उत्तर प्रदेश में रायबरेली संसदीय सीट कांग्रेस का अकेला किला बचा है। 2022 का विधानसभा चुनाव करीब आते-आते इस किले पर फतह की लड़ाई तेज होने के आसार साफ दिखने लगे हैं। कांग्रेस की प्रतिष्ठा वाली इस संसदीय सीट की पांच विधानसभा सीटों में से दो पर भाजपा का कब्जा है जबकि एक सीट समाजवादी पार्टी के पास है। 2017 के चुनाव में कांग्रेस महज दो सीटें हासिल कर पाई थी। बछरावां और रायबरेली विधानसभा सीट पर कांग्रेस के विधायक चुने गए थे। रायबरेली की नुमाइंदगी अदिति सिंह करती हैं। अदिति सिंह को गांधी परिवार खासकर राहुल और प्रियंका का करीबी माना जाता था। पिछले साल उन्होंने पंजाब के नवांशहर से कांग्रेस विधायक अंगद सिंह से शादी की और कांग्रेस से सियासी दूरी बना ली। कांग्रेस की चिंता यही है कि अगर 2022 में वह रायबरेली की किलेबंदी नहीं कर पाई तो 2024 का रण उसके लिए कमजोर हो जाएगा।
कांग्रेस के इस गढ़ पर भाजपा की नजरें टिकी हैं। पार्टी ने 2014 से ही इस पर कब्जे के लिए संघर्ष तेज कर दिया था। 2014 में रायबरेली में जनसभा से परहेज करने वाले नरेंद्र मोदी ने 2019 में सोनिया गांधी के खिलाफ इस क्षेत्र में जनसभा की और प्रचार किया। कांग्रेस की पृष्ठभूमि से आए दिनेश प्रताप सिंह भाजपा के टिकट पर चुनाव तो नहीं जीत पाए लेकिन यहां पर पार्टी का वोट अनुपात 17 फीसदी से अधिक बढ़ गया। 2014 की लड़ाई में भाजपा को पहले ही 17 फीसदी वोटों की बढ़त मिल गई थी। यानी दो चुनावों के दौरान वोट प्रतिशत 34 फीसदी से अधिक बढ़ने के साथ ही भाजपा यहां कुल 38.36 फीसदी वोट पाकर दूसरे नंबर की पार्टी बन गई। 2014 में भाजपा उम्मीदवार रहे अजय अग्रवाल कहते हैं, “यहां के पुराने लोग गांधी परिवार को अपना मानते हैं। लेकिन नई पीढ़ी ये सवाल करती है कि लंबे समय तक प्रधानमंत्री के इस क्षेत्र का विकास क्यों नहीं हुआ? अमेठी की जनता की तरह रायबरेली के लोग भी मन बदल चुके हैं।” अग्रवाल दावा करते हैं कि यदि 2014 में मोदी ने रायबरेली में जनसभा की होती तो यहां भाजपा को आने से कोई रोक नहीं सकता था।
रायबरेली में भाजपा की बढ़ती यही ताकत कांग्रेस की बड़ी चिंता है। प्रदेश की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी ने जब यूपी में सक्रियता बढ़ाई तो उन्हें समझ में आने लगा कि रायबरेली को संभालना उनके लिए बहुत जरूरी है। इसीलिए प्रशिक्षण कार्यक्रम के बहाने 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों का आगाज करने के लिए कांग्रेस ने रायबरेली को चुना। भाजपा की पहुंच को देखते हुए महसूस किया जा रहा है कि कांग्रेस भी बूथ स्तर पर अपनी पहुंच बढ़ाना सुनिश्चित करे। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में पूरे प्रदेश के नवनियुक्त जिला संगठन पदाधिकारियों के साथ गहन मंत्रणा पर विशेष फोकस है। इस तरह का प्रशिक्षण कार्यक्रम पार्टी में नया है। इसके तहत तीन दिनों तक वरिष्ठ नेता संगठन के पदाधिकारियों के साथ सभी मसलों पर गहन विमर्श करते हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं, “प्रियंका के आने के बाद पार्टी में उत्साह है। नए उत्साह के साथ वरिष्ठ नेताओं के अनुभव को जोड़कर हम पार्टी को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि लोगों को मुद्दों, रणनीति और पार्टी के गौरवशाली इतिहास की जानकारी दी जाए।” रायबरेली के पूर्व जिला अध्यक्ष वीके शुक्ला ने कहा, “प्रदेश में प्रियंका की सक्रियता ने हमारी ताकत बढ़ा दी है।”
क्या 2024 में रायबरेली से लड़ेंगी प्रियंका
एक सवाल और तेजी से उभर रहा है कि क्या 2024 में प्रियंका रायबरेली से चुनावी मैदान में उतर सकती हैं? इस पर कांग्रेसी कार्यकर्ता अधिक कुछ कहने से बचते हैं। स्वास्थ्य के आधार पर सोनिया की चुनावी राजनीति से अवकाश की अटकलों को वे विरोधियों का दुष्प्रचार बताते हैं। उनका कहना है कि सोनिया पूरी तरह सक्षम हैं और आगे भी वही रायबरेली का नेतृत्व करती रहेंगी। रायबरेली के फिरोज गांधी कॉलेज प्रबंधन से जुड़े ओ. एन. भार्गव कहते हैं, “गांधी परिवार की सदस्य होने के नाते प्रियंका के प्रति यहां के लोगों का स्वाभाविक प्रेम है। वे यहां के लोगों के साथ सीधे संवाद करती हैं।” 90 की उम्र पार कर चुके भार्गव कहते हैं कि इंदिरा के समय हमारे घर पर ही कांग्रेस का चुनाव कार्यालय होता था। लेकिन अब वह सियासत से दूर रहते हैं। भार्गव के इशारे को समझा जा सकता है।
