Advertisement

कमाई का कौशल बढ़ा तो निवेश भी जरूरी

कामकाजी हों या महिला खिलाड़ी, ज्यादातर वित्तीय फैसलों के लिए पुरुषों पर ही निर्भर क्यों
कामकाजी महिलाओं में से पांच फीसदी से भी कम निवेश करती हैं।

अमूमन आकांक्षाएं और अरमान सटीक प्रशिक्षण और कठोर अनुशासन से साकार होते हैं। अब हिमा दास को ही देखिए। उन्होंने इसी साल 12 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय ट्रैक इवेंट में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनकर इतिहास रच दिया। फिनलैंड के टेम्पेरे में अंडर-20 चैंपियनशिप के पहले हिस्से में हौले-हौले दौड़ी दास ने आखिरी के 100 मीटर में फर्राटा भरते हुए तीन प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़ दिया और गोल्ड की हकदार बन गईं। सात अप्रैल 2014 को हिना सिद्धू दुनिया की नबंर वन शूटर बनीं। वे यह मुकाम हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला कहलाईं। अमेरिका के अनहाइम में पिछले साल आयोजित वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में साइखोम मीराबाई चानू गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय वेटलिफ्टर बनी थीं। भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में देश को अपने दम पर जीत का स्वाद चखा चुकी हैं। उनकी उपलब्धियों को महज आंकड़ों या तारीख के चश्मे से नहीं देखा जा सकता है। ये भारतीय महिलाओं की उपलब्धियों के जीते-जागते सबूत हैं। चाहे खेल का मैदान हो या संस्कृति या फिर बिजनेस का क्षेत्र, भारतीय महिलाएं हर रोज नई लकीर खींच रही हैं।

लेकिन, जब बात वित्तीय फैसले लेने की आती है तो अमूमन ये महिलाएं अपने साथी या किसी ऐसे पुरुष के भरोसे नजर आती हैं जो उनका जानकार हो और जिन पर वे यकीन कर पाती हैं। रानी रामपाल कहती हैं, “मैं पिछड़े इलाके से आती हूं। अब मेरे पास कुछ पैसे आ गए हैं तो मैं स्थानीय महिला खिलाड़ियों को साजो-समान मुहैया कराने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहती हूं।” सूझबूझ से पैसे का निवेश करने से न केवल रामपाल के लिए अपने सपनों को पूरा करना आसान होगा, बल्कि इससे अन्य हजारों लड़कियों के लिए भी उनकी मंजिल तक पहुंचने का रास्ता साफ होगा।

हिमा दास ऐसे संयुक्त परिवार से आती हैं जहां केवल दो लोग ही कमाने वाले हैं। उन्होंने बताया, “दो लोगों की कमाई पूरे परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं है।” इस तरह की स्थिति में ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार की आय बढ़ाने के तरीकों की तलाश करती हैं। नौकरी करना एक सामान्य रास्ता है। लेकिन, निवेश पारिवारिक आय बढ़ाने और गाढ़े वक्त में सहारा बनने का शानदार जरिया साबित हो सकता है। 

दुर्भाग्यवश, निवेश के विकल्पों को लेकर ज्यादातर महिलाएं उदासीन हैं या वे निवेश करने को इच्छुक नहीं दिखतीं। फाइनेंशियल प्लानिंग एप एलएक्सएमई की एमडी और फाउंडर प्रीति राठी गुप्ता ने बताया, “कामकाजी महिलाओं में से पांच फीसदी से भी कम अपनी कमाई में से निवेश करती हैं और एक फीसदी से भी कम इसको लेकर सक्रिय नजर आती हैं।”

आर्थिक आजादी और इससे जुड़े फैसले लेना महिला सशक्तिकरण का अगला चरण है। एडलविस ग्रुप की चीफ मार्केटिंग ऑफिसर शबनम पंजवानी ने बताया, “बड़ी महिला खिलाड़ियों को इनाम में मिले पैसों का निवेश करने में हम मदद कर रहे हैं ताकि वे सही मायनों में वित्तीय आजादी पा सकें।” उन्होंने बताया कि दरअसल यह इस उद्योग की जिम्मेदारी है कि वह न सिर्फ उन्हें सही जानकारी दे, बल्कि महिला निवेशकों को वह रास्ता दिखाए, जिससे वे अपने निवेश का उचित मूल्य पा सकें।

