महामारी की शक्ल ले चुके कोविड-19 के मामले अब भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं। साफ है कि यह पूरे देश में पैर पसार चुका है। चिंता की बात यह है कि जब देश में लॉकडाउन है, विदेश से आवाजाही बंद है, उसके बाद भी संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में यह तो तय है कि 21 दिन के लॉकडाउन के बाद भी यह खत्म होने वाला नहीं है।
महामारी को रोकने के लिए मेडिकल साइंस में दो तरीके होते हैं। पहला यह कि हम कोई हस्तक्षेप कर उस पर नियंत्रण कर लें। मसलन उसका टीका विकसित कर लें। लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है। कोविड-19 का टीका विकसित होने में कम से कम एक साल लगेगा। फिर हमारे पास दूसरा तरीका यह है कि लोगों पर नियंत्रण कर उसके प्रसार को रोका जाए। हम यही तरीका अपना रहे हैं। तकनीकी तौर पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण की संभावना को कम कर रहे हैं। इसके लिए मास्क, ग्लासेज, ग्लव्स जैसे पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट का इस्तेमाल भी संक्रमण को रोकने में मदद करता है। लेकिन ऐसा करने के बावजूद हम 21 दिन में इसे पूरी तरह से नियंत्रित नहीं कर सकते।
ऐसे में इन 21 दिनों में हमारी सरकार के दो उद्देश्य होने चाहिए। पहला तो इस दौरान हम हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करें। मसलन कोविड-19 के स्पेशलाइज्ड अस्पताल बनाए जाएं। मेडिकल स्टॉफ के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट की उपलब्धता बढ़ाई जाए, आइसीयू, वेंटिलेटर की उपलब्धता बढ़ाई जाए। ज्यादा से ज्यादा लोगों को मेडिकल ट्रेनिंग दी जाए। भारत के कमजोर हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर को देखते हुए सरकार को चाहिए कि सभी मैन्युफैक्चरर्स को कहे कि वह सारे काम छोड़कर बड़े पैमाने पर मास्क, ग्लव्स, ग्लासेज, वेंटिलेटर आदि जरूरी चीजों का निर्माण करें, जिससे आने वाले बड़े खतरे से निपटने के लिए हम पूरी तरह से मुस्तैद और तैयार रहें।
हमारा दूसरा उद्देश्य टेस्टिंग का होना चाहिए। टेस्टिंग के दो चरण होते हैं। पहला पब्लिक हेल्थ टेस्टिंग और दूसरा हेल्थकेयर टेस्टिंग। जब भारत में संक्रमण के मामले सामने आए, उसके दो-तीन हफ्ते में पब्लिक हेल्थ टेस्टिंग होनी चाहिए थी। लेकिन उस वक्त सरकार ने ऐसा नहीं किया। अगर ऐसा करते तो बहुत से असंक्रमित लोगों को संक्रमण से बचाया जा सकता था, क्योंकि पब्लिक हेल्थ टेस्टिंग का उद्देश्य ही यह होता है कि संक्रमित लोगों की पहचान करो और उन्हें असंक्रमित लोगों से अलग करो। एक संक्रमित व्यक्ति की पहचान कर हम आसानी से 50 असंक्रमित लोगों को संक्रमण से बचा सकते थे। लेकिन अब वह दौर निकल चुका है। ऐसे में हमें हेल्थ केयर टेस्टिंग पर फोकस करना चाहिए, जिसमें हर उस व्यक्ति का परीक्षण होना चाहिए, जिसे बुखार, बलगम, सांस लेने में तकलीफ और उसमें गंध पहचान करने की क्षमता खत्म हो रही है। अगर इसमें से किसी भी व्यक्ति को कोई भी तीन लक्षण मिलें तो तुरंत उसकी टेस्टिंग होनी चाहिए। खास तौर से बुखार को किसी भी हालत में नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। अगर ऐसा करते हैं तो पब्लिक हेल्थ टेस्टिंग खुद-ब-खुद हो जाएगी और हमारे लिए संक्रमण को रोकना बेहद आसान हो जाएगा। कुछ लोग मास टेस्टिंग की बात कर रहे हैं, हमें इस मूर्खतापूर्ण सोच से बचना चाहिए। इस वक्त हेल्थ केयर टेस्टिंग ही सबसे कारगर तरीका है। हमें एंटीबॉडी टेस्टिंग की भी जरूरत है। इसके जरिए हम उन लोगों के बारे भी पता लगा सकेंगे, जो वायरस से संक्रमित होकर अपने आप ठीक हो गए, क्योंकि उनके अंदर एंटीबॉडीज विकसित हो गए। इसका फायदा यह होगा कि वास्तविक स्थिति को समझ पाएंगे।
यह सब करने के बावजूद हमें कम्युनिटी संक्रमण के लिए तैयार रहना चाहिए। क्योंकि लॉकडाउन की वजह से इन 21 दिनों में कम्युनिटी संक्रमण नहीं होगा। प्रवासी श्रमिकों के पलायन, सड़कों पर काम कर रहा प्रशासनिक तंत्र, स्लम एरिया और दूसरी घनी आबादी वाले क्षेत्रों की वजह से इसके प्रसार की आशंका काफी बढ़ गई है। क्योंकि लॉकडाउन में रहने के बावजूद यहां पर फिजिकल डिस्टेंसिंग बहुत कम है। हमें इस समय सोशल डिस्टेंसिंग की नहीं, फिजिकल डिस्टेंसिंग की जरूरत है। क्योंकि इन क्षेत्रों में कोई व्यक्ति संक्रमित होता है, तो वह न केवल अपने परिवार को संक्रमित करेगा बल्कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद कम्युनिटी को संक्रमित करेगा। ऐसे में 21 दिन के लॉकडाउन की अवधि भी बढ़ाना जरूरी है, जिसके लक्षण भी हमें दिखने लगे हैं। मुझे उम्मीद है कि सरकार लॉकडाउन की अवधि जरूर बढ़ाएगी।
