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राज न विचारे, न शर्म करे

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अहम घटक शिवसेना के राजन विचारे सहित 11 सांसदों की आक्रामक भीड़ सत्ता के दंभ, अपने से निम्न वर्ग के प्रति हिकारत और सांप्रदायिक दुर्भाव से ग्रस्त होकर राजधानी दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में भोजन व्यवस्था के लिए नियुक्त रेलवे की खानपान सेवा आईआरसीटीसी के कर्मचारी अरशद जुबैर के मुंह में जबरदस्ती रोटी ठूंस कर बेवक्त उसका रोजा तोडऩे की नापाक करतूत को अंजाम देते हुए कैमरे की फुटेज में रंगे हाथों कैद हैं।
राज न विचारे, न शर्म करे

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अहम घटक शिवसेना के राजन विचारे सहित 11 सांसदों की आक्रामक भीड़ सत्ता के दंभ, अपने से निम्न वर्ग के प्रति हिकारत और सांप्रदायिक दुर्भाव से ग्रस्त होकर राजधानी दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में भोजन व्यवस्था के लिए नियुक्त रेलवे की खानपान सेवा आईआरसीटीसी के कर्मचारी अरशद जुबैर के मुंह में जबरदस्ती रोटी ठूंस कर बेवक्त उसका रोजा तोडऩे की नापाक करतूत को अंजाम देते हुए कैमरे की फुटेज में रंगे हाथों कैद हैं। फिर भी संसद और बाहर उनकी शक्ल पर चोरी की लाज के बजाय सीनाजोरी के कुतर्कों की उद्दंडता थी: हम तो खराब भोजन के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे क्योंकि हमारी शिकायत मिलकर सुनने से आवासिक आयुक्त कतरा रहे थे, हमें मालूम नहीं था कि अरशद मुसलमान और रोजेदार था क्योंकि उसके चेहरे पर तो यह सब लिखा नहीं हुआ था, हम तो बस उसे खिला कर दिखाना चाहते थे कि रोटी कितनी खराब बनी है, हमने कोई तोड़-फोड़ नहीं की, आदि। आईआरसीटीसी, महाराष्ट्र सदन और राज्य सरकार के वरिष्ठï अधिकारियों की रिपोर्ट दरकिनार कर दें तो भी कैमरा कुछ और ही सच्चाई बयान कर रहा है। कैमरा दिखा रहा है कि आंदोलन नहीं तोडफ़ोड़ की जा रही है और अरशद के नाम का टैग उसके वस्त्र पर टंका हुआ है तथा मुंह में रोटी ठूंसे जाते वक्त भी वह दो बार बोला कि वह रोजेदार है। और अगर खाने को लेकर कोई शिकायत थी तो शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन सरकारी उच्चाधिकारियों के खिलाफ होना था न कि एक अदने निम्न स्तरीय कर्मचारी की धार्मिक भावनाओं को आहत कर उसे अपमानित किया जाना था। दरअसल, इन हमलावर सांसदों को कैमरे के साथ-साथ भारतीय दंड विधान की संबद्ध धाराओं के तहत भी कैद करने की जरूरत है। विवेक-विचारशून्य विचारे के अलावा हम उनके साथी अन्य हुड़दंगी सांसदों का नाम भी लिखे दे रहे हैं ताकि हमारे पाठकों के लिए भी सनद रहे: संजय राउत, आनंदराव अडसुल, अरविंद सावंत, हेमंत गोडसे, कृपाल तमाणे, रवींद्र गायकवाड़, विनायक राउत, श्रीकांत शिंदे, शिवाजी पाटिल और राहुल शेवाले। इन 11 में से नौ के खिलाफ पहले से आपराधिक मामले भी हैं।

