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दुनिया के सबसे बड़े एयरक्राफ्ट ने पहली बार उड़ान भरी

थोड़े से हेलिकॉप्टर, थोड़े से प्लेन और थोड़े से एयरशिप को मिलाकर बनाए गए एयरलैंडर ने बेडफोर्डशायर (कार्डिंगटन) से पहली बार उड़ान भरी। इस एयरलैंडर की मूल कल्पना अमेरिका की थी। अमेरिका इसका इस्तेमाल अफगानिस्तान में अपने सैनिकों तक साजो सामान पहुंचाने के लिए अतिरिक्त जहाज के रूप में करना चाहता था, लेकिन 2012 में रक्षा बजट कम होने के चलते यह प्रोजेक्ट रोक दिया गया।
दुनिया के सबसे बड़े एयरक्राफ्ट ने पहली बार उड़ान भरी

बाद में एक ब्रिटिश कंपनी ने इसे एयरलैंडर के रूप में विकसित किया और इसे आम लोगों के इस्तेमाल लायक बनाया है। एयरलैंडर 4,000 फीट की ऊंचाई पर 148 किमी प्रति घंटा की रफ्तार उड़ सकता है। इसकी लागत 2.18 अरब रुपए आई है। एयरलैंडर मौजूदा सबसे बड़े विमान (एयरबस 380) से 50 फीट बड़ा है। एयरलैंडर की मदद से सर्वे या अन्य शोध के लिए लगातार कई दिन तक हवा में रहा जा सकता है।

सैन्य के साथ ही पर्यटन के लिए भी इसका इस्तेमाल हो सकता है। इसका कार्गो और पैसेंजर फ्लाइट में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। एयरलैंडर एक बार में करीब 10 हजार टन वजन ढो सकता है। यह हेलिकॉप्टर की तरह एक ही जगह से उड़ान भर सकता है।

अधिकांश सतहों से यह उड़ान भर सकता है और लैंड कर सकता है। यह अत्यधिक ठंडे या गर्म मौसम में भी आसानी से उड़ान भर सकता है। वैसे यह 20 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है। हालांकि परीक्षण के दौरान यह अधिकतम 4 हजार फीट ऊंचाई तक गया। यह एक साथ 48 लोगों को आराम से सफर करवा सकता है।

यह दो हफ्तों तक हवा में टिक सकता है। यह कम शोर करता है, कम प्रदूषण फैलाता है। कार्बन उत्सर्जन भी इसका कम है। हीलियम गैस भरी होने में यह भीतर से सख्त हो जाता है। इसमें भीतर कोई ढांचा नहीं बनाया गया है। इसलिए आसानी से घूमा-फिरा जा सकता है। जिन स्थानों पर विमान नहीं उतर सकता, यह उन स्थानों पर भी आसानी से पहुंच सकता है।

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