ऐसे में हम अधूरे मन से भले ही कहें कि अभी देश में कम्युनिटी संक्रमण नहीं हो रहा है लेकिन हम जानते हैं कि यह शुरू हो चुका है। कोविड-19 के मामले में अगर कोई संक्रमित व्यक्ति विदेश से आता है तो उसके संपर्क में आए व्यक्ति को संक्रमण होगा। फिर अगर उस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में कोई व्यक्ति आता है और उसे भी संक्रमण हो जाए, तो समझ लीजिए कि कम्युनिटी संक्रमण की शुरुआत हो गई है। हमें इस चेन रिएक्शन को रोकना है। अगर ऐसा नहीं होता है तो स्थिति बहुत भयावह हो जाएगी।
अगर मैं इस समय प्रधानमंत्री होता तो मैं कई सारे वर्किंग ग्रुप का गठन करता। हर ग्रुप में दो-तीन विशेषज्ञ होते। पहले वर्किंग ग्रुप का केवल यही काम होता कि वह अगले दिन संक्रमण की क्या स्थिति रहने वाली है, उसका आकलन करे। खास तौर से विभिन्न भौगोलिक स्थिति में वायरस के संक्रमण की क्या स्थिति है। उसकी जानकारी लेना उसका काम होता। वहीं दूसरे वर्किंग ग्रुप का काम जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होता। जबकि तीसरे ग्रुप का फोकस जरूरी मानव संसाधन खड़े करना होता। उसके पास हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स का प्रशिक्षण, उनके काम करने की गाइडलाइन आदि तैयार करने की जिम्मेदारी होनी चाहिए। चौथा वर्किंग ग्रुप लोगों में जागरूकता फैलाने का काम करता और एक अहम ग्रुप होना चाहिए था जो राज्यों के साथ समन्वय का काम करता। देखिए, इस समय हम युद्ध की स्थिति में हैं और इस वक्त सबको अनुशासित रहना बेहद जरूरी है।
हमारे देश में अभी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के आधार पर हेल्थ केयर सिस्टम खड़ा हुआ है। लेकिन उसमें कोई समन्वय नहीं है। इन परिस्थितियों में एक सिंगल कमांड सिस्टम की जरूरत है, जिसके तहत सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के अस्पताल हों। मुझे नहीं लगता कि इस पहल का कोई भी विरोध करेगा। अगर ऐसा किया जाता है तो उसके लिए जमीनी स्तर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना बेहद आसान हो जाएगा, साथ ही समन्वय भी हो जाएगा। लेकिन मौजूदा सरकार का रुख निजी क्षेत्र को इस लड़ाई में शामिल करने का नहीं है। वह बार-बार यही कह रही है कि हम लड़ाई लड़ रहे हैं। उसे यह समझना चाहिए कि अकेले ऐसा करना उसके बस की बात नहीं है।
अगर हम ऐसा कर लेते हैं तो हम यह जान पाएंगे कि वायरस का व्यवहार कैसे बदल रहा है, किन क्षेत्रों में उसका प्रकोप ज्यादा हो सकता है और किस वक्त हमें कहां पर क्या एक्शन लेना है, यह सब बेहद आसानी से कर सकेंगे। लेकिन सरकार वही गलती दोहरा रही है, जो वह कोविड-19 के मामले शुरुआत में आने के वक्त कर रही थी। सरकार शुरुआती समय के अलावा लॉकडाउन के पहले तीन-चार दिन गंवा चुकी है। वह अब हरकत में आई है। सरकार खाने-पीने, दवाइयों और दूसरी जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति के बारे में बात कर रही है। लेकिन यह केवल घबराहट भरा कदम है। क्योंकि जिस आपा-धापी में सरकार ने लॉकडाउन का ऐलान किया वह बहुत ही क्रूरता भरा और अमानवीय कदम था।
आप केवल चार घंटे का समय देकर लोगों को लॉकडाउन नहीं कर सकते हैं। आपको लॉकडाउन के लिए एक मानक तैयार करना चाहिए था। मसलन, आप देशवासियों से कुछ दिन पहले यह कह सकते थे कि जिस दिन देश में संक्रमित लोगों की संख्या 1000 हो जाएगी उस दिन हम लॉकडाउन कर देंगे। ऐसा होने से लोग मानसिक रूप से तैयार हो जाते। आज लोग अवसाद में हैं। मुझसे कई लोग फोन कर बता रहे हैं कि उनकी स्थिति सामान्य नहीं रह गई है। इस स्थिति से बचने के लिए सरकार को योजना बनानी चाहिए थी। लेकिन सरकार इस समय रैश ड्राइविंग कर रही है, जो खतरनाक है। उसे यह समझना होगा कि केवल सही दिशा में चलना जरूरी नहीं है, बल्कि फिनिशिंग लाइन तक पहुंचना भी बेहद अहम है। इस लड़ाई में स्पीड का बेहद महत्व है। अगर वह ऐसा नहीं कर पाती है तो पूरी लड़ाई बेकार हो जाएगी। अब यह उस पर है कि वह किस तरह की ड्राइविंग करती है, क्योंकि पूरा देश उसी के भरोसे है।
(लेखक इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च में सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च इन वायरोलॉजी के प्रमुख रह चुके हैं। यह लेख प्रशांत श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित है)
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    