इन गैसों के बदले पर्यावरण अनुकूल विकल्पों का उपयोग किया जाएगा। गर्मी को सोखने वाले कार्बनिक यौगिक एचएफसीज यानी हाइड्रोफ्लूरोकार्बनंस सुपर ग्रीनहाउस गैसें हैं। इनका इस्तेमाल पूरी दुनिया में चीजों को ठंडा रखने यानी रेफ्रिजेनरेशन और शीत-ताप नियंत्रण (एयरकंडिशनिंग) के लिए किया जाता है। ये गैसें धरती को नुकसानदेह किरणों से रक्षा करने के लिए वायुमंडल में छतरी के रूप में काम करने वाली ओजोन परत को बर्बाद करने का काम करती हैं।
'पार्टीज टू द 1989 मांट्रियल प्रोटाकॉल ऑन सब्स्टेंसेज दैट डिप्लीट द ओजोन लेयर' के कार्यक्रम के चौथे दिन समझौते पर बातचीत के बाद अंतत: एचएफसीज का इस्तेमाल खत्म करने पर समझौता हुआ। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रमुख इरिक सोलहेम ने कहा, "पिछले साल पेरिस में हम लोगों ने जलवायु परिवर्तन कुप्रभावों से सुरक्षित रखने का वादा किया था। हमलोग इस वादे के जरिए उस पर अमल कर रहे हैं।"
इस करार के मुताबिक, विकसित देशों ने वर्ष 2019 से शुरू होने वाली कटौती के लिए आधार वर्ष के रूप में 2011-2013 को रखा है। वहीं विकासशील देशों के दो उप समूह हैं और दोनों के अलग-अलग आधार वर्ष हैं। इनमें एक समूह भारत, पाकिस्तान, ईरान और इराक का है जिनका आधार वर्ष 2024-2026 है और पूरी तरह से बंद करने की समय सीमा 2028 है।
सोलहेम ने कहा, यह ओजोन के लेयर और एचएफसीज से बहुत अधिक है। यह दुनिया के सभी नेताओं का हरित बदलाव का स्पष्ट बयान है। यह अपरिवर्तनीय है और रुकने वाला नहीं है। यह दिखाता है कि सबसे अच्छा निवेश स्वच्छ व प्रभावी प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहा है। शेष विकाशील देशों ने इसके लिए आधार वर्ष 2020-2022 रखा है और वे इनका इस्तेमाल 2024 तक पूरी तरह से बंद कर देंगे। इस तरह से एचएफसीज का इस्तेमाल बंद करने के कार्यक्रम तय करने करीब 70 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन से बचा जा सकेगा। इसे 750 कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के बंद करने के बराबर माना जा सकता है या इसे यह भी कह सकते हैं चीन के कोयला आधारित आधे बिजली संयंत्र बंद हो जाएं।