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कौन हैं एर्दोगन, जिन्हें दूसरी बार चुना गया तुर्की का राष्ट्रपति

तुर्की की जनता ने एक बार फिर रेसेप तैयप एर्दोगन को अपना राष्ट्रपति चुन लिया है। तुर्की में रविवार (24...
कौन हैं एर्दोगन, जिन्हें दूसरी बार चुना गया तुर्की का राष्ट्रपति

तुर्की की जनता ने एक बार फिर रेसेप तैयप एर्दोगन को अपना राष्ट्रपति चुन लिया है। तुर्की में रविवार (24 जून) को हुए राष्ट्रपति चुनाव में एर्दोगन की एके पार्टी को 50 फिसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। पिछले करीब दो साल से इमेरजेंसी झेल रहे तुर्की की जनता ने फिर से एर्दोगन पर ही विश्वास जताते हुए, उन्हें दूसरी बार अपना राष्ट्रपति चुन लिया है। स्टेट मीडिया के मुताबिक, 99 फिसदी वोट काउंट हो चुके हैं, जिसमें एर्दोगन की पार्टी को सबसे ज्यादा 53 फिसदी वोट मिले हैं। वहीं, उनके प्रतिद्वंदी मुहर्रम इंजे को 31 फिसदी वोट मिले हैं। जीत के बाद सुबह 3 बजे 64 वर्षीय एर्दोगन अपने घर की बाल्कनी में बाहर आए और विक्ट्री स्पीच देते हुए कहा कि यह जीत मेरे 81 मिलियन जनता की जीत हैं।

ये चुनाव नवंबर 2019 में होने थे लेकिन एर्दोगन ने अचानक समय से पहले चुनाव कराने की घोषणा कर दी थी। इसी बीच सीरिया से लगने वाले उर्फा प्रांत में चुनाव पर्यवेक्षकों को डराए जाने और मतदान में धांधली की रिपोर्टें आई हैं। तुर्की के चुनाव आयोग का कहना है कि वो इन रिपोर्टों की जांच कर रहा है।

एर्दोगन को सबसे ज्यादा 52.5 फीसदी वोट

सोशलिस्ट और रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (CHP) के उम्मीदवार मुहर्रम इंजे ने अपनी हार मान ली है। तुर्की राष्ट्पति चुनाव में कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे। एर्दोगन को सबसे ज्यादा 52.5 फिसदी वोट मिले हैं, उसके बाद इंजे को 30.7 फिसदी, देमिर्तास को 8.4 फिसदी और एक्सेनर को 7.3 फिसदी ने लोगों ने वोट किया। उधर विपक्षी पार्टियों ने हार को स्वीकार करते हुए कहा है कि वे तुर्की में लोकतांत्रिक मुल्यों के लिए अपनी लड़ाई को जारी रखेंगे।

कौन हैं एर्दोगन?

11 साल तक तुर्की के प्रधानमंत्री रहे रेसेप तैयप एर्दोगन पहली बार 2014 में राष्ट्रपति बने थे। अब 2023 तक एर्दोगन तुर्की के राष्ट्रपति बने रहेंगे। उन्होंने 2003 से 2014 तक प्रधान मंत्री के रूप में और 1994 से 1998 तक इस्तांबुल के मेयर के रूप में कार्य किया। उन्होंने न्याय और विकास की स्थापना की पार्टी (एकेपी) 2001 में बनाई। इस्लामवादी राजनीतिक पृष्ठभूमि से और एक रूढ़िवादी लोकतांत्रिक के रूप में उन्होंने सामाजिक रूढ़िवाद को बढ़ावा दिया है और उनके प्रशासन में उदार आर्थिक नीतियां अपनाई गई हैं।

इस जीत के बाद एर्दोगन अब और ज्यादा ताकतवर हो जाएंगे। एर्दोगन के शासन में अब सरकारी अधिकारियों, मंत्रियों और उप-राष्ट्रपति की सीधी नियुक्ति होगी। एर्दोगन ना सिर्फ अपने मुल्क के कानून सिस्टम में दखल देंगे, बल्कि उनके पास तुर्की में आपातकाल लगाने की भी शक्ति होगी। अपनी जीत के बाद एर्दोगन देश के प्रधानमंत्री की शक्तियों को भी कम कर देंगे। आलोचकों का मानना है कि इस जीत के बाद एर्दोगन के पास कई अभूतपूर्व शक्तियां होगी।

एर्दोगन की चुनौतियां पिछले करीब दो साल से आपातकाल को झेल रहा तुर्की की इकनॉमी को बहुत नुकसान हुआ है। इस चुनाव में भी देश की इकनॉमी को फिर से पटरी पर लाने के लिए जोर-शोर से आवाजें उठी। महंगाई से पार पाना तुर्की के राष्ट्रपति के लिए सबसे बड़ी चिंता में से एक है। वहीं, कुर्दिश आतंकियों के हमले झेल रहा तुर्की के लिए आतंकवाद भी सिरदर्द बना हुआ है। सीरिया में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों से लड़ना और शरणार्थियों को वापस भेजना एर्दोगन की सबसे बड़ी चुनौती में से एक है।

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