बजट से करें शुरुआत

अरसे से घर के वित्तीय मामले महिलाएं ही संभालती रही हैं। सदियों से समाज का ढांचा ऐसा बना हुआ है कि पुरुष कमा कर “पैसा” घर लाएंगे और महिलाएं घर चलाएंगी। चाहे बुनियादी जरूरतों या ठाट-बाट पर खर्च हो या पारिवारिक छुट्टियों के लिए पैसा बचाना या फिर घर के खर्चों में कटौती कर बचत करना- सब कुछ घर की महिला के ही जिम्मे होता है। इसलिए, महिलाएं पैसों का प्रबंधन करने के लिए शुरुआती कदम उठाने में पूरी तरह से सक्षम हैं। प्राइवेट क्लाइंट ग्रुप डब्ल्यूजीसी वेल्थ की मैनेजिंग पाटर्नर जोहरा हजियाणी ने बताया, “नियमित आय वाली महिलाएं माेटे तौर पर

50-30-20 के फॉर्मूले पर चल सकती हैं। मसलन, परिवार की बुनियादी जरूरतों भोजन, किराए, किस्त चुकाने वगैरह पर आय की 50 फीसदी रकम खर्च करना चाहिए। करीब 30 फीसदी आय अपनी देखभाल और कमाई का 20 फीसदी हिस्सा निवेश करना चाहिए। निवेश अपने लक्ष्यों, समय और जोखिम उठाने की क्षमता को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।”

बुनियादी बातें

निवेश के लिए विशेषज्ञ होना जरूरी नहीं है। लेकिन, महिलाओं के लिए यह जरूरी है कि वे पैसे का मोल समझें, ताकि वे अपने लक्ष्य की दिशा में उसे खर्च कर सकें और यह जान सकें कि उससे क्या हासिल हो रहा है। पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात यह समझना है कि पैसा कमाना वित्तीय आजादी की दिशा में पहला कदम है तो भविष्य की चिंताओं से मुक्ति आखिरी लक्ष्य। यह केवल बुद्धिमानी से निवेश के जरिए ही हासिल किया जा सकता है। हजियाणी बताती हैं, “हर महिला के लिए अपने बचत के निवेश की सटीक जानकारी जरूरी है। म्यूचुअल फंड कैसे काम करता है, यह जानने से उन्हें एसआइपी में निवेश करने में सहूलियत होगी। अमूमन 15 से 20 साल के लिए एसआइपी में निवेश किए जाने पर दो अंकों का रिटर्न मिलने की काफी संभावना होती है। मसलन, 12 फीसदी का रिटर्न मानते हुए, 15 वर्षों के लिए ‘5,000 रुपये के मासिक निवेश’ से 23 लाख रुपये मिलेंगे। लेकिन उससे जुड़ी सावधानियों पर हमेशा नजर रखनी होगी। सही फैसलों के लिए जरूरी है कि भारतीय महिलाएं वित्तीय मामलों को लेकर अपनी समझ बढ़ाएं। इसके लिए विभिन्न विकल्पों को समझने की आवश्यकता होती है।”

विकल्प बहुतेरे

आज के समय में सामान्य निवेशक के लिए निवेश के विकल्पों की भरमार उलझन बन सकती है। गुप्ता ने बताया, “ज्यादातर महिलाओं के लिए बचत और निवेश का मतलब होता है नकद, सोना या बचत खाते अथवा सावधि जमा खाते में पैसा रखना।” कई विकल्पों में से चुनने की आजादी वरदान होने के साथ-साथ बड़ी उलझन भी है। इसलिए शुरुआत अपने लक्ष्यों से करें। फिर उस विकल्प के बारे में फैसला करें जिससे तय लक्ष्य हासिल हो सकता है।

