कांग्रेस के सदस्य और भारत एवं भारतीय अमेरिकियों से जुड़ी कांग्रेशनल कॉकस के सह संस्थापक फ्रैंक पालोने तथा कांग्रेस में एक मात्र भारतीय अमेरिकी और भारत एवं भारतीय अमेरिकियों पर कांग्रेशनल कॉकस के मौजूदा सह अध्यक्ष अमी बेरा ने सदन में कल यह प्रस्ताव पेश किया।
भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसका ओबामा प्रशासन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन किया है। पालोने ने सदन में विधेयक पेश करने के बाद एक बयान में कहा, जब अंतरराष्ट्रीय समय को पुनर्परिभाषित किया जा रहा है, तो हमें ऐसे में हमारे स्थायी बुनियादी लक्ष्यों को साझा करने वाले देशों को सशक्त बनाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ऐसी सुरक्षा परिषद होना अमेरिका और दुनिया के हित में है जिसके सदस्य लोकतंत्र एवं बहुलवाद के समर्थन में हों और दुष्ट राष्ट्रों एवं आतंकवादी समूहों से पैदा होने वाले खतरे से निपटने के लिए सैन्य ताकत को एकजुट करते हैं।
पालोने एवं बेरा ने कांग्रेस के संयुक्त सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के दौरान अमेरिका और भारत के बीच संबंधों को मजबूत करने के आह्वान के लिए उनकी प्रशंसा की थी। मोदी के भाषण के मद्देनजर उन्हें सदन के चैंबर में लाने के लिए उनकी अगवानी करने वाली समिति में बेरा के साथ शामिल पालोने ने कहा, मैं प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान उनसे मिलकर सम्मानित महसूस कर रहा हूं और मैं दोनों देशों के बीच संबंधों एवं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पर भारत की ओर से पड़ सकने वाले सकारात्मक प्रभाव को लेकर पहले से और भी अधिक प्रतिबद्ध हूं।
बेरा ने कहा, विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र और विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते अमेरिका और भारत के मूल्य साझे हैं और उनके बीच सभी मोर्चों, खासकर रक्षा सहयोग के मोर्चे पर साझेदारी बढ़ रही है। उन्होंने कहा, भारत अमेरिका के रणनीतिक साझेदार एवं दक्षिण एशिया में स्थिरता के स्तंभ के रूप में अहम भूमिका निभाता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता मिलना भारत और अमेरिका के लिए लाभप्रद होगा और इससे विश्वभर में लोकतंत्र मजबूत होगा।
पालोने एवं बेरा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अब भी उसी दौर की दुनिया को प्रतिबिंबित करती है जब 1945 में संयुक्त राष्ट्र का गठन हुआ था। संयुक्त राष्ट्र की जब शुरूआत हुई थी, उस समय उसके 51 सदस्य थे, अब इसके करीब 200 सदस्य हैं। इस तथ्य के बावजूद सुरक्षा परिषद इन नाटकीय बदलावों को प्रतिबिंबित करने के मकसद से विकसित नहीं हुई है। इस समय परिषद के अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन एवं फ्रांस पांच स्थायी सदस्य हैं। यह प्रस्ताव अमेरिकी कांग्रेस की भावना को केवल प्रतिबिंबित करता है और इसका ओबामा प्रशासन पर कोई विधायी प्रभाव नहीं है।