मैं दिखता इनसान हूं पर हूं एक मशीन- फिल्म रोबोट का यह डायलॉग अब हकीकत के करीब है। कोविड-19 ने आपकी दुनिया में रोबोट की बड़े पैमाने पर एंट्री करा दी है। वह दिन अब दूर नहीं जब होटल की रिसेप्सनिस्ट, अस्पताल की नर्स, आपके घर की मेड, बिल्डिंग के सिक्योरिटी गार्ड की जगह रोबोट ले लेंगे। यही नहीं, आपको ऑनलाइन डिलीवरी भी ड्रोन से होने वाली है। चौंकिए मत, यह ऐसी दुनिया है जहां एक मशीन आपके सारे काम करेगी। “रोबोट वर्ल्ड” बड़ी तेजी से आपके चारों तरफ तैयार हो रहा है। भारत रोबोट के इस्तेमाल में सिंगापुर, थाइलैंड और कनाडा को पीछे छोड़ चुका है। सामान्य परिस्थितियों में जो मांग चार से पांच साल में आती, वह कोविड-19 की वजह से पिछले तीन से चार महीने में ही आ गई है। हालत यह है कि रोबोटिक्स सॉल्यूशन देने वाली कंपनियां मांग की तुलना में आपूर्ति नहीं कर पा रही हैं।
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स की रैंकिंग-2019 के अनुसार भारत दुनिया में रोबोट के इस्तेमाल में 11वें स्थान पर पहुंच चुका है। फेडरेशन के प्रेसिडेंट जुंजी सूडा के मुताबिक, “भारत में रोबोट का इस्तेमाल सालाना 39 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। खास बात यह है कि रोबोट के इस्तेमाल में जहां ऑटोमोटिव इंडस्ट्री की हिस्सेदारी 44 फीसदी पहुंच गई है, वहीं रबर, प्लास्टिक, मेटल, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी अन्य इंडस्ट्री में भी इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है।” फिक्की-नैसकॉम-ईवाय की रिपोर्ट ‘भारत में भविष्य की नौकरियां 2.0’ के अनुसार देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले क्षेत्रों में 2022 तक 5-20 फीसदी बिल्कुल नई तरह की नौकरियां होंगी। इनमें ऑटोमेशन का बोल-बाला होगा। मसलन ऑटोमोबाइल सेक्टर में मशीन लर्निंग आधारित साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट, आइटी सेक्टर में ऑर्टिफिशियल रिसर्च साइंटिस्ट, फाइनेंशियल सर्विसेज में रोबोट प्रोग्रामर, ब्लॉकचेन आर्किटेक्ट, रिटेल सेक्टर में डिजिटल इमेंजिंग रीडर जैसी नई नौकरियां आने वाली हैं।
कोरोना ने कैसे बदली दुनिया
कोविड-19 की वजह से अचानक लगे लॉकडाउन ने कंपनियों के सामने ऐसी चुनौती खड़ी कर दी जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी। उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि ऐसा भी समय आएगा कि वे तीन से चार महीने अपनी फैक्ट्रियां नहीं चला पाएंगी। इसे देखते हुए अब कंपनियों का जोर ऑटोमेशन पर है। उनका कहना है कि हम ऐसी व्यवस्था देख रहे हैं, जिसमें लॉकडाउन जैसी स्थिति में कम से कम नुकसान में काम कर सकें।
इंडिया रोबोटिक्स सॉल्यूशंस के संस्थापक एवं सीईओ सागर गुप्ता नौगरिया और सह-संस्थापक एवं सीएमओ प्रशांत पिल्लै के अनुसार, “मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में जो मांग हम अगले चार-पांच साल में उम्मीद कर रहे थे, वह इन तीन से चार महीने में आ गई। हर सेक्टर में मांग बढ़ रही है, खास बात यह है कि अब सर्विस सेक्टर में रोबोट का इस्तेमाल तेजी से बढ़ने वाला है। मसलन होटल, अस्पताल, रेस्तरां और ऑनलाइन कंपनियों की तरफ से काफी मांग आ गई है। कंपनियां सोशल डिस्टेंसिंग और कम से कम मानव संपर्क की जरूरत को देखते हुए प्रोडक्ट की मांग कर रही हैं। कंपनियों ने वोकेशनल ट्रेनिंग भी शुरू कर दी है।”
