहली और रोहित शर्मा न केवल खेल के सितारे हैं, बल्कि अपने प्रशंसकों के लिए एक ब्रांड बन गए हैं। 'खेल बड़ा या खिलाड़ी' का सवाल पिछले छह महीनों में तेजी से चर्चा में आया है। भारतीय क्रिकेट में खिलाड़ियों का स्टारडम कोई नया नहीं है। विराट कोहली, महेंद्र सिंह धोनी, रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ी न केवल अपने खेल के लिए बल्कि अपनी लोकप्रियता और ब्रांड वैल्यू के लिए भी जाने जाते हैं। उनके सोशल मीडिया पर फॉलोअर करोड़ों में हैं। उनके विज्ञापन करार करोड़ों रुपए के होते हैं। एक तरफ यह स्टारडम खिलाड़ियों को विशेषाधिकार देता है, लेकिन दूसरी तरफ कई मौकों पर इसका नकारात्मक असर खेल पर भी पड़ता है। अमूमन ये स्टार खिलाड़ी घरेलू क्रिकेट से दूरी बना लेते हैं, उन्हें घरेलू स्पर्धाओं में खेलना अपनी हैसियत से कमतर लगने लगता है। और यह सवाल लगातार बड़ा होता जा रहा है। दरअसल, क्रिकेट फटाफट पैसा कमाने और अपनी हैसियत बढ़ाने का जरिया बनता जा रहा है।
मसलन, विराट और रोहित जैसे खिलाड़ी लगभग एक दशक के बाद रणजी ट्रॉफी में वापसी कर रहे हैं, वह भी बीसीसीआइ के भारी दबाव के कारण। इसका मतलब है कि उनकी प्राथमिकता अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और आइपीएल रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि तीनों फॉर्मेट खेलने वाले भारतीय खिलाड़ियों के पास समय भी नहीं होता, क्योंकि टीम इंडिया का क्रिकेट शेड्यूल काफी कसा हुआ होता है। इसके बावजूद यह कहा जा सकता है कि कई अवसरों पर घरेलू क्रिकेट की अनदेखी हुई है।
रणजी ट्रॉफी, सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी और विजय हजारे ट्रॉफी जैसे घरेलू टूर्नामेंट भारतीय क्रिकेट की रीढ़ माने जाते हैं। लेकिन इन टूर्नामेंट को वह सम्मान और महत्व नहीं मिल पाता, जो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट या आइपीएल को मिलता है। घरेलू क्रिकेट में युवा खिलाड़ी अपनी प्रतिभा दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन जब बड़े खिलाड़ी इन टूर्नामेंट में भाग नहीं लेते, तो उनकी प्रेरणा प्रभावित होती है। इसके अलावा, दर्शकों का ध्यान भी घरेलू क्रिकेट से हट जाता है। पहले दर्शकों का ध्यान घरेलू क्रिकेट पर भी होता था। लेकिन, आज आइपीएल और अंतरराष्ट्रीय मैचों ने घरेलू क्रिकेट को हाशिए पर डाल दिया है। पुराने दौर में मीडिया का दायरा सीमित था। आज, सोशल मीडिया खिलाड़ियों को हर समय चर्चा में रखता है। इससे उनकी निजी और पेशेवर जिंदगी पर दबाव बढ़ा है।
रोहित शर्मा
सुनील गावस्कर, कपिल देव, अनिल कुंबले और राहुल द्रविड़ जैसे खिलाड़ियों के लिए पुराना दौर अलग था। उस समय खिलाड़ी सीमित संसाधनों और तकनीक के बावजूद अपने प्रदर्शन में सुधार लाते थे। घरेलू क्रिकेट का महत्व उनके लिए उतना ही था, जितना अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का। तब खिलाड़ी नियमित रूप से रणजी ट्रॉफी, दिलीप ट्रॉफी और अन्य घरेलू टूर्नामेंट में खेलते थे। यह न केवल उनकी फिटनेस को बनाए रखता था, बल्कि नए खिलाड़ियों को उनके अनुभव से सीखने का मौका भी देता था। उस समय क्रिकेट खिलाड़ियों की आर्थिक स्थिति आज की तरह मजबूत नहीं थी। खेल में पैसा कम था, इसलिए खिलाड़ियों का मुख्य फोकस अपने प्रदर्शन पर होता था, न कि ब्रांड एंबेसेडर बनने पर। पुरानी पीढ़ी के खिलाड़ी फिटनेस और खेल भावना पर ध्यान केंद्रित करते थे। लेकिन, यह भी सच है कि तब मैच कम और समय ज्यादा होता था। आज के दौर में विराट कोहली, रोहित शर्मा, हार्दिक पंड्या, शुभमन गिल और अन्य खिलाड़ी सिर्फ क्रिकेटर नहीं हैं, वे एक ब्रांड हैं। सोशल मीडिया और विज्ञापन के युग ने खिलाड़ियों को खेल के साथ-साथ मनोरंजन उद्योग का भी हिस्सा बना दिया है।