कांग्रेस के लिए अहमियत
प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी की सीट रही रायबरेली कांग्रेस के लिए बेहद अहम है क्योंकि गांधी परिवार अमेठी और रायबरेली को अपना घर मानता है। आजादी के बाद पहले दो चुनावों में फिरोज गांधी यहां से जीते। 1967, 1971 और 1980 का चुनाव इंदिरा ने जीता। इमरजेंसी के बाद 1977 में राज नारायण ने इंदिरा को हरा दिया। इसी नाराजगी की वजह से इंदिरा ने रायबरेली से 1980 का चुनाव जीतने के बाद इस्तीफा दे दिया और मेंडक (अब तेलंगाना में) सीट अपने पास रखी। 1980 में हुए उप चुनाव में गांधी परिवार के वफादार अरुण नेहरू जीते। कुछ अपवादों को छोड़कर यह सीट गांधी परिवार और वफादारों शीला कौल, अरुण नेहरू और सतीश शर्मा के पास रही। भाजपा के अशोक सिंह ने 1996 और 1998 का चुनाव जीता था। 2019 के चुनाव में अमेठी राहुल के हाथ से फिसल गई लेकिन सोनिया गांधी ने कठिन चुनौती के बावजूद करीब 56 फीसदी वोट के साथ जीत दर्ज की।
--------------------------
गंगा यात्रा के बहाने
गंगा केवल एक नदी नहीं है। यह जीवन रेखा भी है और अब सियासत का बहुत बड़ा मुद्दा भी। उत्तर प्रदेश में इस पवित्र नदी का बहुत बड़ा हिस्सा सियासत को नया रंग देता है। 2022 से पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ‘गंगा यात्रा’ के जरिए इस रंग को नई पहचान देने की पहल करने जा रहे हैं। इस यात्रा का मकसद तो निर्मल अविरल गंगा के लिए जागरूकता बढ़ाना है। लेकिन इस यात्रा के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। प्रदेश में लगभग सभी पार्टियां 2022 की चुनावी लड़ाई की भूमिका तैयार करने में जुट गई हैं। इसे भी भाजपा की इसी कोशिश से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि योगी सरकार इस यात्रा को गंगा सफाई अभियान को धार देने के साथ ही जन संवाद का मौका बता रही है।
27 जनवरी को प्रदेश के दो छोर से एक साथ इस यात्रा की शुरुआत होगी। मुख्यमंत्री योगी की मौजूदगी में बिजनौर के सबलगढ़ में गंगा आरती के साथ गंगा यात्रा की शुरुआत होगी। गंगा पूजन के साथ दो जनसभाओं का कार्यक्रम तय है। कार्यक्रम में शाम की गंगा आरती के साथ अलग-अलग विभाग गंगा के तट पर तरह-तरह के आयोजन करके अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने का प्रयास करेंगे। 27 जनवरी को पश्चिम उत्तर प्रदेश में योगी इसकी शुरुआत करेंगे तो पूरब में बलिया में इसी तरह के कार्यक्रम में प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल शामिल होंगी। पूरब से पश्चिम और पश्चिम से पूरब की ओर जारी रहने वाली इन यात्राओं में प्रदेश के मंत्रियों को भी अहम जिम्मेदारी दी गई है। ये मंत्री पांच दिन तक चलने वाली यात्रा के हर पड़ाव पर रात्रि विश्राम करेंगे। पश्चिम में सबलगढ के बाद अगले पड़ाव हस्तिनापुर, वशीघाट (नरौरा), फर्रुखाबाद में होंगे और आखिर में कानपुर के बिठूर में यात्रा संपन्न होगी। उधर, पूरब में बलिया से शुरू होने वाली यात्रा गाजीपुर, वाराणसी, प्रयागराज होते हुए कानपुर बैराज के पास मिलन के साथ संपन्न होगी।
2014 के चुनाव में मोदी ने ‘..मुझे मां गंगा ने बुलाया है’ कहकर गंगा से सियासत का रिश्ता जोड़ा था, तो 2019 के चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी ने भी ‘गंगा यात्रा’ के जरिए सियासी आस लगाई थी। यह बात और है कि गंगा यात्रा ने कांग्रेस को कुछ खास नहीं दिया। लेकिन उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे के 26 जिलों से होकर गुजरने वाली 1005 किलोमीटर लंबी यात्रा के प्रति सरकार का उत्साह बहुत कुछ कहता है।
----------------
----------
जुड़ने की कवायदः सोनिया और प्रियंका गांधी रायबरेली में लोगों से मुलाकात करती हुईं