संयुक्त राष्ट्र से एशिया दलित राइट्स फोरम ने आज न्यूयॉर्क में यह मांग कि जाति आधारित भेदभाव को विकास को पीछे ढकेलने वाले कारक के रूप में पहचाना जाए। संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसम्बली में 22 से 25 जून तक चलने वाली अंतर देशीय वार्ता के अंतिम मसौदे में जाति के पहलू को शामिल करने की मांग जोर-शोर से उठाई गई।
2015 के बाद सतत विकास लक्ष्य (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल) में जाति, जन्मआधारित और काम पर आधारित भेदभाव के खात्मे को शामिल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर दलित संगठन दबाव बना रहे हैं। इसी क्रम में यह बयान एशिया दलित राइट्स फोरम ने आज कोलंबो, ढाका, इस्लामाबाद, काठमांठु और न्यूयॉर्क में एकसाथ जारी किया। एडीआरएफ के चेयरमैन पॉल दिवाकर ने न्यूयॉर्क से फोन पर आउटलुक को बताया कि संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य के लिए चल रही वार्ता में जो मसौदा तैयार हो रहा है उसमें सात संशोधन फोरम की तरह से पेश किए गए हैं, जो भेदभाव के खात्में के लिए बेहद जरूरी है।
इन संशोधनों में, सबके लिए मानवाधिकार, स्तरीय शिक्षा, सबका सशक्तिकरण, विकास के आकंड़ों की जाति आधारित विवेचना, सुशासन औऱ वित्तीय मामलों के हर चरण में सबको समाहित करने को अनिवार्य बनाने जैसे कई सुझाव शामिल हैं। पॉल दिवाकर के अनुसार सतत विकास लक्ष्यों को तब तक नहीं हासिल किया जा सकता, जब तक दलित और काम के आधारित पर भेदभाव का शिकार बनाए गए लोगों के लिए खास प्रयास न किए जाए। चूंकि यह मसौदा तैयार हो रहा है, इसलिए हम इसमें इन तमाम बातों को शामिल कराना चाह रहे हैं।
इस फोरम के बयान के अनुसार दुनिया भर के 26 करोड़ दलितों को तब तक न्याय नहीं मिल सकता, जब तक जाति आधारित भेदभाव को संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य और उद्देश्य के दस्तावेजों में जगह नहीं दी जाती। दलितों और परंपरागत रूप से हाशिए पर डाले गए समुदायों को, सरकारों तथा विकास के तमाम भागीदारों द्वारा, विकास की प्रक्रिया में जब तक बराबर की शिरकत का अवसर नहीं दिया जाएगा, सतत विकास का 2015 के बाद का लक्ष्य अधूरा रहेगा।