बीस साल बाद ही सही, आखिरकार सरकार ने गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का आदेश जारी कर ही दिया। उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल की अवाम की भावनाओं का सम्मान करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बजट सत्र के दौरान सदन में ही इस आशय की घोषणा की थी। राज्यपाल की मंजूरी के बाद अब इस विषय में औपचारिक नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है। अब 10 साल तक प्रदेश की सत्ता पर काबिज रहने के बाद भी इस मुद्दे पर मौन साधने वाली कांग्रेस के सामने बड़ी लकीर खींचने की चुनौती है।
केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा दिया गया था। राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड की राजधानी एक अहम मुद्दा बन गया था। वजह यह रही कि भाजपा ने अलग राज्य तो बनाया लेकिन राजधानी के नाम पर देहरादून के साथ अस्थायी जोड़ दिया। राज्य के गठन के बाद बनी भाजपा की अंतरिम सरकार के मुखिया स्व. नित्यानंद स्वामी ने राजधानी पर्वतीय क्षेत्र गैरसैंण में ही रखने की लोगों की भावनाओं को समझा और जस्टिस दीक्षित की अध्यक्षता में एक सदस्यीय राजधानी चयन आयोग का गठन किया।
2002 में राज्य के पहले विधानसभा चुनाव हुए। उस वक्त भी राजधानी का मुद्दा चुनाव में छाया रहा। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की ओर से गैरसैंण में राजधानी बनाने की बात की गई, लेकिन राज्य में पहली निर्वाचित सरकार कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में बनी। तिवारी पांच साल तक मुख्यमंत्री रहे, लेकिन स्थायी राजधानी के मुद्दे पर कुछ नहीं किया। अलबत्ता दीक्षित आयोग का कार्यकाल पांच साल बढ़ाकर इस मुद्दे को जीवित रखा।
2007 के आम चुनाव में सूबे की सत्ता एक बार फिर भाजपा के हाथ आ गई। इस बार गैरसैंण में राजधानी की बात करने वाले क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल भी भाजपा के साथ सत्ता में भागीदार हो गई। सरकार के मुखिया बने बीसी खंडूड़ी ने दीक्षित आयोग पर अपनी रिपोर्ट जल्दी देने का दवाब बनाया तो 2009 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को दी। लेकिन इस रिपोर्ट में आयोग ने स्थायी राजधानी के लिए किसी स्थान की सिफारिश नहीं की। सरकार ने यह रिपोर्ट विधानसभा में पेश कर दी और यह आज तक सदन के पटल पर ही लंबित है। 2009 में डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बने। ढाई साल बाद एक बार फिर खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बना दिया गया, लेकिन गैरसैंण में राजधानी के मसले पर कोई फैसला नहीं हो सका। सत्ता में भागीदार उक्रांद ने भी गैरसैंण को लेकर सरकार पर कोई दवाब नहीं बनाया।
2012 में आम चुनाव के बाद सत्ता एक बार फिर कांग्रेस के हाथ में आ गई। उस समय मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में राजधानी का कोई एलान तो नहीं किया, लेकिन इस दिशा में पहली बार कोई ठोस काम शुरू करवाया। वहां कैबिनेट बैठक की और विधानसभा समेत अन्य भवनों का निर्माण तेजी से शुरू करवा दिया। इसके बाद मुख्यमंत्री बने हरीश रावत ने भी गैरसैंण में निर्माण जारी रखा पर राजधानी के मसले पर कोई एलान करने से परहेज किया। गैरसैंण में विधानसभा के सत्र भी आहूत किए गए। एक विशेष सत्र को संबोधित करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी की बात कही थी। फिर भी हरीश सरकार इस बारे में किसी तरह का ऐलान नहीं कर सकी।
2017 में एक बार फिर सत्ता भाजपा के हाथ लगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत राजधानी को लेकर किसी भी तरह का एलान करने से तीन साल तक बचते रहे, लेकिन मार्च में गैरसैंण (भराणीसैंण) में विधानसभा सत्र के दौरान उन्होंने अचानक ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा कर सबको चौंका दिया। पहले लग रहा था कि कहीं ये घोषणा ही न रह जाए। लेकिन अंततः राज्यपाल की सहमति के बाद मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी के विषय में आदेश जारी कर दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने इस फैसले से जहां अवाम की भावनाओं का सम्मान किया है, वहीं पहाड़ के लोगों की तमाम समस्याओं का अब तेजी से हल निकल सकेगा। गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा के बाद हरीश रावत ने सार्वजनिक रूप से कहा कि इस बात का ऐलान न कर पाने का उन्हें हमेशा मलाल रहेगा। अब कांग्रेस के सामने इस मामले में सियासत करने को महज स्थायी राजधानी की बात ही बची है। कांग्रेस अगर इस मामले में भाजपा से किसी तरह की सियासी बढ़त लेना चाहेगी तो उसे बड़ी लकीर खींचनी होगी। नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा ह्रदयेश ने कहा कि गैरसैंण में विकास कार्यों के साथ ही विधान भवन और अन्य भवनों का निर्माण कांग्रेस की सरकार ने 2012 में ही शुरू कर दिया था। अब त्रिवेंद्र सरकार को यह भी साफ कर देना चाहिए कि उत्तराखंड की स्थायी राजधानी कहां है।