ट्रंप ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र लोकतंत्र एवं स्वतंत्रता का मित्र नहीं है और अमेरिका का राष्ट्रपति बनने पर वह इस्राइल को अपना पूरा समर्थन देंगे। यही नहीं वह संयुक्त राष्ट्र के किसी भी पश्चिम एशिया शांति समझौते पर वीटो का इस्तेमाल करेंगे। ट्रंप ने शक्तिशाली अमेरिकी इस्राइली राजनीतिक कार्य समिति (एआईपीएसी) के वार्षिक सम्मेलन को कल संबोधित करते हुए दावा किया कि यह राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल का आखिरी वर्ष है, ऐसे में इस्राइल और फलस्तीन के बीच एक अंतिम समझौते की शर्तों पर सुरक्षा परिषद प्रस्ताव को लाने की कोशिशों पर वार्ताएं चल रही हैं।
ट्रंप ने दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कहा, मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि संयुक्त राष्ट्र की ओर से लागू समझौता पूर्णत: विनाशकारी होगा। अमेरिका को इस प्रस्ताव का विरोध करना चाहिए और अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए। क्यों? क्योंकि यह समझौता करने का तरीका नहीं है। रियल एस्टेट दिग्गज ने अमेरिका-इस्राइल संबंध पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए संकल्प लिया कि वह अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने पर ईरान के कथित वैश्विक आतंकवादी नेटवर्क को नष्ट करने और उसे परमाणु हथियार प्राप्त करने से रोकने की दिशा में काम करेंगे। उन्होंने कहा, मेरी पहली प्राथमिकता ईरान के साथ विनाशकारी समझौते को समाप्त करना है। मैं लंबे समय से व्यापार कर रहा हूं। मुझे पता है कि सौदा कैसे किया जाता है और मैं यह बताना चाहता हूं कि यह समझौता अमेरिका, इस्राइल और पश्चिम एशिया के लिए विनाशकारी है।
ट्रंप ने कहा, यह मौलिक समस्या है। हमने विश्व में आतंकवाद के प्रमुख सरकारी प्रायोजक को 150 अरब डॉलर का पुरस्कार दिया है और हमें बदले में कुछ भी नहीं मिला। उन्होंने आरोप लगाया कि ईरान के साथ हाल में किए गए परमाणु समझौते के तहत ईरान के लिए उसकी सैन्य परमाणु क्षमता को समाप्त करना अनिवार्य नहीं है। यह समझौता केवल निश्चित वर्षों के लिए उसके सैन्य परमाणु कार्यक्रम को सीमित करता है। ट्रंप ने कहा, पहली बात यह है कि हम क्षेत्र को अस्थिर बनाने और उस पर हावी होने की ईरान की आक्रामक कोशिश के खिलाफ खड़े होंगे। ईरान बड़ी समस्या है और बना रहेगा लेकिन यदि मैं राष्ट्रपति बनता हूं तो मुझे पता है कि इस समस्या से कैसे निपटना है। उन्होंने कहा, दूसरी बात यह है, हम ईरान के आतंकवाद के वैश्विक नेटवर्क को पूरी तरह तहस-नहस कर देंगे। ईरान ने पूरे विश्व में आतंकवादी समूहों के बीज बोए हैं। तीसरी बात यह है, कि हमें, कम से कम, पूर्ववर्ती समझौते की शर्तों को फिर से तय करके ईरान को जवाबदेह बनाना चाहिए।