गौरतलब है कि आकाशवाणी पर 50 साल से भी अधिक समय से संस्कृत में बुलेटिनों का प्रसारण किया जा रहा है। इस समय सुबह-शाम दोनों वक्त 5-5 मिनट के संस्कृत बुलेटिन प्रसारित किए जाते हैं। प्रसार भारती के गठन के बाद से दूरदर्शन पर भी संस्कृत बुलेटिन नियमित हो गया। इस वक्त दूरदर्शन पर संस्कृत में पांच मिनट का समाचार-बुलेटिन प्रसारित होता है। अब इस अवधि को बढ़ाकर आधा घंटा किया जाने का प्रस्ताव है। दूरदर्शन के महानिदेशक अक्षय कुमार राउत का कहना है कि संस्कृत की अवधि बढ़ाने के लिए लोगों की ओर से मांग की जा रही है। राउत के इस कथन पर दो तरह की राय सामने आ रही है। एक समूह वह है जो संस्कृत को मृत-भाषा के तौर पर देखता है और इसे महज कर्मकांड और पूजा-पाठ तक सीमित मानता है, जबकि दूसरा समूह इस भाषा के पक्ष में खड़ा है और इसे जीवित भाषा के तौर पर स्थापित करने के लिए जी-जान से जुटा है।
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत में वह कौन-सा समूह या वर्ग है जो संस्कृत को अपनी मातृभाषा या पहली भाषा के तौर पर उपयोग में लाता है। वर्ष 2011 की जनगणना के भाषायी आंकड़ों को देखें तो उपर्युक्त सवाल का जवाब यह है कि भारत में संस्कृत बोलने, जानने वालों का समूह मौजूद है। साल 2001 की जनगणना की तुलना में दोगुने लोगों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा के तौर पर दर्ज कराया है और इनकी संख्या एक लाख से अधिक है। इसके समानांतर एक और आंकड़ा देखने की जरूरत है। देश में इस समय 16 संस्कृत विश्वविद्यालय काम कर रहे हैं। इनके अलावा संस्कृत और वैदिक विद्याओं के लिए निजी क्षेत्र में भी दो यूनिवर्सिटी स्थापित की गई हैं। केंद्रीय संस्कृत संस्थान ने देश भर में 11 जगहों पर अपने कैंपस स्थापित किए हैं। राष्ट्रीय उच्च शिक्षा सर्वे 2011-12 से पता चलता है कि संस्कृत की इन संस्थाओं में हर साल करीब एक लाख बच्चे पंजीकृत होते हैं। इस संख्या में सामान्य विश्वविद्यालयों के संस्कृत विभागों में पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या शामिल नहीं है। जिस भाषा में एक लाख से अधिक छात्र-छात्राएं यूनिवर्सिटी स्तर तक पहुंच रहे हैं, उस भाषा में पब्लिक टेलीकास्टर पर न्यूज-बुलेटिन की उपलब्धता और इसके समय में विस्तार किया जाना कोई अनूठी बात नहीं लगती।
वैसे भी देश में संस्कृत पत्रकारिता का इतिहास लगभग डेढ़ सदी पुराना है। आरएनआई के साल 2012 के आंकड़े बताते हैं कि इस वक्त संस्कृत में 112 समाचार पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। इनमें से 15 अखबार दैनिक के रूप में प्रकाशित होते हैं। इनमें यूपी से चार, गुजरात से दो, दिल्ली से तीन, बिहार से एक, मध्यप्रदेश से दो, कर्नाटक से एक, हरियाणा से एक और महाराष्ट्र से एक अखबार प्रकाशित हो रहा है। संभव है कि इनमें से ज्यादातर अखबार फाइल कॉपी प्रकाशित हो रहे हैं, लेकिन तब भी ‘सुधर्मा’ जैसे अखबार लंबे समय से संस्कृत पाठकों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। संस्कृत के प्रकाशनों की संख्या और नए मीडिया पर संस्कृत की स्थिति भी यह उम्मीद जगाती है कि संस्कृत में समाचार सुनने-गुनने वालों की कमी नहीं है और आने वाले दिनों में इस संख्या में इजाफा होना तय है।
एक और बात ध्यान देने लायक है, वह यह कि देश के अलग-अलग भागों में संस्कृत-ग्राम विकसित किए जा रहे हैं। उत्तराखंड और कर्नाटक में ऐसे दो-दो गांवों को चिह्नित किया गया है, जिनकी 90 प्रतिशत आबादी संस्कृत समझ लेती है। आने वाले समय में ऐसे गांवों की संख्या और बढ़ेगी। एक और ऐसा आंकड़ा है जो वैश्विक स्तर पर संस्कृत के प्रति आकर्षण दिखाता है। भारत सरकार के माध्यम से दुनिया की 106 संस्थाओं में इंडोलॉजी की पढ़ाई कराई जा रही है, इममें संस्कृत को विशेष तौर पर शामिल किया गया है। इससे भी बड़ी बात यह है कि 150 से अधिक ऐसे विदेशी विश्वविद्यालय हैं, जो अपने यहां स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर संस्कृत पढ़ा रहे हैं। बांग्लोदश में ढाका विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग में एक दर्जन प्रोफेसर हैं और 100 से अधिक छात्र-छात्राएं संस्कृत पढ़ रहे हैं। अलग-अलग प्रवृत्तियों की ओर इशारा करने वाले ये तमाम आंकड़े बताते हैं कि संस्कृत मृत भाषा नहीं है, बल्कि लगातार विस्तार पा रही है।
इन तमाम पैमानों के आधार पर संस्कृत के न्यूज-बुलेटिन या संस्कृत में समाचारों पर चर्चा को उसी तरह देखना चाहिए, जिस प्रकार अन्य छोटी भाषाओं में बुलेटिन प्रसारित किए जाते हैं। पूर्वाेत्तर की भाषाओं से लेकर डोगरी तक ऐसी अनेक भाषाएं हैं जिनके दर्शकों-श्रोताओं का वर्ग बेहद सीमित है। फिर भी, इन भाषाओं में बुलेटिनों और कार्यक्रमों का प्रचारण होता है। संस्कृत के लोग इन बुलेटिनों के साथ स्वाभाविक तौर पर साहचर्य की अनुभूति करेंगे ही। हालांकि, एक बड़ी चुनौती प्रोफेशनल लोगों की उपलब्धता को लेकर आएगी क्योंकि जो लोग संस्कृत बोलते हैं वे मीडिया की समझ नहीं रखते और जिन्हें मीडिया की समझ है, उनमें अपवाद रूप में ही कोई ऐसा मिलेगा जो धाराप्रवाह संस्कृत बोल पाता है। वैसे, यह कमी एक-दो साल में पूरी हो जाएगी, क्योंकि दिल्ली की लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ समेत देश के कई संस्थान में संस्कृत पत्रकारिता की अकादमिक पढ़ाई आरंभ कर चुके हैं।