अजेय समझे जाने वाले तुर्की के राष्ट्रपति रैचप तय्यप अर्दोआन को स्थानीय चुनावों में तगड़ा झटका लगा है। उनकी पार्टी को राजधानी अंकारा में हार का मुंह देखना पड़ा है। विपक्ष इस्तांबुल में भी जीत का दावा कर रहा है। 31 मार्च को हुए स्थानीय चुनावों में उनके विरोधियों ने उन्हें तगड़ा झटका दिया है। समस्त इस्लामिक विश्व के एकमात्र चैंपियन होने की धारणा रखने वाले अर्दोआन को विपक्ष ने इस्तांबुल और अंकारा में सत्तारूढ़ एके पार्टी के गढ़ में विपक्ष की भूमिका में ला दिया है। अर्दोआन का आत्मविश्वास चरम पर था और उन्हें लगता था कि वे समूची इस्लामी दुनिया के एकमात्र चैंपियन है।
अर्दोआन, जो खुद को मुस्लिम दुनिया के मसीहा के रूप में पेश कर रहे हैं, आर्थिक मंदी सहित जटिल घरेलू समस्याओं से जूझ रहे हैं। तुर्की में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं, मुद्रास्फीति की दर बहुत ऊंची है और उनकी पार्टी के भीतर काफी असंतोष है। इसके अलावा स्थानीय चुनावों में उनकी हार राजनीतिक इस्लाम का समर्थन करने के उनके बहुचर्चित रुख में भी सेंध लगाती दिख रही है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सत्तारूढ़ दल को मध्यम या शिक्षित वर्ग से अपेक्षानुरुप वोट नहीं मिले। इसका अर्थ है कि मतदाता ने उस इस्लाम कार्ड को अस्वीकार कर दिया है, जिस पर अर्दोआन का भरोसा था।
इस चुनाव में 5 करोड़ 70 लाख से अधिक लोग 30 शहरों, 51 प्रांतीय राजधानियों और 922 जिलों के महापौरों को वोट देने के लिए पात्र थे। पुलिस व्यवस्था के बावजूद, सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ताओं के उग्र व्यवहार के कारण हिंसा के कई मामले हुए। मतदान और मतगणना में हेरफेर के आरोपों के कारण, इस्तांबुल सीट से चुनाव लड़ रहे विपक्षी महापौर उम्मीदवार, इर्केम इमामोग्लू ने चुनावी बोर्ड से इस्तांबुल के मेयर की नियुक्ति करने का आग्रह किया है, लेकिन सत्ताधारी एके पार्टी ने उन सभी आरोपों को खारिज कर दिया है, जिसमें चुनाव में धांधली की बात कही जा रही है।
इस संदर्भ में, इस पर गौर किया जाना चाहिए कि प्रारंभिक परिणामों में विपक्षी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (CHP) का अंकारा और इस्तांबुल दोनों में प्रदर्शन कमजोर था। कहा जा रहा है कि अर्दोआन समर्थकों द्वारा कथित तौर पर चुनावों के माध्यम से तख्तापलट की बात मीडिया ने गढ़ी है।
वहीं, दूसरी ओर, हार से बौखलाए, अर्दोआन विपक्षी गठबंधन को दोष देने के लिए बेताब हैं। अर्दोआन का कहना है कि विपक्षियों को असंतुष्ट, शक्तिशाली और भगोड़े मोहम्मद फेतुल्लाह गुलेन का समर्थन प्राप्त है, जो अब अमेरिका में रह रहे हैं। अर्दोआन गुलेन से हमेशा असहमत होते हैं। उन्हें शक है कि 2016 में तुर्की में सशस्त्र बलों के एक वर्ग द्वारा तख्तापलट की कोशिश के पीछे गुलेन का हाथ था। गुलेन (78), एज़मेट का समर्थन करते हैं और अमेरिका में निर्वासन के दौरान भी नुरेशियन धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण का अनुसरण करते हैं।
हालांकि चुनाव परिणामों पर एक बार फिर से विचार चल रहा है, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस विवाद में अर्दोआन की छवि धूमिल हुई है और 2020 के आम चुनावों में इसके नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। इसके अलावा, इस्लाम की भलाई के लिए एक अंतरराष्ट्रीय नेता के रूप में अर्दोआन की छवि को भी नुकसान हुआ है। 15 मार्च को क्राइस्टचर्च, न्यूजीलैंड में मारे गए मुस्लिम परिवारों के साथ सहानुभूति व्यक्त करने की कोशिश करने वाले अर्दोआन इससे पहले 2017 में म्यांमार से रोहिंग्याओं के निष्कासन पर बांग्लादेश पहुंचे थे। अपने चुनाव अभियान के दौरान भी, अर्दोआन ने क्राइस्टचर्च हत्याओं के फुटेज दिखाते हुए कहा था कि इस्लाम खतरे में है और एक नेता के रूप में वे ही इसे बचा सकते हैं। यहां तक कि उन्होंने पिछले दिनों इस्लामिक कारणों से मारने के लिए ऑस्ट्रेलियाई हत्यारे पर तुर्की जाने का आरोप लगाया।
इससे पहले, अर्दोआन ने खुद को एक महान वार्ताकार के रूप में प्रोजेक्ट करते हुए सीरिया के मामलों में मध्यस्थता की पेशकश की थी। चुनाव में खराब प्रदर्शन से सऊदी अरब और अमेरिका के विरोधी के रूप में उनकी छवि को प्रभावित होने की संभावना है। इन दोनों ही देशों के साथ उनके संबंध अच्छे नहीं हैं।
इस संदर्भ में यह भी ध्यान रखना होगा कि अर्दोआन पाकिस्तान से दोस्ती करने यहां तक कि कश्मीर में मध्यस्थता करने की पेशकश के रास्ते से बाहर जा रहे हैं। संक्षेप में, वह भारत के मित्र नहीं हैं। पिछले महीने ओआईसी शिखर सम्मेलन में, जब भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को सम्मान दिया गया, तब तुर्की ने इसका विरोध करते हुए पाकिस्तान के साथ सुर में सुर मिलाया था। भारत को भविष्य में सिर्फ संपन्न चुनावों और परिदृश्य की पृष्ठभूमि में तुर्की को देखना चाहिए।
तुर्की के सशस्त्र बलों को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों द्वारा निगरानी रखने की आवश्यकता है क्योंकि अर्दोआन राजनीतिक रूप से असहज होने पर अशांत पानी में मछली पकड़ने जैसी दुस्साहसिक कोशिश कर रहे हैं और इसके दूरगामी भूराजनीतिक परिणाम हो सकते हैं।
(लेखक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और सुरक्षा विश्लेषक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)