अब भोपाल का जहर पीथमपुर के हवाले है। आखिर पिछले 40 वर्ष से राजधानी भोपाल के यूनियन कार्बाइड संयंत्र में पड़े 337 मीट्रिक टन कचरे को पीथमपुर भेजा जा चुका है। यूनियन कार्बाइड का कचरा पीथमपुर में जलाने के विरोध में स्थानीय लोगों में रोष पैदा हो गया और भारी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। प्रदर्शनकारी पीथमपुर के रामकी एन्वायरो परिसर पहुंचे, जहां कचरे का निष्पादन किया जाना है। लोगों के विरोध को देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने आसपास 100 मीटर के दायरे में धारा 163 लागू कर दी। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि राजधानी से विषैला कचरा दूर करने के लिए उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है। मामला बढ़ता देख मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कचरा निपटान कार्रवाई पर फिलहाल रोक लगा दी है। अब कचरे पर फैसले के लिए सरकार ने हाइकोर्ट से छह हफ्ते का समय मांगा है।
यूनियन कार्बाइड का कचरा पीथमपुर पहुंचते ही विरोध-प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। पीथमपुर बचाओ समिति, पीथमपुर रक्षा मंच, कांग्रेस, राठौर समाज, क्षत्रिय समाज, सेन समाज, आदिवासी समाज, ऑल ट्रेड यूनियन समेत अन्य संगठनों ने धरना-प्रदर्शन किए। सांवरिया मंदिर, अकोलिया चौराहा, बरदरी चौराहा, छत्रछाया गेट, आजाद चौराहा, गुडलक चौराहा, एबी रोड और मनाल होटल के सामने प्रदर्शन किया गया और पीथमपुर में एक दिन बंद रखा गया। इस दौरान पुलिस ने कई जगह लाठीचार्ज किया। एक प्रदर्शन में दो लोगों ने खुद पर पेट्रोल डाल लिया, तभी किसी ने पीछे से आग लगा दी, जिससे दोनों लोग झुलस गए। दोनों को इंदौर के चोइथराम अस्पताल में भर्ती कराया गया है। प्रदर्शनकारी पीथमपुर के रामकी एन्वायरो परिसर, जहां कचरे का निष्पादन किया जाना है वहां भी पहुंचने लगे तो स्थानीय प्रशासन ने आसपास 100 मीटर के दायरे में धारा 163 लागू कर दी।
पीथमपुर बचाओ समिति की मोनिका सोलंकी का कहना है कि जिस तरह भोपाल की यूनियन कार्बाइड का कचरा पीथमपुर आया, वैसे ही यह जब तक भोपाल न चला जाए तब तक धरना जारी रहेगा। कांग्रेस का कहना है कि यूनियन कार्बाइड का कचरा पीथमपुर में जल्दबाजी में डम्प कर दिया गया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी का कहना है कि आनन-फानन में कचरे को यहां से वहां डम्प किया गया। पीथमपुर, इंदौर, धार, बेटमा में दहशत है। वे कहते हैं, ‘‘लोग सरकार को जगाने के लिए खुद को आग लगा रहे हैं। यह दुख का विषय है। इस कचरे का जब तक कोई तकनीकी और वैज्ञानिक आधार पर सत्यापन नहीं होता, तब तक इसे हर हाल में रोकना चाहिए।’’
पीथमपुर कचरा लाने का विरोध करते स्थानीय लोग
उधर पीथमपुर में प्रदर्शन और विरोध से निपटने के लिए भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं की ताकत को झोंक दिया है। पार्टी के कार्यकर्ता कचरा जलाए जाने को लेकर लोगों में भरोसा जगाने का काम कर रहे हैं। ये कार्यकर्ता संभागवार बैठकों के अलावा लोगों की नाराजगी दूर करने की कोशिश में जुटे हैं।
इस बीच जबलपुर हाइकोर्ट में इस पर सुनवाई हुई। हाइकोर्ट की डिवीजन बेंच के सामने सरकार ने कहा कि गलत जानकारी के कारण पीथमपुर में हालात बिगड़े और स्थिति खराब हुई। सरकार ने कोर्ट से अब छह हफ्ते का समय मांगा। इस पर चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिवीजन बेंच ने सरकार की मांग मान ली और अब अगली सुनवाई 18 फरवरी को होनी है।