कैसे करें निवेश

जो पैसा आप निवेश करना चाहते हैं उसे शेयर मार्केट, सोना, रियल एस्टेट, नकदी या अन्य विकल्पों के हिसाब से बांट लें, ताकि आपके निवेश पर जोखिम बंट जाए। ऐसा करने से जहां ज्यादा रिटर्न मिलने के अवसर बढ़ जाते हैं, वहीं जोखिम भी कम हो जाता है। यानी निवेश किन-किन मद में किया जाए, इसका फैसला हमेशा अपने लक्ष्य और जोखिम को ध्यान में रखकर करना चाहिए। हजियाणी का कहना है, “जोखिम निवेश का अपरिहार्य पहलू है। बैंक में अपना 100 फीसदी पैसा यूं ही जमा छोड़ देने के बजाय, महिलाओं को जोखिम उठाकर अधिकतम लाभ के लिए निवेश करना चाहिए। ज्यादातर महिलाएं सोचती हैं कि सोना खरीदना निवेश है। लेकिन, यह एक हेजिंग एसेट है और इसमें सीमित एक्सपोजर है। फिक्स डिपॉजिट एक अन्य आसान विकल्प है लेकिन अगर इनकम टैक्स डिडक्शन और महंगाई को भी शामिल कर लिया जाय तो वास्तविक रिटर्न काफी कम हो जाता है। हर मद में निवेश का अपना जोखिम होता है और उसी के हिसाब से रिटर्न मिलता है। ऐसे में अपनी बचत को निवेश के अलग-अलग साधनों में जमा करने से जोखिम कम हो जाता है।

रिटायरमेंट प्लानिंग

ज्यादातर लोग रिटायरमेंट का जिक्र कुछ इस तरह करते हैं जैसे यह जीवन की सांध्य बेला है। यही कारण है कि बहुत कम लोग ही शुरुआत में रिटायरमेंट के बाद की प्लानिंग पर ध्यान देते हैं। कामकाजी लोगों में महिलाओं की तादाद भी तेजी से बढ़ रही है, जो अपने मौजूदा और भविष्य के लक्ष्यों को हासिल करने में सक्षम हैं। हालांकि महिलाओं के करिअर का ग्राफ तय करने वाली चीजें पुरुषों से अलग होती हैं। मसलन, शादी और बच्चों की जिम्मेदारी के कारण महिलाएं अपने करिअर में आठ से दस साल का ब्रेक लेती हैं। इससे उनकी कुल कमाई प्रभावित होती है।

यहां तक कि जो महिलाएं करिअर के दौरान ब्रेक नहीं लेतीं, उनकी सैलरी ग्रोथ भी 40 की उम्र तक ही होती है, जबकि पुरुषों की सैलरी 55 साल की उम्र में अपने उच्चतम स्तर पर होती है। यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि महिलाओं की औसत आयु पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होती है, लेकिन कमाई उनके मुकाबले कम। सो, रियाटरमेंट प्लान उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए। आखिरकार, जब उनके जीवन के वर्ष ज्यादा होते हैं तो उन्हें यह आश्वस्त करना चाहिए कि रिटायरमेंट के बाद उनके पास पर्याप्त पैसा हो।

इमरजेंसी फंड

जैसा नाम से ही जाहिर है “इमरजेंसी फंड” संकट के समय काम आता है। अमूमन महिलाएं अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी परिवार के पुरुष सदस्यों पर आश्रित होती हैं। यहां तक कि आज के वक्त में भी जब ज्यादा से ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं और वे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं, फिर भी वे कुछ हद तक परिवार पर निर्भर रहती हैं। यही कारण है कि हर महिला को गाढ़े वक्त के लिए कुछ पैसे बचाकर रखना चाहिए। इससे दूसरों पर उनकी आर्थिक निर्भरता कम होती है।

