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मुंबई हमले के बाद हेडली के घर गए थे पाकिस्तानी पीएम गिलानी

एक सनसनीखेज खुलासे में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी डेविड कोलमेन हेडली ने आज मुंबई की एक अदालत को बताया कि मुंबई पर 26/11 आतंकी हमलों के कुछ सप्ताह बाद ही पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी उसके घर आए थे।
मुंबई हमले के बाद हेडली के घर गए थे पाकिस्तानी पीएम गिलानी

पाकिस्तानी मूल के इस अमेरिकी आतंकी ने अबु जंदल के खिलाफ चल रहे मामले की सुनवाई कर रही सत्र अदालत के विशेष न्यायाधीश जी.ए. सनाप को बताया, यह कहना सही नहीं होगा कि पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने मुंबई आतंकी हमले के एक माह बाद मेरे पिता के अंतिम संस्कार में शिरकत की थी। दरअसल, वह (गिलानी) इसके कुछ सप्ताह बाद हमारे (पाकिस्तान स्थित) घर आए थे।

लश्कर-ए-तैयबा का यह आतंकी इस मामले में गवाह बन गया है। अमेरिका में मौजूद हेडली से जंदल के वकील अब्दुल वहाब खान वीडियो लिंक के माध्यम से जिरह कर रहे हैं। जंदाल वर्ष 2008 के मुंबई हमलों का कथित प्रमुख साजिशकर्ता है। बुधवार को शुरू हुई जिरह के तीसरे दिन गवाही देते हुए हेडली ने कहा कि उसके पिता पाकिस्तान रेडियो में महानिदेशक थे और वह लश्कर के साथ उसके संबंधों के बारे में जानते थे। हेडली ने कहा, मेरे पिता लश्कर-ए-तैयबा के साथ मेरे जुड़ाव के बारे में जानते थे और वह इससे खुश नहीं थे।

जब उससे पूछा गया कि क्या यह सच है कि उसका सौतेला भाई डेनियल उसके लश्कर से संबंध के बारे में जानता था, तो हेडली ने सिर्फ इतना ही कहा कि वह (डेनियल) उसी शहर (पाकिस्तान के) में नहीं रह रहा था। नवंबर, 2008 में मुंबई पर किए गए हमलों के लिए अमेरिका में दोषी करार दिए गए हेडली ने इस बात से भी इंकार किया कि उसने मुंबई में कायराना हमलों से पहले पाकिस्तान यात्रा के दौरान डेनियल के फोन का इस्तेमाल किया था। इस समय हेडली अमेरिका में 35 साल की जेल की सजा काट रहा है।

अपनी गवाही में हेडली ने कहा, पाकिस्तान में मेरे दोस्त सौलत राणा को लश्कर-ए-तैयबा के साथ मेरे रिश्तों और 26/11 हमलों से पहले मेरी मुंबई यात्रा के बारे में पता था। उसने अदालत को बताया, राणा ने न तो कभी मुझपर आपत्ति जताई न ही कभी मुझे प्रोत्साहित ही किया। जब उससे पूछा गया कि क्या राणा लश्कर से जुड़ा था, तो हेडली ने कहा, नहीं। जब उससे पूछा गया कि क्या मुंबई हमलों से पहले उसने राणा के साथ पाकिस्तानी इलाकों का दौरा किया था तो उसने इंकार करते हुए हैरानी जताई कि जब निशाना भारत था तो वह पाकिस्तान में क्यों घूमेगा। हेडली ने अदालत को यह भी बताया कि उसे लश्कर में किसी महिला सेल या आत्मघाती सेल की जानकारी नहीं थी।

उसने इस बात से इंकार किया कि एनआईए ने उसे (मामले में) इशरत जहां का नाम लेने के लिए कहा। उसने इस साल फरवरी में दिए अपने बयान से पहले अमेरिका में विशेष सरकारी वकील उज्ज्वल निकम और संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) से मिलने की बात से भी इंकार किया। जब उससे पूछा गया कि क्या कभी उसका मानसिक रोग का इलाज किया गया, तो हेडली ने इंकार किया और साथ ही चुटकी लेते हुए कहा, ये क्या-क्या चीजें मेरे खाते में डाल रहे हैं वहाब साहब। नहीं, ऐसा कोई वाक्या नहीं हुआ।

हेडली ने अदालत को यह भी बताया कि बचपन से ही उसमें भारत और भारतीयों के प्रति नफरत पैदा हो गई थी और तब से ही वह ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाना चाहता था। जब उससे इस नफरत के पीछे की वजह पूछी गई तो उसने कहा, वर्ष 1971 में भारतीय विमानों ने मेरे स्कूल पर बम बरसाए थे। उस समय मुझमें यह भावना पैदा हो गई। उसने कहा कि हमले में लोग मारे गए थे। मेरे लश्कर ए तैयबा के साथ जुड़ने की वजहों में एक वजह यह भी थी। हेडली ने इस बात से इंकार किया है कि वह वर्ष 1988 से 2008 तक लगातार अमेरिकी जांच अधिकारियों के संपर्क में था।

उसने इन आरोपों से भी इंकार कर दिया कि अमेरिकी एजेंसियां उसे धन मुहैया करवा रही थीं। उसने कहा, यह बात कहना आधारहीन है कि मेरे पाकिस्तान जाने के बारे में अमेरिकी एजेंसियों को पता था। उसने यह भी कहा कि यह कहना भी गलत होगा कि 26/11 हमलों में उसकी भूमिका के चलते उसपर जुर्माने लगाने का आग्रह एफबीआई ने अमेरिकी अदालत में नहीं किया। उसने कहा, यह सच नहीं है। अदालत में जुर्मानों के लिए आग्रह करने का काम एफबीआई का नहीं है। उसने इस बात से भी इंकार किया कि उसने एफबीआई के साथ सांठ-गांठ करके जुर्माने के 30 लाख डॉलर बचा लिए...और इस वजह से एजेंसी ने मौत की सजा या उम्रकैद पर जोर नहीं दिया।

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