जहां शिवसेना ने सीनाजोरी के कुतर्क दिए वहीं उसकी बड़ी सहयोगी भाजपा ने बचाने-छिपाने वाले कुतर्क किए। मसलन, संसद में उसके मंत्रियों ने कहा कि अभी आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है जबकि कैमरे के फुटेज में सबकुछ साफ-साफ वे भी देख चुके रहे होंगे। उन्होंने यह अनुरोध भी किया कि मामले को सांप्रदायिक रंगत न दी जाए। यानी जिन लोगों ने रोजा जबरदस्ती तुड़वाने की सांप्रदायिक हरकत की उन्होंने तो कोई सांप्रदायिक रंगत नहीं दी और जो लोग यानी मीडिया और सांसद इस सांप्रदायिक हरकत की ओर ध्यान दिलाएं वे ही सांप्रदायिक रंग देने वाले ठहरे। मामले पर बवाल मचने के बाद पहले दिन जो शिवसेना यह तर्क देकर सांप्रदायिकता के आरोप से अपना पल्ला झाड़ रही थी कि उसके सांसद आईआरसीटीसी के उत्पीडि़त कर्मचारी के मुसलमान और रोजेदार होने से अनभिज्ञ थे उसी शिवसेना के मुखपत्र सामना ने अगले दिन अपनी कलुषित सांप्रदायिक भावना खोलकर रख दी, यह लिखकर कि जो लोग एक मुसलमान का रमजान में रोजा तुड़वाने को इतना तूल दे रहे हैं वह कुछ मुसलमानों द्वारा रमजान के महीने में बलात्कार करने पर चुप क्यों रहते हैं। उदाहरण स्वरूप सामना ने आरोप लगाया कि अफगानिस्तान में एक मौलवी ने रमजान के महीने में बलात्कार किया है और बेंगलुरू में एक मुसलमान शिक्षक ने एक बालिका के साथ भी रमजान के महीने में बलात्कार किया। अफगानिस्तान का उदाहरण भारत के संदर्भ में हास्यास्पद है और बेंगलुरू की घटना के बारे में भी सामना ने कोई ब्योरा नहीं दिया है। और अगर ये घटनाएं सही भी हों तो अपराधियों के कृत्य की तुलना सांसदों के कृत्य से करना क्या प्रकारांतर से सांसदों को भी अपराधी नहीं ठहराता है? भाजपा के एक बड़े तबके के मन का सांप्रदायिक चोर भी राजधानी दिल्ली से निर्वाचित भाजपा के ही एक सांसद ने यह टिप्पणी कर उजागर कर दिया कि जो लोग रोजा जबरदस्ती तोडऩे का मामला उठा रहे हैं वे पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते हैं।

शिवसेना सांसदों की करतूत भी एक अपवाद मान ली जाती यदि वह चुनाव अभियान के समय से अबतक देश में सांप्रदायिकता भड़काने की कोशिशों के क्रम में एक कड़ी नहीं नजर आती। चुनाव अभियान के दौरान मुजफ्फरनगर के दंगे, बड़े नेताओं के मटर बनाम मटन और नरेंद्र मोदी का विरोध करने वाले पाकिस्तान चले जाएं जैसे बयान, देश में सत्तारूढ़ दल के नेताओं के चुनाव पश्चात मुरादाबाद में दंगा भड़काने के प्रयास, कश्मीर में बालटाल की घटना के बाद पंजाब में सांप्रदायिक गोलबंदी और शिवसेना सांसदों की करतूत पर संसद में बवाल मचने के एक दिन बाद गोवा में एनडीए की घटक महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के एक मंत्री का बयान कि नरेंद्र मोदी देश में हिंदू राज लाएंगे, देश में सांप्रदायिकता और अल्पसंख्यक विरोध का पारा नहीं चढ़ाएंगे तो और क्या। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कई समर्थक मीडिया में भी बार-बार उद्धृत होते हैं कि नरेंद्र मोदी को गुजरात के अतीत से काट कर देखिये। अल्पसंख्यकों के प्रति उनके हाल के संपर्क प्रयासों को देखिये। वह देश में समरसता के प्रति गंभीर हैं। हम यह मान लेंगे अगर उनके समर्थकों की हुड़दंगी सांप्रदायिक टोली और बयानवीरों पर राजधर्म (पूर्व भाजपा प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का शब्द) के अनुरूप सख्त कार्रवाई की झलक देखेंगे।

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