पिल्लै कहते हैं, “बदलाव कितनी तेजी से आ रहा है, इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि कंपनियां अब वेयरहाउस में उत्पादों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए भी ऑटोमेशन पर जोर दे रही हैं। यानी जहां इनसानों के बिना काम करना संभव है, वहां वे मशीन का इस्तेमाल कर रही हैं। ऐसा करने की एक बड़ी वजह यह है कि कंपनियों को इस बात का डर सताने लगा है कि अगर एक भी कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव हुआ तो तुरंत वेयरहाउस या ऑफिस को सील कर दिया जाएगा।” इसलिए कई कॉरपोरेट हाउस में अब कर्मचारियों का अटेंडेस सिस्टम भी बदलने वाला है। मसलन, वे ऐसे रोबोटिक्स सॉल्यूशंस मांग रहे हैं, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए कर्मचारियों का तापमान लेने, उनकी पहचान करने और उनका पुराना रिकॉर्ड रखने की व्यवस्था होगी। इसी तरह, पैकेजिंग का काम जो ज्यादातर मानव द्वारा किया जाता है, उसमें भी बड़े पैमाने पर कंपनियां ऐसी मशीनें मंगा रही हैं जो पैकेजिंग करेंगी। कारोबारियों ने सैनिटाइजर के स्टिकर लगाने और मॉस्क बनाने के लिए भी अब मशीन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
नौगरिया कहते हैं, “पिछले तीन-चार महीने में मांग दो से तीन गुना बढ़ गई है, लेकिन उसकी तुलना में आपूर्ति नहीं हो पा रही है। आयात नहीं हो पाना इसकी एक बड़ी वजह है। साथ ही दाम भी 25 फीसदी तक बढ़ गए हैं। इसलिए अब कंपनियां चाहती हैं कि उन्हें घरेलू स्तर पर ही सॉल्यूशन मिले। अगर सही नीतियां बनें और रोबोटिक्स इंडस्ट्री की जरूरतें पूरी होती हैं, तो भारत एक बड़ा निर्यातक भी बन सकता है।” पिल्लै के अनुसार कोरोना के दौर में ड्रोन ने सैनिटाइजिंग से लेकर लोगों के तापमान लेने में बेहतरीन काम किया है। उनकी कंपनी ने ड्रोन के जरिए दिल्ली के स्लम एरिया में सैनिटाइजेशन का काम किया है। ऐसा हेलमेट भी डिजाइन किया है, जिसके जरिए पांच मीटर की दूरी से एक साथ कई लोगों का तापमान लिया जा सकता है।
बढ़ती मांग को देखते हुए अब कंपनियां आदमी के आकार के रोबोट बना रही हैं जो होटल, एयरपोर्ट और ऑफिस में भी दिखने वाले हैं। ऐसे ही रोबोट बनाने वाले मिलाग्रो ह्यूमनटेक के चेयरमैन राजीव करवाल का कहना है, “पिछले तीन से चार महीने में कंपनी ने पूरे साल के बराबर काम कर लिया है। अगर आपूर्ति की समस्या नहीं आती तो कंपनी 1000 फीसदी की ग्रोथ हासिल कर लेती। उनका कहना है कि अस्पताल में मरीज से कम से कम संपर्क हो, इसके लिए मानव आकार वाले रोबोट काम आएंगे। इसी तरह एयरलाइंस टिकट चेकिंग के लिए, होटल में रिसेप्शन और दूसरी कस्टमर सर्विस के लिए, घर और ऑफिस में फ्लोर की सफाई के लिए, स्वीमिंग पूल और एयरकंडीशनिंग की सफाई के लिए भी रोबोट का इस्तेमाल शुरू हो गया है। करवाल के अनुसार उनके पास देश के प्रमुख होटल समूह आइटीसी, ओबरॉय और ताज होटल के साथ-साथ सोडेक्सो, सीबीआरआइ, रिलायंस जैसी कंपनियों से मांग आ रही है। इसके अलावा कंपनी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को भी सेवाएं दे रहे हैं। करवाल एक अहम बात और बताते हैं कि अब घरेलू स्तर पर भी काफी डिमांड आ रही है। मसलन, फ्लोर सफाई के लिए वरिष्ठ नागरिकों और कामकाजी कपल्स की ओर से रोबोट की काफी मांग आई है।
रोबोट की मांग देश के सभी क्षेत्रों से आ रही है। मसलन, करवाल कहते हैं, “कोविड के पहले 95 फीसदी मांग टॉप-5 शहरों (दिल्ली, मुंबई, चेन्नै, कोलकाता और बेंगलूरू) से थी, लेकिन अब इसका विस्तार 15 शहरों में हो गया है। इनमें पुणे, हैदराबाद, नागपुर, अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, पटना, लखनऊ, रांची, इंदौर, कोच्चि और तिरुवनंतपुरम जैसे शहर शामिल हैं। बढ़ती मांग को देखते हुए अब हम देश भर में चैनल पार्टनर (डीलर) बनाने की तैयारी कर रहे हैं। दिसंबर तक हम अपना नेटवर्क तैयार कर लेंगे।”
