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नजरिया/पाकिस्तान: फौज जीतेगी या इमरान

चरमराती अर्थव्यवस्था के बीच इमरान खान की फौज को चुनौती कहीं मुल्क को फिर तानाशाही की ओर न ले जाए
आशंका है इमरान को फांसी या उम्रकैद हो सकती है

पाकिस्तान के हालात हर रोज बदल रहे हैं और इसका असर दुनिया के दूसरे हिस्सों में रह रहे पाकिस्तानियों पर भी दिख रहा है। ब्रिटेन की राजधानी लंदन की सड़कों पर 9 मई को इमरान खान की गिरफ्तारी के खिलाफ नारे लगाए जा रहे थे। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर के बाहर सैकड़ों की तादाद में मौजूद पाकिस्तानी मूल के लोगों ने ‘गो नवाज गो’ के नारों के साथ पाकिस्तानी झंडे लहराए और नवाज के बेटे के दफ्तर की दीवारों पर पेंट पोत दिया। नवाज शरीफ लंदन में निर्वासित जीवन जी रहे हैं लेकिन उनकी पार्टी पाकिस्तान नेशनल मुस्लिम लीग (पीएनएमएल) उस गठजोड़ की अहम हिस्सेदार है, जिसकी फिलवक्त पाकिस्तान में सरकार है। साथ ही उनके भाई शहबाज शरीफ पाकिस्तान में वजीरे आजम हैं। हालांकि इस मिलीजुली सरकार में बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और कुछ दूसरी पार्टियां भी शामिल हैं। हाल में इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद भड़की हिंसा न सिर्फ लगभग पूरे पाकिस्तान में फैल गई, बल्कि ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा समेत दुनिया के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन भी हुए।

दरअसल पिछले साल पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) की अगुआई में वजीरे आजम इमरान खान की सरकार को नेशनल असेंबली में अहमियत रखने वाली सभी विपक्षी पार्टियों ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर गिरा दिया था। उसके बाद शहबाज शरीफ की अगुआई में मिलीजुली सरकार बनी। इमरान इस अपमान को पचा नहीं पाए और उन्होंने फौजी हुक्मरानों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। वे लगातार आरोप लगाते आ रहे हैं कि विदेशी साजिश के तहत फौज की मिलीभगत से उनसे गद्दी छीन ली गई। हालांकि वे फौज की मदद से ही चुनाव जीत कर आए थे और तब विपक्ष ने भारी चुनावी धांधली का आरोप लगाया था। लेकिन शायद तब के जनरल कियानी की जगह अपने खास जनरल को फौज प्रमुख बनाने की बात पर फौजी हुक्मरानों के साथ उनकी ठन गई तो रिश्ते छत्तीस हो गए।

इस दौरान पाकिस्तान की माली हालत भी लगातार बिगड़ती गई। इमरान सरकार की उच्च वर्ग समर्थित नीतियों की बनिस्बत मुल्क पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा था और महंगाई लोगों का जीना हराम कर रही थी, जो अभी भी संभल नहीं पाई है। हालात लगातार मुश्किल होते जा रहे हैं। खैर, फौज के खफा होने के बाद तमाम विपक्षी पार्टियों को इमरान को सत्ता से बदखल करने का मौका मिल गया।

इमरान ने इसके खिलाफ बड़ा मोर्चा निकाला और देश भर में घूम कर मजहबी भावनाओं के सहारे अपने साथ हुई गैर-इंसाफी और फौज के खिलाफ लोगों को गोलबंद करने की कोशिश करते रहे। इसमें वे एक हद तक कामयाब भी हुए। कई उपचुनावों और प्रांतीय चुनावों में उनकी पार्टी पीटीआइ की जीत हुई। शायद इसका असर यह हुआ कि सरकार ने उनके खिलाफ मुकदमों को आगे बढ़ा दिया। इसमें सबसे खास तोशखाना मामला है, जिसमें बतौर वजीरे आजम मिले तोहफों को सरकारी खजाने से औने-पौने दाम पर खरीद कर भारी मुनाफे में बेचना शामिल है। पाकिस्तान में यह भ्रष्टाचार का सबसे गंभीर मामला माना जाता है। ऐसे मामले नवाज शरीफ जैसे कई नेताओं पर भी चले हैं।

हाल में एक निचली अदालत के समन पर लगातार गैर-हाजिर रहने पर इमरान को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद भारी आंदोलन भड़क उठा। पिछले एक महीने से जो पाकिस्तान में हो रहा है उसमें कभी इमरान तो कभी फौज का पलड़ा भारी दिखता है। इस दौरान पाकिस्तान का आर्थिक संकट और गंभीर होता जा रहा है। जिस तरीके से अदालत में पेश होने के लिए जाते वक्त इमरान को गिरफ्तार किया गया, उनको घसीटा गया और उनके समर्थकों को पीटा गया, उसके नजारे परेशान करने वाले थे।

