प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान 41 साल से लटक रहे जमीनी सीमा समझौते को अंतिम रूप दिया जाएगा। एक-दूसरे देश में आवागमन आसान बनाने के लिए दो नए रूट पर बस सेवाओं को हरी झंडी दी जाएगी। ये रूट कोलकाता-ढाका-अगरतला और ढाका-गुवाहाटी-शिलॉन्ग होंगे। इस दौरान मोदी के साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मौजूद रहेंगी।
इस दौरे में दक्षिण एशिया के चार देशों (बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल) को सड़क के रास्ते जोड़ने पर भी बातचीत होगी। इस रास्ते से चारों देश अपने उत्पादों का आयात-निर्यात ट्रकों के जरिये कर सकेंगे। दोनों देश सुरक्षा को बढ़ाने, खास कर पूर्वोत्तर के उग्रवादी समूहों को पड़ोसी देश में शरण लेने से रोकने के उपाय तलाशने पर विचार करेंगे। बीते माह के शुरू में संसद ने ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक पारित किया था, जिसका मकसद बांग्लादेश के साथ 41 साल से चल रहे सीमा मुद्दे का हल करना है।
समझौते
इस दौरे में रेल, सड़क और जल संपर्क को बढ़ाना और आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा देना प्राथमिकता होगी और इन क्षेत्रों में कई समझौते किए जाने की उम्मीद है। दोनों देश रेल संपर्क मजबूत करना चाहते हैं। खासकर उस रेलवे लिंक को जो 1965 के पहले तक वजूद में था। वे भारत से छोटे जहाजों के बांग्लादेश में विभिन्न बंदरगाहों तक आने जाने का रास्ता खोलने के लिए एक तटीय जहाजरानी समझौता भी करेंगे। भारत बांग्लादेश में बंदरगाह बनाने के लिए भारतीय कंपनियों की भागीदारी के लिए बातचीत करेगा। इसके अलावा बांग्लादेश को डीजल की आपूर्ति करने के लिए एक समझौते को भी अंतिम रूप देकर उस पर हस्ताक्षर किए जाएंगे।
तीस्ता जल बंटवारे पर समझौता नहीं
भारत पहले ही घोषणा कर चुका है कि इस यात्रा के दौरान बांग्लादेश के साथ लंबित तीस्ता जल बंटवारा समझौते पर हस्ताक्षर नहीं होगा। हालांकि, जलमार्गों और अन्य नदियों के जल के बंटवारे संबंधी मुद्दे पर वार्ता हो सकती है। सितंबर 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा के दौरान तीस्ता समझौता किया जाना था, लेकिन ममता बनर्जी के एतराज के बाद अंतिम समय में इसे टाल दिया गया। बनर्जी उस वक्त प्रधानमंत्री के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा नहीं बनीं थीं।