इसी तरह की मांग की बात प्रशांत पिल्लै भी करते हैं। उन्होंने बताया, “अहम बात यह है कि मांग मेट्रो शहरों के अलावा छोटे शहरों से भी आ रही है। कंपनियां नए-नए तरीके के सॉल्यूशंस पर जोर दे रही हैं। जैसे, लागत कम करने के लिए उनका फोकस सेंट्रलाइज्ड स्कैनिंग पर है। इसके लिए किसी बिल्डिंग या ऑफिस कॉम्पलेक्स के प्रवेश द्वार पर ही स्कैनिंग सिस्टम लगाया जाएगा। इससे लागत घटने के साथ जोखिम भी कम होगा। इसी तरह, कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों के छिड़काव के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है।” हाल ही में राज्य सरकारों ने टिड्डियों के सफाए के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल किया है।
मोटर इंश्योरेंस क्लेम में ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का इस्तेमाल एक और बेहतरीन उदाहरण है। इन्श्योरेंस कंपनियां इसके जरिए क्लेम प्रक्रिया को बहुत तेजी से निपटाने की कोशिश कर रही हैं। इसका इस्तेमाल कर इफको टोक्यो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने नई सुविधा शुरू की है। इसके तहत जब कोई गाड़ी डैमेज हो जाती है तो उसकी मरम्मत या रिप्लेेसमेंट पर कितना खर्च आएगा, इसका आकलन सर्वेयर और दूसरी टीम के जरिए किया जाता है। हमने नए सिस्टम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया है। इसमें ग्राहक को डैमेज वाले हिस्से की फोटो कंपनी के ऐप के जरिए खींच कर हमारे पास भेजनी होती है। फोटो के आधार पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए अब हम कुछ मिनटों में आकलन कर लेते हैं कि मरम्मत पर कितना खर्च आएगा। अब हम 30 मिनट के अंदर कस्टमर की मंजूरी के बाद खर्च की राशि उसके अकांउट में जमा कर देते हैं। पहले इस काम को करने में तीन से चार दिन लग जाते थे। इसका एक फायदा यह भी हुआ है कि अब कस्टमर को खर्च का आकलन करने के लिए गैरेज में गाड़ी ले जाने की भी जरूरत नहीं पड़ती। वह अपनी सुविधा के अनुसार गैरेज में ले जाकर गाड़ी ठीक करा सकता है। कंपनी अभी चार पहिया वाहनों के लिए 50 हजार रुपये और दोपहिया वाहनों के लिए 25 हजार रुपये तक का क्लेम एआइ की नई व्यवस्था के जरिए दे रही है। इसके जरिए ग्राहकों के साथ-साथ उनके लिए भी काम करना आसान हो गया है।
नौकरियों पर खतरा
ऐसा नहीं कि रोबोट की दुनिया जीवन को आसान ही करेगी। मशीनी दुनिया की एक कड़वी सच्चाई भी है। मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार एक रोबोट तीन लोगों का काम कर सकता है। यानी एक रोबोट लगने से तीन लोगों की नौकरी चली जाएगी। इसी के आधार पर रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2030 तक 4.4 करोड़ पुरुषों और 1.2 करोड़ महिलाओं की नौकरी चली जाएगी। बढ़ते खतरे को स्वीकारते हुए सागर कहते हैं, “लॉकडाउन की वजह से नौकरियों में औसतन 10-20 फीसदी कटौती हुई है। जो कंपनियां ऑटोमेशन कर रही हैं वहां इन नौकरियों के तुरंत आने की संभावना नहीं है। ऐसे में यह एक नई तरह की चुनौती भी है। लेकिन एक बात हमें और समझनी होगी कि भारत रोबोटिक्स क्षेत्र में बड़ा निर्यातक बन सकता है। ऐसे में कंपनियों को अति कुशल श्रमिकों की जरूरत होगी। अभी जिस तरह के श्रमिकों से काम चलता है, वैसे श्रमिक जरूरत पूरी नहीं कर पाएंगे। हमें भविष्य की जरूरतों को देखते हुए श्रमिकों को तैयार करना होगा।” जाहिर है, कोरोना वायरस ने भारत को समय से पहले रोबोट की दुनिया में पहुंचा दिया है। ऐसे में अब इस हकीकत से हम मुंह नहीं मोड़ सकते कि हमारे चारों तरफ रोबोट का संसार तैयार हो रहा है। अब यह सरकार और कंपनियों की जिम्मेदारी है कि वे इस चुनौती को अवसर में कैसे बदलती हैं। अगर वे ऐसा नहीं कर पाती हैं तो पहले से बढ़ती बेरोजगारी से परेशान युवा वर्ग के लिए रोजगार पाने की राह और मुश्किल हो जाएगी।