राज्य की भाजपा सरकार का दावा है कि अदालती आदेशों के मद्देनजर सुरक्षा मापदंडों का खयाल रखकर ही कचरे को पीथमपुर ले जाया गया है। कचरे को खत्म करने की कार्रवाई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ ही सभी संबंधित टीमों की निगरानी में की जाएगी। अब सरकार का कहना है कि कचरे के निष्पादन को लेकर वह जनभावनाओं को माननीय न्यायालय के समक्ष रखेगी और उसी के आधार पर बाद में कोई फैसला करेगी।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि वे माननीय न्यायालय के सामने विषय को लाएंगे और न्यायालय के आदेश से ही किसी कार्रवाई पर आगे बढ़ेंगे। उनका कहना है कि भोपाल गैस हादसे के 40 वर्ष बीतने के बाद भोपाल में रखा लगभग 337 मीट्रिक टन कचरे का हानिकारक प्रभाव खत्म हो चुका है। उन्होंने बताया कि बचे हुए कचरे में 60 प्रतिशत से अधिक केवल स्थानीय मिट्टी, 40 प्रतिशत में 7-नेपथॉल, रिएक्टर रेसिड्यू और सेमी प्रोसेस्ड पेस्टीसाइड का अपशिष्ट है। इसमें मौजूद 7-नेपथॉल रेसीड्यू मूलतः मिथाइल आइसोसायनेट और कीटनाशकों के बनने की प्रक्रिया का सह-उत्पाद होता है। मीडिया से हुई चर्चा में उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों के मुताबिक इसका विषैला असर 25 साल में लगभग समाप्त हो जाता है।
कार्बाईड के कचरे को लेकर ट्रायल रन पहले भी हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल, 2014 में यूसीआइएल के 10 मीट्रिक टन कचरे का एक और ट्रायल रन केंद्र सरकार, पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय नई दिल्ली की निगरानी में टीएसडीएफ पीथमपुर में किए जाने के निर्देश दिए थे। अदालत ने इस ट्रायल रन की वीडियोग्राफी भी करने के निर्देश दिए थे। निर्देशानुसार अगस्त, 2015 में ट्रायल रन के बाद केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रायोगिक निपटान की समस्त रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की गई। रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ कि इस प्रकार के कचरे के निपटान से वातावरण को कोई नुकसान नही हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी रिपोर्ट के गहन परीक्षण के बाद ही यूसीआइएल के कचरे के निपटान की कार्रवाई को आगे बढ़ाने और उन्हें नष्ट करने का निर्देश जारी किया।
सरकार का कहना है कि कचरे के निपटान की प्रक्रिया का केंद्र सरकार की विभिन्न संस्थाओं जैसे- नीरी (नेशनल इन्वॉयरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट), नागपुर, एनजीआरआइ (नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीटयूट) हैदराबाद, आइआइसीटी (इंडीयन इंस्टीट्यूट ऑफ केमीकल टेक्नोलॉजी) तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा समय-समय पर गहन परीक्षण किया गया है।
उनके अध्ययन और सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत प्रतिवेदनों के आधार पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को मार्च, 2013 में दिये गये निर्देशानुसार केरल में कोच्चि स्थित हिंदुस्तान इनसेक्टिसाइड लिमिटेड के 10 टन यूनियन कार्बाइड के समान कचरे पर पीथमपुर स्थित टीएसडीएफ में ट्रायल रन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी में किया गया। सफल ट्रायल रन का प्रतिवेदन सर्वोच्च अदालत में प्रस्तुत किया गया।
मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव ने विस्तृत रूप से तीन बिंदुओं को आधार बनाकर अलग से जांच कराई। अधिकारियों का कहना है कि जांच के बिंदुओं में निम्न शामिल हैं- आसपास के गांवों में स्वास्थ्य संबंधी परीक्षण, फसल की उत्पादकता पर प्रभाव और क्षेत्रीय जल स्त्रोतों की गुणवत्ता का परीक्षण। तीनों बिंदुओं के परीक्षण के बाद सरकार ने पाया कि यूसीआइएल कचरे के निष्पादन से किसी भी प्रकार के नकारात्मक परिणाम परिलक्षित नहीं हुए।
यह पहला मौका नहीं था है जब यूनियन कार्बाइड के कचरे को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले कचरे को अंकलेश्वर (गुजरात), नागपुर (महाराष्ट्र) के अलावा जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में निस्तारित करने की योजना बनी पर हर बार स्थानीय विरोध के चलते यह विफल रही। इसका एक पहलू यह भी रहा कि 12 साल पहले जर्मनी की कंपनी जीआइजेड कचरे का निस्तारण भोपाल से 6 हजार किमी दूर जर्मनी में 25 करोड़ रुपए में करने जा रही थी जबकि अब इसी कचरे के निपटान पर केंद्र सरकार को 126 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं।
बहरहाल, 40 वर्ष बाद भी भोपाल के यूनियन कार्बाइड का कचरा भारी जोखिम बना हुआ है। हजारों हजार पीड़ित अब भी भोपाल गैस त्रासदी का दंश झेल रहे हैं।