अपनी भूटान यात्रा के बारे में जब हमने सोचा तो हमें इसका खर्च आश्चर्यजनक लगा। दो घंटे का सफर तय करके तक्तसांग लाखांग मठ पहुंच कर हम अभिभूत हो गए। ठोस ग्रेनाइड चट्टान पर अवस्थित यह मठ आंखें फाडक़र देखने वाला अनुभव देता है। जैसे ही हम पहाड़ी पर और ऊपर चढऩे लगे, एक गाइड ने हमें आगाह किया, "आगे मत जाओ, वरना गिर जाओगे।" एक भी कदम डगमगाता तो हम एक 1,000 मीटर नीचे गिर सकते थे। यदि आप और यात्रा कर सकते हैं तो टाइगर्स नेस्ट के नाम से मशहूर खूबसूरत वादियां भी आपको आश्चर्यचकित और मंत्रमुग्ध कर सकती है जहां चारों दिशाओं में रंग-बिरंगे झंडे आपको लहराते मिलेंगे। यह खूबसूरत जगह पारो घाटी से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर है।
इस जगह से लौटते वक्त आप काफी थक सकते हैं लेकिन आप किचू लाखांग मठ में आराम फरमा सकते हैं। यहां का भोजन लजीज है। हमने रात के खाने के लिए लाल चावल और काली मिर्च एवं चीज से बनी स्ट्यू एमा दात्शी की फरमाइश की। यह भूटान का राष्ट्रीय व्यंजन है और शायद उस थकाऊ ट्रेकिंग से लौटने के बाद हमें यह ज्यादा स्वादिष्ट लग रहा था। पिछले साल इसी मौसम में मैं और मेरा भाई इस सफर पर निकले थे। हमने रात के वक्त सियालदह से दार्जिलिंग मेल पकड़ी थी और अगली सुबह हम हासिमारा स्टेशन पहुंचे। वहां से हमने भूटान की सरहद से सटे जयगांव के लिए कार किराये पर ली। भूटान में हमारा प्रवेश बड़ा आसान रहा क्योंकि कोलकाता में ही हमने भूटान दूतावास से एंट्री पास ले लिया था। हम आसानी से चहलकदमी करते हुए भूटान के प्रवेशद्वार यूंटशोलिंग पहुंच गए। भारतीय होने का फायदा यह है कि इस पर्वतीय देश में प्रवेश के लिए आपको वीजा या पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती। आपको सिर्फ अपना पहचान कार्ड रखना होता है।
पारो
टाइगर्स नेस्ट की यात्रा के बाद हम भूटान के सबसे पुराने किलों में से एक पारो के रिनपोंग जोंग की ओर रुख किया। चढ़ाई के मार्ग में अवस्थित इस किले से दूर-दूर तक फैली घाटी का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है। इस किले की दीवारों पर भगवान बुद्ध की जीवनी का गूढ़ वर्णन चित्रित किया गया है। जोंग से निकलते ही एक घंटाघर दिखाई पड़ता है जो दरअसल एक संग्रहालय है। भूटान का एकमात्र हवाई अड्डा पारो में ही है और यह एक छोटा-सा शहर है जिसे पैदल चलकर ही नापा जा सकता है। इस शहर की सडक़ खूबसूरत रोशनी से जगमगाती है जिसके दोनों ओर मकान बने हुए हैं। इनमें से ज्यादातर मकानों में रेस्तरां, एम्पोरियम और कैफे हैं।
थिम्पू
यदि आप दिल्ली या मुंबई के निवासी हैं तो थिम्पू आपको चौंका सकता है। यहां के कार चालक पैदल यात्रियों को बड़ी विनम्रता से निकल जाने के लिए रास्ता दे देते हैं। यहां कोई ट्रैफिक सिग्नल नहीं है। भूटान का यातायात सुसज्जित और कुशल प्रशिक्षित ट्रैफिक पुलिस द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यहां न तो एक बंपर से दूसरे बंपर तक गाडिय़ों की कतारें लगती हैं और न ही लंबा जाम लगता है। सबसे अच्छी बात यह है कि यहां रात में भी चहलकदमी करना सुरक्षित है। यहां शायद ही डकैती या चोरी की कोई वारदात होती है। हमारे लिए तीरंदाजी का मैदान देखना भी रोमांचक अहसास था। शहर के बीचों-बीच लगा घंटाघर देखने लायक है। एक और आकर्षण यहां के साप्ताहिक हाट को देखना है जहां आप अच्छी यादगार चीजें और हस्तशिल्प खरीद सकते हैं।
पुनाखा
पुनाखा के लिए हम अगली सुबह रवाना हुए। थिम्पू की गर्माहट भरे वातावरण से निकलकर हमारी कार हवादार और घुमावदार सडक़ से होते हुए दोचुला दर्रे में आकर रूकी। यह दर्रा अपने शानदार 108 गुंबदों के लिए मशहूर है और बर्फ से ढकी हिमालय की घाटी का अद्भुत नजारा पेश करता है। दोपहर तक हम खुरुथांग पहुंच गए जहां ज्यादातर बौद्ध अनुयायी ही रहते हैं। हमने खूबसूरत पुनाखा जोंग की भी यात्रा की जो एक नदी से घिरा है और सबसे बड़े और सबसे खूबसूरत जोंग में से एक है। भूटान के किलों की मनोहारी तस्वीरें यहां की मुद्रा में भी अंकित हैं, शायद यही वजह है कि आप भूटान को जोंग का देश भी कह सकते हैं। हमारी नौ दिनों की यात्रा पर सिर्फ 20,000 रुपये खर्च हुए जिसमें खाना और ठहरना भी शामिल था। हमने अपने ठहरने का इंतजाम भी पहले से नहीं किया था। सिर्फ मोलभाव करने से ही हमें बड़ी मदद मिली।