निजी जीवन में इमरजेंसी फंड संकट के वक्त चीजों को व्यवस्थित रखने के काम आता है। इमरजेंसी फंड होने पर महिलाएं संकट के समय भी सहज रह सकती हैं। वैसे भी आज की तेजी से बदलती दुनिया में अनिश्चितता काफी हद तक बढ़ गई है। इमरजेंसी फंड अच्छा हमदर्द साबित हो सकता है और जरूरतें पूरी करने के लिए माता-पिता, दोस्तों एवं रिश्तेदारों पर निर्भरता कम कर सकता है। इमरजेंसी फंड गाढ़े वक्त में आपकी जीवनशैली पर असर डाले बिना समस्याओं का निपटारा करने के लिए पर्याप्त होता है। इसलिए, इमरजेंसी फंड रखना वित्तीय मजबूती के लिए उठाए जाने वाले प्रमुख कदमों में से एक है। लेकिन यह जरूरी है कि उस फंड को कैसे तैयार करें।

डर के आगे जीत

ज्यादातर महिलाएं शेयर बाजार में निवेश से घबराती हैं, क्योंकि इसे “बड़े जोखिम” के तौर पर देखती हैं। बाजार में कम समय के लिए निवेश भले अस्थिर होता हो, लेकिन लंबे समय में निवेश अच्छा फायदा दे सकता है। हजियाणी बताती हैं, “अमूमन महिलाएं अपने बच्चों की पढ़ाई, शादी, घर जैसी चीजों के लिए बचत करना चाहती हैं, जिसके लिए उनके पास दस से पंद्रह साल का समय होता है। इसलिए, जोखिम को ध्यान में रखकर उचित सलाह-मशविरे से इक्विटी में निवेश अच्छा विकल्प है। अच्छे ब्लू-चिप स्टॉक या अच्छे इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश दो विकल्प हैं। दोनों को आजमाने के लिए बाजर के उतार-चढ़ाव पर नजर रखना जरूरी है।”

यानी जोखिम के डर से महिलाओं को शेयर बाजार में निवेश करने से बचना नहीं चाहिए। इक्विटी में सोच-समझकर निवेश किया जाए तो महिलाओं को उनके दीर्घकालिक लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद मिल सकती है।

निवेशकों के पसंदीदा विकल्प

स्टॉक ः कंपनियां पैसे जुटाने के लिए अपनी हिस्सेदारी स्टॉक के जरिए बेचती हैं, जिसमें शेयर मार्केट के जरिए निवेश किया जाता है। यानी किसी कंपनी का स्टॉक खरीदने पर आपकी उसमें हिस्सेदारी हो जाती है। कंपनी अगर अच्छा परफॉर्म करेगी तो स्टॉक से आपको ज्यादा रिटर्न मिलेगा। अगर कंपनी की परफॉर्मेंस खराब होगी, तो आपको मिलने वाला रिटर्न भी कम होगा। स्टॉक मार्केट में कम अवधि के निवेश पर जोखिम ज्यादा होता है।

बांड्स ः इसे निश्चित आय निवेश के रूप में भी जाना जाता है। बांड परंपरागत रूप से निवेश का लोकप्रिय माध्यम है। बांड से लिक्विडिटी बनी रहती है और रिटर्न ब्याज के रूप में मिलता है। हालांकि, यह स्टॉक या अन्य जोखिम भरे निवेश से अधिक सुरक्षित होता है, लेकिन इसमें रिटर्न दूसरे निवेश की तुलना में कम मिलता है।

अल्ट्रा शॉर्ट टर्म लिक्विड फंड ः ये म्यूचुअल फंड स्कीम में आते हैं, जिनके जरिए बाजार में निवेश किया जाता है। मसलन, कॉमर्शियल पेपर्स, सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट और शॉर्ट टर्म कॉरपोरेट बांड। यह पूरी तरह से नकद होता है और अमूमन बैंक जमा से ज्यादा ऊंचा रिटर्न देते हैं।

रियल एस्टेट ः आम तौर पर जमीन-जायदाद की कीमत समय के साथ बढ़ती जाती है। कुछ लोग रियल एस्टेट में निवेश के जरिए अच्छा रिटर्न प्राप्त करते हैं। यानी वे रियल एस्टेट से ज्यादा रिटर्न लेने में माहिर होते हैं।

(लेखिका सर्टिफाइड फाइनेंशियल एडवाइजर, फाइनेंशियल मार्केट की स्ट्रैटजिक कंसल्टेंट हैं। [email protected])

Advertisement
Advertisement
Advertisement