भारत अपनी ही एक कंपनी द्वारा ईरान में खोजे गए एक बड़े खनिज गैस क्षेत्र के विकास और गैस-निकासी की लंबे से समय से अटकी परियोजना से वंचित होने जा रहा है। सूत्रों ने यह जानकारी दी।
सूत्रों के अनुसार ईरान ने फारस की खड़ी की फरजाद-बी परियोजना का काम अपनी घरेलू कंपनियों को देने का निर्णय किया है। ईरान इस समय सख्त अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों से जूझ रहा है। ओएनजीसी विदेश लि. (ओवीएल) के नेतृत्व में भारतीय कंपनियों का एक समूह परियोजना पर अब तक 40 करोड़ डॉलर खर्च कर चुका है।
फरजाद-बी ब्लॉक में गैस के विशाल भंडार की खोज 2008 में भारतीय कंपनी ओएनजीसी विदेश लि (ओवीएल) ने की थी। ओवीएल सरकारी कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) की अनुषंगी है। ओएनजीसी ने इसे विदेशी परियोजनाओं में निवेश करने के लिए बनाया है।
ओवीएल ने ईरान के इस गैस क्षेत्र के विकास पर 11 अरब डॉलर खर्च करने की योजना बनायी थी।
ओवीएल के प्रस्ताव पर ईरान वर्षों तक कोई निर्णय नहीं किया।
जानकार सूत्रों के अनुसार ईरान की नेशनल ईरानियन ऑयल कंपनी (एनआईओसी) ने इस साल फरवरी में कंपनी को बताया कि वह फरजाद-बी परियोजना का ठेका किसी ईरानी कंपनी को देना चाहती है।
उस फील्ड में 21,700 अरब घनफुट गैस का भंडार है। इसका 60 प्रतिशत निकाला जा सकता है। परियोजना से रोज 1.1 अरब घन फुट गैस प्राप्त की जा सकती है।
ओवीएल इस परियोजना के परिचालन में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी की इच्छुक थी। उसके साथ इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) और ऑयल इंडिया लि (ओआईएल) भी शामिल थीं। ये दोनों क्रमश: 40 और 20 प्रतिशत की हिस्सेदार थीं।
ओवीएल ने गैस खोज सेवा के लिए अंनुबंध 25 दिसंबर, 2002 को किया था।
ईरान की राष्ट्रीय कंपनी ने इस परियोजना को अगस्त, 2008 में वाणिज्यिक तौर पर व्यावहारिक घोषित किया। ओवीएल ने अप्रैल, 2011 में इस गैस फील्ड के विकास का प्रस्ताव ईरान सरकार द्वारा अधिकृत वहां की राष्ट्रीय कंपनी एनआईओसी के सामने रखा था।
इस पर नवंबर, 2012 तक बातचीत चलती रही। लेकिन अनुबंध तय नहीं हो सका था क्योंकि कठिन शर्तों के साथ-साथ ईरान पर अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों के चलते भी प्रगति मुश्किल हो गयी थी।
अप्रैल, 2015 में ईरान के पेट्रोलियम अनुबंध के नए नियम के तहत बातचीत फिर शुरू हुई। अप्रैल, 2016 में परियोजना के विकास के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से बात होने के बावजूद किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सका।
अमेरिका द्वारा ईरान पर नवंबर, 2018 में फिर आर्थिक पाबंदी लगाने से तकनीकी बातचीत पूरी नहीं की जा सकी।
भारतीय कंपनियों का समूह इस परियोजना पर अब तक 40 करोड़ डॉलर खर्च चुका है।