इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने गुरुवार को म्यांमार को रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार को रोकने के लिए सभी उपाय करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा, 'म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ किए गए नरसंहार के आरोपों पर फैसला देने के लिए वह प्रथम दृष्टया अधिकार क्षेत्र है और उसका आदेश बाध्यकारी है।'
कोर्ट के अध्यक्ष जस्टिस अब्दुलकवी अहमद यूसुफ ने कहा कि उसकी राय में "म्यांमार में रोहिंग्या का मामला संवेदनशील है।" जजों ने म्यांमार को चार महीने में आईसीजे को रिपोर्ट देने का आदेश देते हुए कहा कि जेनोसाइड कन्वेंशन के तहत तय कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए, म्यांमार को रोहिंग्या का नरसंहार रोकने के लिए हर तरह के उपाय करने चाहिए। म्यांमार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी सेना और राज्य का कोई भी सशस्त्र समूह रोहिंग्या का नरसंहार न करे।
सबूत रोकने के लिए उठाए जाएं कदम
कोर्ट ने कहा क म्यांमार को रोहिंग्याओं के खिलाफ कथित नरसंहारों के सबूतों को नष्ट करने की कार्रवाइयों को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। म्यांमार को आईसीजे द्वारा दिए गए आदेश के तहत तय किए गए अनंतिम उपायों के अनुपालन में रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए।
विद्रोही समूह अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) से जुड़े विद्रोहियों द्वारा सशस्त्र हमलों के कारण करीब 800,000 रोहिंग्या का पड़ोसी बांग्लादेश में पलायन हुआ। संयुक्त राष्ट्र के फैक्ट फाइंडिंग मिशन समेत कई स्वतंत्र संस्थाओं ने अपने अध्ययन में रोहिंग्या के साथ म्यांमार की सेना के अत्याचार की पुष्टि की। कुछ ने कहा है कि रखाइन में रोहिंग्या मुस्लिमों के नरसंहार की जांच होनी चाहिए।
गांबिया ने उठाया था मुद्दा
रोहिंग्या मुस्लिमों पर म्यांमार के सुरक्षाबल और सेना के अत्याचार का मुद्दा इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में दक्षिण अफ्रीकी मुस्लिम बहुल्य देश गांबिया ने उठाया था। उसने 12 अन्य मुस्लिम देशों के साथ मिलकर इसे आईसीजे के समक्ष रखा था। नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की ने आईसीजे में म्यांमार का पक्ष रखा था।