टी20 आज का खेल है और भारतीय टीम इस फॉर्मेट में चैंपियन है। लेकिन, टेस्ट में टीम इंडिया का हालिया प्रदर्शन कई सवाल खड़े करता है। भारतीय बल्लेबाजी न केवल तेज गति वाली पिचों पर फुस्स हुई है, बल्कि उसने घरेलू मैदानों पर भी दम तोड़ा है। न्यूजीलैंड से घरेलू मैदान में और ऑस्ट्रेलिया से उनकी सरजमीं पर हारने से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) भी सवालों के कठघरे में है। बीसीसीआइ ने हाल ही में यह तय करने के लिए कदम उठाए हैं कि वरिष्ठ खिलाड़ी रणजी ट्रॉफी जैसे घरेलू टूर्नामेंट में भाग लें। सीनियर खिलाड़ियों का रणजी ट्रॉफी में खेलना इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। बीसीसीआई के पास भारतीय क्रिकेट के भविष्य को सुरक्षित रखने की बड़ी जिम्मेदारी है। बीसीसीआई को घरेलू क्रिकेट को अधिक आकर्षक और प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। इसके लिए प्रायोजकों को लाना, मैचों का लाइव प्रसारण बढ़ाना, और खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं देना आवश्यक है।
भारतीय क्रिकेट का भविष्य युवा खिलाड़ियों पर निर्भर करता है। घरेलू क्रिकेट में प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को आइपीएल और राष्ट्रीय टीम में जगह देने के लिए एक पारदर्शी प्रणाली होनी चाहिए। बीसीसीआइ को स्टार खिलाड़ियों को घरेलू क्रिकेट में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इससे युवा खिलाड़ियों को अनुभव और प्रेरणा मिलेगी, और घरेलू क्रिकेट का स्तर भी बढ़ेगा। स्टारडम बुरा नहीं है, लेकिन उसका सही प्रबंधन भारतीय क्रिकेट के लिए महत्वपूर्ण है। खिलाड़ियों का स्टारडम भारतीय क्रिकेट के लिए फायदेमंद हो सकता है, बशर्ते उसे सही दिशा में इस्तेमाल किया जाए। जब विराट और रोहित जैसे खिलाड़ी रणजी ट्रॉफी में खेलते हैं, तो यह युवा खिलाड़ियों के लिए एक संदेश है कि घरेलू क्रिकेट का महत्व है। खिलाड़ी अपनी ब्रांड वैल्यू का उपयोग घरेलू क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने के लिए कर सकते हैं। अगर विराट या रोहित रणजी ट्रॉफी के प्रमोशन में हिस्सा लें, तो इससे इस टूर्नामेंट की लोकप्रियता में भी इजाफा होता है।
बहरहाल, भारतीय क्रिकेट का भविष्य घरेलू क्रिकेट और स्टारडम के संतुलन पर निर्भर करता है। बीसीसीआइ को यह आश्वस्त करना होगा कि घरेलू क्रिकेट को वह सम्मान और महत्व मिले, जिसका वह हकदार है। इसके अलावा, खिलाड़ियों को यह समझना होगा कि उनका स्टारडम क्रिकेट के कारण है, और खेल से बड़ा कोई नहीं हो सकता। घरेलू क्रिकेट में उनकी भागीदारी न केवल खेल को मजबूत करेगी बल्कि भारतीय क्रिकेट को एक नई ऊंचाई तक ले जाएगी। खिलाड़ी चाहे कितने भी बड़े स्टार बन जाएं, खेल हमेशा उनसे बड़ा रहेगा। खेल से बड़ा कोई नहीं हो सकता –न खिलाड़ी, न स्टारडम। अगर यह संतुलन सही तरीके से बना, तो भारतीय क्रिकेट का भविष्य न केवल उज्ज्वल होगा, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनेगा। लेकिन, इसके लिए पैसा कमाने की धुन छोड़नी होगी।