तिब्बत की निर्वासित सरकार और चीन के बीच पर्दे के पीछे बातचीत चल रही है, जो इस बात का संकेत है कि दोनों पक्षों के बीच करीब एक दशक से अधिक समय से बंद संवाद प्रक्रिया फिर से शुरू हो सकती है। तिब्बत में चीन विरोधी प्रदर्शनों और बीजिंग के बौद्ध धर्म के प्रति कट्टर दृष्टिकोण के कारण दोनों पक्षों के बीच औपचारिक वार्ता प्रक्रिया पर पूर्ण विराम लग गया था।
तिब्बत सरकार के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने संकेत दिया कि पर्दे के पीछे चल रही बातचीत का उद्देश्य समग्र वार्ता प्रक्रिया को बहाल करना है क्योंकि तिब्बती मुद्दे को हल करने का यही एकमात्र तरीका है। सीटीए नेता ने 2020 में पूर्वी लद्दाख विवाद के बाद नयी दिल्ली और बीजिंग के बीच खराब हुए संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ ने भारत में तिब्बत के मुद्दे को प्रमुखता से रखा है।
उन्होंने कहा, '' सीमा पर चीनी घुसपैठ के साथ ही तिब्बत का मुद्दा भी स्वाभाविक रूप से भारत में उजागर हो गया है।'' त्सेरिंग ने तिब्बत के मुद्दे को लेकर भारत से मिल रहे अधिक समर्थन पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, ''आप देख सकते हैं कि भारत की विदेश नीति अब अधिक जीवंत हो रही है। दुनिया भर में भारत का प्रभाव भी बढ़ रहा है। इस लिहाज से हम निश्चित रूप से चाहेंगे कि भारत तिब्बत के मुद्दे के प्रति थोड़ा और मुखर हो।''
वर्ष 1959 में चीन के खिलाफ आंदोलन असफल होने के बाद 14वें दलाई लामा तिब्बत से भागकर भारत आ गए और उन्होंने यहां से निर्वासित सरकार की स्थापना की। चीन की सरकार के अधिकारियों और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के बीच 2010 के बाद से कोई औपचारिक वार्ता नहीं हुई है।