संयुक्त राष्ट्र में येरूशलम के मुद्दे पर अमेरिका को मुंह की खानी पड़ी। 128 देशों ने उस प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया जिसमें अमेरिका से येरूशलम पर अपने ताजा फैसले को वापस लेने की मांग की गई है। इन देशों में भारत भी शामिल है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इस तरह के प्रस्ताव का समर्थन किया हो। पर हाल के दिनों में इजरायल और अमेरिका के साथ रिश्तों में गर्माहट के बावजूद भारत का फलस्तीन के साथ जाना चौंकाता जरूर है।
केंद्र की मोदी सरकार के इस फैसले से भाजपा के भी कई नेता इत्तेफाक नहीं रखते। संयुक्त राष्ट्र में मतदान से पहले राज्यसभा सांसद स्वप्न दासगुप्ता ने ट्वीट कर कहा था, ''भारत को या तो मतदान से गैर-हाजिर रहना चाहिए या फिर संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव का विरोध करना चाहिए जिसमें अमेरिककिि दूतावास को यरूशलम ले जाने के फ़ैसले की आलोचना की गई है। हमें इजरायल के साथ खड़ा रहना चाहिए। वो हमारा दोस्त है।'' मतदान के बाद भाजपा के एक और नेता व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया, ''भारत ने अमेरिका और इजरायल के साथ वोट ना कर बहुत बड़ी ग़लती की है।''
Indiashould either have abstained or voted against the UN resolution condemning the shifting of US embassy to Jerusalem. We should stand by Israel, a firm friend.
— Swapan Dasgupta (@swapan55) December 21, 2017
भारत के रुख को लेकर कई मुस्लिम देशों में भी बेचैनी थी। मतदान से पहले भारत ने इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। कई मुस्लिम देशों के राजदूतों ने भारत सरकार से अपना रुख साफ करने की भी मांग की थी। जानकारों की माने तो भारत शुरुआत से ही इजरायल और फलस्तीन के बीच संतुलन बनाकर चलने की कोशिश करता रहा है। हाल के दिनों में वह इजरायल के करीब नजर आने लगा था। पर संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन के साथ खड़ा होकर उसने फिर से संतुलन बनाने के संकेत दिए हैं। इजरायल के साथ भारत की बढ़ती करीबी से सऊदी अरब और कतर जैसे मुस्लिम देशों में पैदा हुई चिंता को भी इस फैसले से दूर करने में मदद मिलेगी।
India has made a huge mistake by not voting with US and Israel on US decision to choose West Jerusalem as location for its Embassy. At present UN holds holy city of Jews as partitioned. West Jerusalem is Israel's. Hence Embassy can be there
— Subramanian Swamy (@Swamy39) December 22, 2017
गौरतलब है कि अमेरिका की सहायता में कटौती की चेतावनी के बावजूद भारत ने यरूशलम को राजधानी के रूप में मान्यता देने के वाशिंगटन के फैसले के खिलाफ मुस्लिम जगत और यूरोपीय ताकतों के साथ खड़े होने का फैसला किया था। अमेरिका के साथ इजरायल के अलावा ग्वाटेमाला, होंडुरास, मार्शल आइलैंड्स, मिक्रोनेशिया, नाउरु, पलाउ और टोगो ही खड़े थे। अमेरिका के पश्चिमी सहयोगियों के साथ ही अरब देशों ने भी उसके खिलाफ जाने का फैसला किया। इनमें मिस्र, जॉर्डन और इराक जैसे देश भी शामिल हैं जिन्हें अमेरिका से हर साल भारी रकम सहायता में मिलती है। 21 देश मतदान के दौरान अनुपस्थित रहे।
मतदान के बाद संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने चेताते हुए कहा,"अमेरिका इस दिन को याद रखेगा जब आमसभा में उसे अपने संप्रभु राष्ट्र के अधिकार का उपयोग करने के लिए अकेला छोड़ दिया गया। हम इसे तब याद रखेंगे जब हमसे फिर संयुक्त राष्ट्र के लिए सबसे ज्यादा सहयोग देने की बात होगी और तब भी जब बहुत सारे देश हम से और ज्यादा पैसा देने या अपने प्रभाव का इस्तेमाल उनके फायदे के लिए करने को कहेंगे।" हालांकि अमेरिका के रुख से उसके सहयोगी भी सहमत नजर नहीं आ रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इनैन्युएल मैक्रोन ने कहा है कि यरूशलम को इजरायली राजधानी के तौर पर मान्यता देने की एकतरफा कार्रवाई कर अमेरिका ने खुद को संयुक्त राष्ट्र में अलग-थलग किया है।