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सिंगापुर के राष्ट्रपति थर्मन शन्मुगरत्नम ने भारत को सराहा, कहा- हम नए युग का निर्माण करने को तैयार

सिंगापुर के राष्ट्रपति थर्मन शणमुगारत्नम ने बृहस्पतिवार को कहा कि दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं...
सिंगापुर के राष्ट्रपति थर्मन शन्मुगरत्नम ने भारत को सराहा, कहा- हम नए युग का निर्माण करने को तैयार

सिंगापुर के राष्ट्रपति थर्मन शणमुगारत्नम ने बृहस्पतिवार को कहा कि दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में औद्योगिक नीतियों के पुनरुत्थान के बावजूद भारत और दक्षिण पूर्व एशिया अवसर, समानता और स्थिरता के नए दौर के लिए अच्छी तरह से तैयार हैं।

सिंगापुर राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के थिंक टैंक माने जाने वाले दक्षिण एशियाई अध्ययन संस्थान (आईएसएएस) की 20वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित रात्रिभोज समारोह के दौरान थर्मन शणमुगारत्नम ने कहा कि अन्य जिम्मेदार शक्तियों के साथ काम करते हुए दोनों देशों में बहुपक्षवाद को मजबूत करने की क्षमता है और अपनी खामियों के बावजूद यह एक ऐसी व्यवस्था रही है, जिसने दशकों से अमीर और गरीब दोनों देशों की अच्छी तरह से सेवा की है। थर्मन ने यह उम्मीद जताई कि सिंगापुर और भारत के संबंध निरंतर आगे बढ़ते रहेंगे।

सिंगापुर के राष्ट्रपति ने कहा कि घरेलू स्तर पर खास उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कर छूट और सब्सिडी जैसी औद्योगिक नीतियां उस दर पर लौट रही हैं जो 1960 और 1970 के दशक के बाद से नहीं देखी गई थी, हालांकि तब ये नीतियां काफी हद तक विफल रही थीं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2023 में 2,500 औद्योगिक नीति हस्तक्षेपों की सूची बनाई है, जिनमें से दो-तिहाई का उद्देश्य विदेशी हितों के प्रतिकूल था।

थर्मन ने दक्षिण एशिया के साथ सिंगापुर के कूटनीतिक-वाणिज्य संबंधों का विश्लेषण करने वाले तथा भारत को निवेश के लिए एक बड़े स्थान और उपभोक्ता-संचालित बाजार के तौर पर मानने वाले लगभग 180 अतिथियों से कहा कि सरकारों द्वारा इस तरह के हस्तक्षेप किसी शक्तिशाली नए साक्ष्य या समृद्धि लाने वाले कारकों के पुनर्मूल्यांकन के कारण नहीं किए जा रहे हैं, बल्कि ‘बहिष्कार और प्रतिशोधात्मक कार्रवाइयों के माध्यम से’ किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसका परिणाम एक ऐसी दुनिया है जहां प्रतिस्पर्धा अस्थिर है, तथा व्यापार और निवेश का वातावरण परिवर्तनशील और अप्रत्याशित है।

थर्मन शणमुगारत्नम ने कहा कि भारत और सिंगापुर के पास वैश्विक वास्तविकता का जवाब देने और उसे इस तरह से आकार देने की क्षमता है, जिससे राष्ट्रीय हित और वैश्विक कल्याण दोनों सुरक्षित रहें।

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