आमने-सामनेः कराची में पुलिस और इमरान समर्थकों में झड़प

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हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इमरान की गिरफ्तारी को अवैध करार दिया और आगे किसी भी मामले में गिरफ्तार न करने का आदेश भी दिया। लेकिन मौजूदा शहबाज सरकार की सियासी वजहों से तनाव कम करने में दिलचस्पी नहीं दिखती है। शायद सरकार चुनाव को जितना संभव हो टालना चाहती है और इमरान की पार्टी पीटीआइ की लोकप्रियता का ग्राफ कुछ नीचे लाना चाहती है। फौजी हुक्मरानों की नाराजगी का अलम यह है कि आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने इमरान की गिरफ्तारी के बाद भड़की हिंसा को ब्लैक डे घोषित किया और उपद्रवियों पर आर्मी एक्ट के तहत कार्रवाई करने की बात की।

एक महीने में हालात इतने करवट ले चुके हैं कि 70 साल के इमरान खान के लिए इससे पार पाना आसान नहीं दिखता। जब-जब पाकिस्तान में सत्ता में उलटफेर होता है वहां के सत्ताधीश लंदन का रुख करते हैं। बेनजीर भुट्टो, नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ का उदाहरण सामने है। शायद इमरान खान के पास भी पाकिस्तान से भागकर ब्रिटेन में पनाह लेने के अलावा दूसरा कोई रास्ता न बचे। ऐसा सोचने की ठोस वजहें भी हैं।

खबर है कि शहबाज शरीफ ने यह ऑफर इमरान खान को दिया है और सुप्रीम कोर्ट से रिहाई के बाद उनके घर को घेर लिया गया है। आशंका यह भी जताई जा रही है कि सरकार और आर्मी चीफ इस कोशिश में जुटे हैं कि इमरान का मामला किसी तरह से आर्मी कोर्ट के दायरे में लाया जाए। अगर ऐसा हुआ तो इमरान के लिए खतरनाक हो सकता है। उन हालात में इमरान को उम्रकैद या फांसी की सजा हो सकती है। पाकिस्तान का इतिहास ऐसी कारगुजारियों का गवाह भी रहा है जब ऐसे ही हालात में जनरल जिया-उल-हक ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री रहे जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटका दिया था।

हालांकि इस बार परिस्थितियां कुछ अलहदा हैं। इमरान की गिरफ्तारी के बाद मुल्क में जो हुआ ऐसे में न तो आर्मी चीफ के लिए यह फैसला ले पाना आसान होगा और न ही इमरान के लिए देश छोड़ भाग पाना। आर्मी चीफ वही जनरल मुनीर हैं जो इमरान के कार्यकाल में आइएसआइ के चीफ हुआ करते थे। लेकिन इमरान से उनकी खटपट शुरू हो गई थी। कहते हैं, मुनीर एक रोज एक फाइल लेकर इमरान के पास पहुंचे जिसमें उनकी बीवी, बुशरा पर भ्रष्टाचार के आरोप थे। उसके कुछ ही समय बाद इमरान ने उनको आइएसआइ चीफ के पद से हटवा दिया था। अब शहबाज शरीफ सरकार ने मुनीर को फौज प्रमुख बनवा दिया।

इस वक्त इमरान के खिलाफ करीब 121 केस दर्ज हैं। इनमें देशद्रोह, ईशनिंदा, हिंसा और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले केस भी शामिल हैं। ये मामले इमरान को लंबे समय तक जेल में रखने के लिए काफी हैं। इमरान इससे वाकिफ भी हैं इसलिए बार-बार दोहरा रहे हैं कि मौजूदा सरकार फौज और अवाम को आमने-सामने कर रही है। पाकिस्तान में एक बार ऐसा भी हो चुका है जब 2008 में जनता के आंदोलन और सुप्रीम कोर्ट की सख्ती ने फौजी शासक परवेज मुशर्रफ की सत्ता उखाड़ फेंकी थी। अब दौर काफी आगे आ चुका है, तकनीक का जमाना है, मीडिया एक हद तक आजाद है और देश विदेश में रह रहे पाकिस्तानी लोग फौज को शायद उतना निरंकुश न होने दें जितना वह पहले होती रही हैं। ऐसे में जनरल मुनीर और शहबाज शरीफ यह तो जरूर चाहेंगे कि इमरान इतने अयोग्य घोषित हो जाएं कि वे सत्ता की राजनीति ही न कर पाएं।

इमरान की पार्टी को कमजोर करने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। फौज के दबाव और डर से इमरान खान के करीबी और पूर्व फेडरल मंत्री आमिर महमूद कियानी, जलवायु परिवर्तन पर इमरान के सलाहकार रहे मलिक अमीन असलम, केपी मोहम्मद इकबाल वजीर, महमूद मौलवी, संजय सागवानी और करीम गबोल जैसे पार्टी के कई महत्वपूर्ण नेताओं ने पीटीआइ का दामन छोड़ दिया है।

पाकिस्तान में फौज को यह मंजूर नहीं रहा है कि कोई राजनीतिक दल इतना ताकतवर हो जाए कि उसके इशारे पर फौज को फैसले लेने पड़े। जब-जब ऐसा हुआ है, तब-तब पाकिस्ताने बड़े नेताओं को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी है। जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ जैसे नेताओं का हश्र देखा जा चुका है।

बहरहाल, पाकिस्तान के पचहत्तर साल में चालीस साल से ज्यादा समय तक फौजी तानाशाहों के हाथ में सत्ता की बागडोर रही है और लोकतांत्रिक तरीक से चुनी गई एक भी सरकार अपना कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर पाई है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि  इमरान प्रकरण क्या गुल खिलाता है।

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