देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली, जो दस दिन की अमेरिका यात्रा पर हैं, उन्होंने यह संकेत दिए हैं कि भारतवासियों की अपेक्षाओं का ग्राफ बहुत ऊंचा है, लिहाजा उन्हें अमेरिका में निवेशकों से तगड़ी मदद चाहिए। उन्होंने जिस तरह से पिछली तिथि से प्रभावी निर्णयों पर अमेरिकी व्यवसायियों और निवेशकों की चिंता दूर करते हुए यह कहा कि ऐसा कोई भी फैसला मान्य नहीं होगा जो पिछली तारीख से लागू किया गया हो और नई देनदारी खड़ी करने वाला हो।
वित्त मंत्री के इश आश्वासन के गहरे निहितार्थ निकलते हैं। वह किसी भी तरह से अमेरिकी निवेशकों को यह भरोसा दिलाना चाहते है कि वोडाफोन वाले मामले में जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने पिछली तारीख से कंपनी की देनदारी तय की थी, वैसा कोई फैसला उनकी नरेंद्र मोदी सरकार को बर्दाश्त नहीं। इस मुद्दे पर अमेरिकी उद्योग जगत के सवालों पर उन्होंने स्पष्ट कहा, मुझे यह कहने में कोई दिक्कत नहीं है कि बहुत ही असाधारण परिस्थिति को छोड़कर कोई भी फैसला जो पिछली तारीख से है और खासतौर से जिससे नई देनदारी बनती है, वह स्वीकार्य नहीं होगा।
इस तरह से वह अगले 10 दिनों में अमेरिका में निवेशकों को आकर्षित करने के मिशन पर रहेंगे। सवाल यह भी है कि सि कंपनी ने अगर कर चोरी पहले की है तो क्या उसे वित्त मंत्री बचा पाएंगे। अगर बचा पाए भी तो क्या इससे अमेरिकी निवेशक आकर्षित हो जाएंगे। दरअसल, पिछले एक साल में अर्थव्यवस्था को जिस रफ्तार से बढ़ना था, उस रफ्तार से वि कास हुआ नहीं। निवेश भी नहीं आया। ऐसे में भारत कोनि वेश की सख्त जरूरत है। इसी कड़ी में वित्त मंत्री की अमेरिका यात्रा को देखा जा सकता है।
न्यूयॉर्क के टैंक काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के साथ चर्चा में उन्होंने यही राफ्ता बनाने की कोशिश की। वहां जेटली से एक कारोबारी ने पूछा हममें से कइयों ने जिन्होंने भारत में कारोबार किया है, उन्हें सरकार या आरबीआई द्वारा पिछली तारीख से बदले गए कुछ निवेश नियमों का सामना करना पड़ा है। इस समय विदेशी निवेश के लिए बढते मौकों की भावना के बीच मैं चाहूंगा कि आप पिछली तारीख से नियमों में बदलाव के दर्शन के बारे में बताएं क्यों कि इसके कारण कारोबार में गारंटी लेना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।