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आवरण कथा/एआइ और चुनाव/नजरिया/मेजर विनीत कुमार: चुनावों में एआइ के इस्तेमाल के फायदे भी

एआइ से कामकाज की दक्षता बढ़ सकती है और प्रशासनिक खर्च कम हो सकता है
चुनाव में होने लगा है एआइ का इस्तेमाल

हर टेक्‍नोलॉजी दोधारी तलवार होती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का गलत इस्‍तेमाल किया जा रहा है, लेकिन उसका इस्तेमाल सही कार्यों में भी हो सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब भारत में चुनावी प्रक्रियाओं के परिदृश्य को बदल रहा है। यह उम्‍मीद और खतरनाक संभावनाओं का स्पेक्ट्रम पेश करता है। मसलन, चुनावों के दौरान डीपफेक से भ्रामक वीडियो बनाए जा सकते हैं जिससे गलत सूचनाओं का प्रसार हो सकता है। डीपफेक वीडियो पूरी तरह से वास्तविक लगते हैं और आम लोग आसानी से उसका सच नहीं पकड़ सकते। एआइ से मनगढ़ंत कंटेंट लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की शुचिता के लिए कठिन चुनौती है। ऐसे कंटेंट लोगों की राय को प्रभावित कर सकते हैं, राजनीतिक विमर्श को विकृत कर सकते हैं और चुनावी प्रणाली में विश्वास को घटा सकते हैं।

ऐसे में गलत सूचना के प्रसार का मुकाबला करने और लोकतांत्रिक ताने-बाने की सुरक्षा के लिए नई रणनीतियों की जरूरत है। जिस टेक्नोलॉजी का इस्‍तेमाल करके डीपफेक बनाया जा रहा है उसी टेक्नोलॉजी से उसे पकड़ा भी जा सकता है। इससे चुनावों के दौरान तेजी से फैलने वाला डीपफेक सिर्फ रुकेगा नहीं, बल्कि उसके इस्तेमाल से भारत जैसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव को और सुदृण किया जा सकता है। सवाल उठता है कि कैसे? एआइ डेटा एनालिटिक्स से चुनावी अधिकारी मतदाता व्यवहार और जनसंख्‍या संबंधी रुझानों के बारे में गहन जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इससे सटीक नीति निर्माण में फायदा मिलेगा। इसके अलावा एआइ ऑपरेटेड प्लेटफॉर्म लोगों के जुड़ाव और वोटर लिटरेसी को बढ़ावा देने में सहायक हो सकते हैं। सोशल मीडिया एनालिटिक्स का इस्‍तेमाल करके उम्मीदवार और पार्टियां अपने अभियानों को विशिष्ट मतदाता क्षेत्रों को ध्यान में रखकर तैयार कर सकती हैं। इससे उनकी पहुंच बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी। छोटी-छोटी पार्टियों को भी इससे फायदा मिलेगा जिनके पास बड़ी पार्टियों जितने पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।

एआइ संचालित फोरकास्ट मॉडलिंग वोटर टर्नआउट का भी पूर्वानुमान लगा सकता है। एआइ से परिचालन दक्षता बढ़ सकती है और प्रशासनिक खर्च कम हो सकता है। ऐसे कई सेंट‌िमेंट एनालिसिस टूल हैं जिनसे सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जाने वाले भ्रामक पोस्ट की निगरानी की जा सकती है। इन्हीं का इस्तेमाल करके डीपफेक के प्रसार को भी रोका जा सकता है, हालांकि यह इतना आसान नहीं है लेकिन देश में टैलेंट की भरमार है जो इन कार्यों को अंजाम दे सकते हैं। टेक्नोलॉजी बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन सिस्टम मतदाताओं की पहचान की पुष्टि कर सकता है जिससे एकाधिक मतदान को रोककर चुनावी प्रक्रिया की सुरक्षा और शुचिता को बढ़ाया जा सकता है। मतदाता पंजीकरण डेटाबेस और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम के साथ बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन को एकीकृत करके एआइ चुनावी धांधली को कम कर सकता है।

चुनावों के दौरान साइबर अटैक का खतरा सबसे ज्यादा होता है, एआइ इसमें काफी मददगार हो सकता है। साइबर सिक्योरिटी से जुड़े जोखिमों को समझकर और उन पर काबू पाकर चुनावी ढांचे के लचीलापन और विश्वसनीयता को बढ़ाया जा सकता है। यह तथ्य है कि एआइ के साथ कई चुनौतियां हैं जिन पर हमें ध्यान देना चाहिए लेकिन इसकी संभावनाओं को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भारत में चुनावी प्रक्रियाओं की दक्षता, पारदर्शिता और समावेश को बढ़ाने के लिए अभूतपूर्व अवसर सामने लाता है। ऐसे में इसको लेकर सक्रिय और सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। ऐसे सवाल बेबुनियाद हैं कि चुनावों के दौरान एआइ के इस्तेमाल को रोक दिया जाए। यह ओपन-एंड सोर्स है जिस पर किसी का आधिपत्य नहीं है। इसका इस्तेमाल सही तरीके से कैसे किया जाए, यही सबसे बड़ी मांग होनी चाहिए। 

(लेखक साइबरपीस के अध्यक्ष और संस्थापक हैं)

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